इन सात ऊर्जा चक्रों पर काबू पा लिया तो हर मनोकामना होगी पूरी

इन सात ऊर्जा चक्रों पर काबू पा लिया तो हर मनोकामना होगी पूरी

भारतीय दर्शन के अनुसार प्रत्येक जीव, जन्तु में चेतना होती है। लेकिन यह निष्क्रिय अवस्था में होती है। हमारे पूर्वजों, ऋषि-मुनीयों ने हमें इस निष्क्रिय चेतना को जागृत करने और उससे जीवन उद्देश्य प्राप्त कर, उसे पूरे करने और मोक्ष प्राप्त करने के लिए कई मार्ग सुझाए है। उन्होंने हमारे लिए वेदों, ग्रंथों और उपनिषदों में वह ज्ञान और विज्ञान छोड़ा है जो संपूर्ण सृष्टि की शक्तियों का केंद्र माना जाता है। उन्होंने हमे बताया कि किस तरह हमारा शरीर ही सृष्टि की समस्त शक्तियों का केंद्र है और इन शक्तियों को प्राप्त करने के लिए हमें अपने शरीर के सात मूल ऊर्जा चक्रों को चेतन करना होगा। इन चक्रों के माध्यम से ही हम उस चेतना को प्राप्त कर सकते है जो मानव जीवन का ध्येय है। तो आईए जानते है इन मूल चक्रों के बारे में……


क्या और कैसे काम करते है ये मूल चक्र

वैसे तो मनुष्य के शरीर में कई चक्र होते है लेकिन योग और आयुर्वेद में जिन्हे मूल चक्र माना गया है उनकी संख्या 114 बताई जाती है। इनमे से भी 7 चक्रों को ही मूल आधार चक्र माना गया है। आयुर्वेद में नाड़ियों के संगम या उनके एक दूसरे से मिलन को ही चक्र कहा गया है। वैसे तो इन नाड़ियों के मिलन स्थल अधिकतर त्रिकोणाकार ही होते है लेकिन फिर भी इन्हे चक्र कहा जाता है।

दरअसल शरीर में नाड़ियों के इन त्रिकोणीय मिलन बिन्दुओं को चक्र कहने के पीछे इनकी कार्यशीलता या निरंतरता को माना जाता है। शरीर में मौजूद ये त्रिकोण मिलन बिंदु शरीर के एक आयाम से दूसरे आयाम की ओर गतिशीलता को दर्शाते है इसलिए इन्हे चक्र की उपाधी से नवाजा गया है। इन चक्रों का मूल कार्य शरीर की चेतना या ऊर्जा को नीचे से ऊपर की ओर हस्तांतरित करना है।


ऊर्जा चक्रों का क्रम और कार्य

1. मूलाधार चक्र

मानव शरीर में गुदा और जननेद्रियों के बीच मौजूद इस चक्र को भौम मंडल के नाम से भी जाना जाता है। चार पंखुरियों वाला यह आधार चक्र भौतिक रूप से सुगंध और आरोग्य को नियंत्रित करता है। वहीं आध्यात्मिक दृष्टी से यह चक्र धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष से जुड़ा होता है। जिन लोगों के जीवन में भोग, संभोग और निंद्रा की प्रधानता होती है उनकी ऊर्जा इसी चक्र के इर्द-गिर्द एकत्र होकर रह जाती है।

इस चक्र को जागृत करने के लिए भोग, संभोग और निंद्रा पर विजय पाना जरूरी है। इस चक्र के जागृत होने के बाद वीरता पैदा होती है जिससे निर्भिकता आती है और उससे सिद्धियों की प्राप्ती है।

इस चक्र का बीज मंत्र है – “लं”

स्वाधिष्ठान चक्र

जननेंद्रियों के ठीक पीछे रीढ़ की हड्ड़ी पर स्थित यह चक्र छः पंखुरियों वाला होता है, जिसका आकार अर्द्धचंद्र के समान होता है। इस चक्र को जागृत करके आप अविश्वास, अवहेलना, सर्वनाश, आग्रह और क्रूरता जैसी भावनाओं को नियंत्रित कर पाएंगे। लेकिन यदि यह चक्र निष्क्रिय है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव नहीं हो पा रहा है, तो आप आमोद-प्रमोद, मौज-मस्ती, घूमने-फिरने और मनोरंजन जैसी भावनाओं में ही फंसकर रह जाएगा और जिंदगी कब बीत जाएगी आप समझ भी नहीं पाएंगे।

इस चक्र का बीज मंत्र है – “वं”

मणिपुर चक्र -

नाभि के ठीक पीछे मौजूद यह 10 पंखुरियों वाला चक्र है। रक्त वर्ण लिए यह चक्र अग्नि तत्व को नियंत्रित करता है। इस चक्र को ऊर्जा का केंद्र माना जाता है और जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां से प्रवाहित होती है वह कर्मयोगी कहलाता है। उस पर काम करने की ऐसे धुन सवार होती है कि वह सब कुछ त्यागकर सिर्फ काम करने पर ही ध्यान देता है। इस चक्र के सक्रिय होने से मोह, भय, घृणा, लज्जा, ईष्या, चुगली जैसी भावनाएं नियंत्रित होती है। राजसिक गुण लिए यह चक्र आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्म सम्मान को बढ़ाता है। इन गुणों के साथ व्यक्ति जीवन की हर समस्या का सामना कर सकता है।

इस चक्र का बीज मंत्र है – “रं”

अनाहत चक्र -

सात ऊर्जा चक्रों के क्रम में यह चैथा चक्र है। ह्रदय के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी पर मौजूद यह चक्र सतोगुण का प्रदाता है। 12 पंखुरियों वाला यह चक्र षठकोणाकार होता है। इस चक्र को जागृत करने वाला व्यक्ति सृजनशील, हर समय कुछ नया रचने वाला कोई अविष्कारक हो सकता है। इस चक्र के जागृत होने से मोह, कुतर्क, कपट, चिंता, हिंसा, दंभ, अहंकार और अविवेक समाप्त हो जाता है। इसी के साथ वह सुरक्षित, चरित्रवान, आत्मविश्वास से भरा जिम्मेदार और भावनात्मक रूप से संतुलित बन जाता है।

इस चक्र का बीज मंत्र है – “यं”

विशुद्ध चक्र - 16

पंखुरियों वाला यह चक्र, सरस्वती के स्थान पर कंठ के ठीक पीछे स्थित होता है इसका वर्ण बहुरंगा और आकार अनिश्चित होता है। इस चक्र के जागृत होने से सोलह कलाओं और सोलह विभूतियों का ज्ञान प्राप्त होता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार संगीत के सातों सुरों का जन्म इसी चक्र से हुआ है। इसके जागृत होने पर भौतिक ज्ञान, भगवान के प्रति समर्पण, कल्याण, महान कार्य, विष और अमृत जैसी वृत्तियां नियंत्रित होती है।

इस चक्र का बीज मंत्र है – “हं”

आज्ञा चक्र -

यह चक्र दोनों भौहों के बीच भृकुटी में स्थित होता है। दो पंखुरियों वाला यह चक्र जिसकी एक पंखुरी सफेद व दूसरी काली होती है। इस चक्र के प्रतीक के रूप में 2 विपरीत वर्णों की पंखुरी के माध्यम से भगवान और सांसारिकता को दर्शाने की कोशिश की गई है।

इस चक्र के बीज मंत्र में 2 अक्षर है – “ह” “क्ष”

सहस्त्रार चक्र -

मस्तिष्क में चोटी के स्थान के ठीक नीचे स्थित यह चक्र शहस्त्र पंखुरियों वाला होता है। उजले सफेद रंग के इस चक्र को तंत्र का काशी भी कहा जाता है। यदि व्यक्ति यम, नियम का पालन करते हुए पिछले 6 चक्रों के साथ इस चक्र को भी जागृत कर ले तो वह परमहंस का पद हासिल कर सकता है। मूलाधार से सहस्त्रार चक्र तक पहुंचने वाले मनुष्य का संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई सरोकार नहीं होता। इस चक्र का कोई बीज मंत्र और ध्यान मंत्र नहीं है।

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