ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा अपने उज्जवल रूप में चमकता है। मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिकों और आयूरा रीडर्स के लिए यह दिन काफी महत्व रखता है।
कथा और महत्वः
हिन्दू कलेंडर के अनुसार, आश्विन मास का पूर्ण चंद्रमा (जो ज्यादातर सितंबर या अक्टूबर माह में और दशहरा व दीवाली के मध्य में आता है) को शरद पूर्णिमा के पर्व के रूप में मनाया जाता है। भारत के कुछ भागों में इस दिन भगवान विष्णु और श्री कृष्ण की तो कुछ भागों में देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। उड़ीसा में इस दिन भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय की पूजा की जाती है। लेकिन चंद्रमा को इस पर्व का मुख्य केंद्र बिन्दु माना जाता है। ऐसा माना जाता है जो भक्त पूर्ण श्रद्घा के साथ रात्रि जागरण कर भगवान को मिष्ठानों, खासतौर से दूध और चावल से निर्मित खीर का भोग लगाता है उस पर अमृत की वर्षा होती है। साथ ही इस दिन श्रीयंत्र की पूजा करना भी बेहतर परिणाम दिलाता है। ये त्यौहार मानसून की समाप्ति और फसलों की कटाई का भी सूचक है। इस दिन भक्त पूरी रात उपवास कर खीर को सुबह प्रसाद के रूप में ग्रहण करता है।
चंद्र ग्रह को मजबूत बनाने के लिए उपचार करने का ये सबसे उपयुक्त दिन है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण:
गणेशजी का कहना है कि इस त्यौहार का एक अहम् ज्योतिषीय दृष्टिकोण और महत्व भी है। इस प्रभावशाली मौके पर चंद्रमा को नग्न आंखों से इसके उज्जवल रूप में देखा जा सकता है। अगर आपकी जन्म कुंडली में चंद्रमा दूषित है या कमजोर स्थिति में है, तो इस उदार ग्रह को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न उपाय करने के लिए ये शुभ दिन होगा। इनमें चंद्र यंत्र की पूजा, शिवलिंग पर दूध या जल चढ़ाना, मोती का रत्न पहनना, दूध दान करना और जरूरतमंदों को सफेद वस्तुओ का दान करने जैसे उपाय आप इस दिन कर सकते हैं। चंद्र का शुभ होना, आपको उत्तम मानसिक शांति, माता और मातृपक्ष से जुड़े रिश्तेदारों के साथ अच्छे संबंध, अत्यधिक समृद्घि, सृदृढ़ निर्णयात्मक क्षमता और चौतरफा खुशियों का आशीर्वाद दे सकता है।
खीर का इस त्यौहार में विशेष महत्व है, यह शरीर में ‘पित्त’ तत्व का नाश करता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
अन्य प्राचीन परंपराओं की तरह इसका भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। गर्मी का मौसम अब समाप्ति की ओर है, और इस तरह बदलते मौसम में लोग ‘पित्त’ या एसिडिटी से प्रभावित होते है ,ऐसे में खीर शरीर में ‘पित्त’ तत्व का प्रतिकार करती है। दूसरी मान्यता ये है कि अगर शरद पूर्णिमा के दिन कुंवारी कन्याएं उपवास करती है और चांद की पूजा करती है तो उन्हें भगवान कृष्ण की तरह सुंदर जीवनसाथी प्राप्त होने का आशीर्वाद मिलता है। ऐसी मान्यता है कि इन्होंने शरद पूर्णिमा के दिन ही गोपियों के साथ रासलीला शुरू की थी।
यहां हम कुछ उपयुक्त और कुछ अनुपयुक्त बातों के बारे में बता रहे हैं, जिनका पालन भक्तों को शरद पूर्णिमा का अत्यधिक फल प्राप्त करने के लिए करना चाहिए-
क्या करें:
* शरद पूर्णिमा की रात्रि को उपवास रखें।
* गर्म दूध और चावल से निर्मित खीर तैयार करें, और उसे एक कटोरे में डालकर खुले स्थान पर यानीकि या तो छत पर या बालकनी में रखें। कटोरा ऐसे स्थान पर रखा होना चाहिए जहां से चंद्र की सीधी किरणें इस पर पड़ें। खीर को तैयार करते समय आप अपनी इच्छानुसार इसमें कुछ सूखे मेवे भी डाल सकते है।
* खीर का प्रसाद ग्रहण कर सुबह अपना व्रत खोलें।
नहीं करेंः
* कुछ भी मसालेदार खाना बनाने या खाने से परहेज करें।
* इस रात को कुछ भी नहीं खाने और नहीं सोने की कोशिश करें।
* इच्छा, धन और वासना के विचार का परित्याग करें।
गणेशजी के आशीर्वाद सहित ,
गणेशास्पीक्स डाॅटकाॅम टीम
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