मां दुर्गा की आराधना का हिस्सा है गरबा और डांडिया, इन बातों का रखें ध्यान

मां दुर्गा की आराधना का हिस्सा है गरबा और डांडिया, इन बातों का रखें ध्यान

गरबा और डांडिया रास नवरात्रि में मां दुर्गा की अराधना करते हुए, किया जाने वाला पारंपरिक लोक नृत्य है। शक्ति की देवी मां दुर्गा के सम्मान में किए जाने वाले इस नृत्य को आराधना का ही एक स्वरूप माना गया है। इस लोक नृत्य को आराधना के लिए स्थिपित देवी दुर्गा की प्रतिमा या उन्हे समर्पित किए गए दीपक के आसपास गोल घेरा बनाकर किया जाता है।


क्यों मनाया जाता है नवरात्रि का उत्सव ?

हिंदू धर्म कैलेंडर के अनुसार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पहली तारीख से शुरू होने वाली देवी दुर्गा की नौ दिनी आराधना को नवरात्रि कहा जाता है। इस वर्ष नवरात्रि 2023, 15 अक्टूबर से 24 अक्टूबर तक मनाई जाएगी। नवरात्रि का संधि विच्छेद करने पर नव और रात्रि प्राप्त होता है, जिसका सामूहिक अर्थ नौ रात होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, दैत्यराज महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय के रूप में लगातार नौ दिनों तक चलने वाली आराधना को ही नवरात्रि कहा जाता है। इन नौ दिनों में विभिन्न प्रकार से मां दुर्गा की आराधना कर उनका अभिवादन करने की परंपरा को हिंदू समाज अपनी एकजुटता की भावना के कारण उत्सव के रूप में मनाता है। दांडिया रास और गरबा भी मां की सामूहिक आराधना का एक माध्यम है।

भारतीय वैदिक ज्योतिष के अनुसार, नवरात्रि के दौरान किसी भी माध्यम से देवी दुर्गा की पूजा, आरती और व्रत करने से दुश्मनों और कुविचारों का अंत होता है, साथ ही सौभाग्य की प्राप्ती होती है।


गरबा और दांडिया में क्या अंतर है ?

दांडिया और गरबा दोनों ही मां दुर्गा की आराधना के माध्यम है। गरबा और दांडिया दोनों ही आराधना का नृत्य रूपांतरण है।

– गरबा और दांडिया में मूल अंतर इनके जन्म स्थान का है, गरबा का जन्म गुजरात में हुआ वहीं दांडिया रास का जन्म स्थान कृष्ण नगरी वृंदावन है। लेकिन आज गुजरात सहित पूरे देश में गरबा और दांडिया समान रूप से लोकप्रिय है।
– गरबा और दांडिया में एक महत्वपूर्ण अंतर यह है कि, गरबा हाथ से खेला जाता है, वहीं दांडिया खेलने के लिए रंगीन छड़ी का उपयोग किया जाता है।
– गरबा मां दुर्गा की पूजा-अर्चना के पहले, वहीं दांडिया पूजा-अर्चना के बाद की जाने वाली प्रक्रिया है।


गरबा और दांडिया कहा खेला जाता है ?

पहले गरबा और डांडिया केवल गुजरात और आस-पास के क्षेत्रों तक ही सीमित थे, लेकिन अब ये लोकनृत्य देश विदेश की सीमाएं लांघकर दुनियाभर में लोकप्रिय हो गए हैं। खासकर नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की आराधना के लिए दुनिया भर में गरबा और दांडिया के बड़े-बडे़ आयोजन देखे जा सकते है। इन आयोजनों में हजारों-हजार लोग सामूहिक रूप से हिस्सा लेते है और मां की आराधना कर उनका आशीष प्राप्त करते है।


गरबा और डांडिया किस तरह देखा जात है ?

मां दुर्गा के भक्त पारंपरिक पोशाक पहनते है। महिलाएं अलग-अलग रंग की सुंदर कढ़ाई युक्त चनिया-चोली पहनती है वहीं, पुरूष पारंपरिक कुर्ता-पायजामा या पारंपरिक गुजराती पोशाक पहनते है। इस पारंपरिक गुजराती पोशाक को केडियू और धोती कहा जाता है। महिलाएं पारंपरिक आभूषणों, चूड़ी और अन्य श्रंृगार करती है। डांडिया और गरबा दोनों ही सामूहिक रूप से समूहों में किया जाता है।


नवरात्रि में डांडिया और गरबा करने का क्या महत्व है ?

– गरबा और डांडिया दोनों ही नृत्य रूप में मां दुर्गा की आराधना करने का माध्यम है। गरबा और डांडिया के माध्यम से शक्ति स्वरूप मां दुर्गा और दैत्यराज महिषासुर के बीच हुए युद्ध को दर्शाने की कोशिश की जाती है।
– डांडिया करते समय उपयोग की जाने वाली रंगीन छड़ी को मां दुर्गा की तलवार के तौर पर देखा जाता है।
– यही कारण है कि नृत्य की इस शैली को तलवार नृत्य या द स्वाॅर्ड डांस भी कहा जाता है।
– गरबा गुजरात का लोक नृत्य है, जिसे मां दुर्गा की मुर्ति या उन्हे समर्पित दीपक के आस-पास किया जाता है। जलते दीपक के आसपास गोला बनाकर नृत्य करते भक्त किसी मां के गर्भ में जीवन प्रदर्शित करती लौ का जीवांत प्रदर्शन करते है।
– गरबा करते समय हाथ और पैरों का उपयोग करते हुए एक गोला बनाया जाता है। जिस गोले के अंदर गरबा किया जाता है वह जीवन चक्र को प्रदर्शित करता है, वहीं नृत्य करते हुए भाव-भंगिमाओं के साथ चक्राकार बनाना जीवन से मृत्यु और पुनर्जन्म को दर्शाता है।

गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम



Continue With...

Chrome Chrome