भारतीय परंपराओं में कई सारे त्योहार मनाए जाते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भी इन्हीं त्योहारों में से एक है, जो भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब-जब पृथ्वी पर अधर्म का बोलबाला हुआ है, तब-तब भगवान विष्णु ने धरती पर अवतार लेकर धर्म की रक्षा की है। श्री कृष्ण भी भगवान विष्णु का ही एक रूप है। आइए जानते हैं
कब है कृष्ण जन्माष्टमी ?
सबसे पहले बात करते हैं कि साल 2025 में कृष्ण जन्माष्टमी किस तारीख को पड़ रही है। इस साल यह पवित्र त्योहार 15 अगस्त 2025, शुक्रवार को मनाया जाएगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह माना जाता है कि करीब पांच हजार साल पहले भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। वहीं कुछ तथ्य साल 2025 में आने वाली जन्माष्टमी को भगवान कृष्ण का 5252 वां जन्मोत्सव भी बता रहे हैं। हालांकि, इसमें मतभेद हो सकते हैं। गुजरात में जन्माष्टमी पर्व सावन में आता है। जबकि देश के अन्य हिस्से में सावन रक्षाबंधन पर खत्म हो जाता है। उसके बाद भाद्रपद महीना शुरू होता है। उसकी कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जन्माष्टमी मनाते हैं। कई जगह भाद्रपद में भी रुद्राभिषेक करने का बहुत महत्व है।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की तारीख – 15 अगस्त 2025, शुक्रवार
निशिता पूजा समय – 12:27 AM से 01:11 AM, अगस्त 16
अवधि – 00 घंटे 44 मिनट
कृष्ण जन्म की कथा (story of krishna’s life)
जैसा कि हमारे शास्त्रों में दर्शाया गया है कि जब जब धरती पर अधर्म बढ़ा है, भगवान विष्णु ने मानव रूप में अवतार लिया है। द्वापर युग में भी जब पृथ्वी पर अधर्म बढ़ता ही जा रहा था, तब भगवान विष्णु ने तत्कालिक मथुरा नरेश के कारागार में माता देवकी की कोख से आठवें पुत्र के रूप में जन्म लिया था। इसके बाद योगमाया से प्रेरित और उनके आदेशानुसार श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव नवजात कृष्ण को रात के अंधेरे में घनघोर बारिश के बीच उफनती हुई यमुना नदी को पार कर गोकुल लेकर गए। वहां अपने मित्र तथा गांव के प्रमुख नंद बाबा के घर पर छोड़ आए तथा उनकी नवजात कन्या को अपने साथ ले आए। सुबह जब कंस को कन्या के जन्म की खबर लगी, तो वह उसका वध करने कारागार में जा पहुंचा। उसने कन्या को हाथ में लेकर दीवार की ओर पटका ही था कि वह उसके हाथ से छूट कर आकाश में चली गई तथा दिव्य स्वरूप धारण कर कंस को चेतावनी दी कि तुझे मारने वाला पैदा हो चुका है। जिसके बाद कंस ने अपने गुप्तचरों की मदद से ज्ञात कर लिया कि देवकी का आठवां पुत्र कृष्ण वृंदावन में नंद बाबा के घर में पल रहा है। उसके कृष्ण को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन असफल रहा। इसके बाद किशोरावस्था में भगवान कृष्ण ने कंस का वध कर अपने माता-पिता को कारागार से मुक्त किया। उसके बाद वह गुरू संदीपनि के पास उज्जैन जाकर विद्या ग्रहण की, और पृथ्वी पर धर्म की स्थापना के लिए निकल पड़े। उन्होंने अधर्म के विरुद्ध धर्म के युद्ध में उन्होंने पांडवों का साथ दिया। जब युद्ध आरंभ होने के पहले अर्जुन ने मोहमाया में उलझकर अपना धनुष रख दिया था, तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भागवत गीता का उपदेश देकर उसे युद्ध के लिए प्रेरित किया। इनके अलावा भी उन्होंने अपने जीवन काल में शिशुपाल तथा जरासंध जैसे अनेकों शक्तिशाली दुष्ट राजाओं और राक्षसों का नाश किया, और लोगों को शांति व धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
कैसे मनाई जाती है जन्माष्टमी (How to celebrate Janmashtami)
देश सहित विदेशों में भी कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन उपासक व्रत रखते हैं, सुबह स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र पहनकर भगवान कृष्ण के मंदिरों में जाते हैं। जहां भक्तिभाव से कृष्ण की पूजा की करते हैं। इस दिन विभिन्न प्रकार के धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। वहीं सूर्यास्त के समय मन्दिरों के पट बंद कर दिए जाते हैं। शास्त्रों में श्रीकृष्ण का जन्म अर्धरात्रि को उल्लेखित किया गया है, इसके चलते रात 12 बजे कृष्ण जन्म का प्रसंग दोहराकर मन्दिरों के पट खोले जाते हैं। इस दौरान कृष्ण प्रतिमा की पंचोपचार से पूजा की जाती है। उन्हें धनिए की पंजीरी, केले, सेब, दही आदि का भोग चढ़ाया जाता है। इसके बाद भगवान कृष्ण की आरती कर प्रसाद वितरण किया जाता है। इस दिन देश के सभी मन्दिरों में रात को प्रसाद लेने के लिए लंबी कतारें लगती हैं। भक्त अपने बच्चों को श्रीकृष्ण और राधा रानी के रूप में सजाते हैं। साथ ही कृष्ण के जीवन से जुड़े प्रसंगों को दर्शाया जाता है। उनकी लीलाओं का स्मरण कर हरि नाम कीर्तन किया जाता है। मंदिरों को सजाया जाता है, लगभग सभी मंदिरों में वैष्णव भजन, संकीर्तन तथा अन्य धार्मिक कार्य किए जाते हैं। घरों में गीता पाठ किया जाता है, श्रीमद्भागवत तथा भागवत पुराण का पाठ किया जाता है। इनके अलावा बहुत से लोग “हरे राम, हरे कृष्णा” तथा “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:” जैसे बहुत से मंत्रों का जप भी करते हैं। दक्षिण भारत में जन्माष्टमी को गोकुल अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। लोग अपने घर के फर्श को कोलम (चावल के घोल से तैयार सजावटी पैटर्न) से सजाते हैं। गीत गोविंदम तथा अन्य भक्ति गीत गाए जाते हैं। कृष्ण के आगमन को दर्शाने के लिए घर की दहलीज से पूजा कक्ष तक कृष्ण के पैरों के निशान बनाते हैं। कृष्ण को प्रसाद में फल, पान तथा मक्खन अर्पित किया जाता है। बहुत से भक्त पूरे दिन व्रत रखते हैं, और रात को 12 बजे कृष्ण जन्मोत्सव तथा उनकी पूजा के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं। दुनिया में कृष्णभक्तों का सबसे बड़ा धार्मिक संगठन इस्कॉन इस दिन पूरे विश्व में बनाए गए इस्कॉन मंदिरों में भव्य कार्यक्रम आयोजित करता है। सभी मंदिरों में हरे राम, हरे कृष्ण मंत्र का कीर्तन तथा जप किया जाता है। कृष्ण लीलाओं का वर्णन किया जाता है।
कैसे करें भगवान कृष्ण की पूजा
जन्माष्टमी के दिन सुबह भगवान कृष्ण या बाल गोपाल की मूर्ति को जल, दूध, दही, शहद और पंचामृत से स्नान करवाएं। इसके बाद उन्हें पीले रंग के नए वस्त्र पहनाएं। भगवान कृष्ण के साथ राधा की मूर्ति हो, तो उनका भी तरह-तरह से श्रृंगार करें। भगवान कृष्ण को सुबह मिठाई का भोग लगाएं और भगवान कृष्ण के पवित्र मंत्रों का पाठ करें। इस दिन गोपाल सहस्रनाम, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना भी उत्तम रहेगा। दोपहर के 12 बजे भी भगवान की आरती करें और उन्हें घर में बने नैवेद्य का भोग लगाएं। शाम में भी भगवान की आरती करें। रात नौ बजे बाद भगवान कृष्ण के सामने घी का अखंड दीपक लगाएं। कोशिश करें कि यह दीपक सुबह तक चलें। इस बीच भगवान कृष्ण का फिर से अभिषेक करें। रात 12 बजे भगवान की आरती करें और उनके किसी भी मंत्र का 108 बार जाप करें। इसके बाद ही अपना व्रत खोलें। जन्माष्टमी पर अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। आप यह पाठ किसी विशेषज्ञों से भी करवा सकते हैं। अपनी मनोकामनाओं की पूर्तिं के लिए विष्णु सहस्रनाम का पाठ करवाने के लिए यहां क्लिक करें।
कृष्ण पूजा से ग्रह शांति
भगवान कृष्ण की पूजा करने से पितृदोष का प्रभाव कम हो जाता है। वैदिक ज्योतिष में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि जन्मकुंडली में पितृदोष की स्थिति होने पर श्रीकृष्ण-मुखामृत गीता का पाठ करना चाहिए। साथ ही प्रेतशांति व पितृदोष निवारण के लिए श्रीकृष्ण चरित्र की कथा, श्रीमद्भागवत महापुराण का पाठ करना अत्यंत शुभ माना गया है। ग्रह शांति व सभी ग्रहों के दोष से निवारण के लिए ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र के साथ 1008 बार माला फेरें। वैदिक ज्योतिष में इस मंत्र का उपयोग लगभग हर ग्रह दोष के निवारण के लिए किया जाता है।
भगवान श्री कृष्ण के अन्य मंत्र
ओम् गोविंदाय नम:।।
ओम क्लीं कृष्णाय नम:।।
दही हांडी का आयोजन (Dahi Handi celebration)
श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के दौरान दहीं हांडी का भी विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण बचपन में काफी शरारती थे। वह अपने साथियों के साथ गोपियों के घर जाकर हांडी तोड़कर मक्खन चुराकर खाते थे। गोपियां माता यशोदा से इसकी शिकायतें भी करती थीं और उन्हें माता यशोदा से दंड भी मिलता था, इसके बाद भी वह अपनी शरारतें नहीं छोड़ते थे। भगवान कृष्ण की इसी लीला को याद करते हुए देश में कई स्थानों पर दही हांडी का पर्व मनाया जाता है। जन्माष्टमी के कार्यक्रमों में सबसे प्रमुख दही हांडी है। इस आयोजन में छोटे-छोटे समूहों में बच्चे, युवा तथा वयस्कों को ऊंचाई पर बंधी हुई एक हांडी (जिसमें मक्खन भरा होता है) को तोड़ना होता है। सभी समूह एक पिरामिड बनाते हुए ऊपर चढ़ने का प्रयास करते हैं, जो हांडी तोड़ने में सफल हो जाते हैं, उन्हें पुरस्कृत किया जाता है। इस प्रतियोगिता में शामिल होने वाले लोगों को भगवान कृष्ण के अन्य नाम गोविंदा से संबोधित किया जाता है।
दही हांडी प्रतियोगिता की सबसे ज्यादा धूम महाराष्ट्र, वृंदावन और मथुरा में देखी जाती है। यहां पर स्थानीय प्रशासन इस प्रतियोगिता का आयोजन करता है, और पुरस्कार राशि की घोषणा करता है। महाराष्ट्र के मुंबई में भी गोकुलाष्टमी का त्यौहार बड़े ही जोर-शोर से मनाया जाता है। आपको बताते चले कि महाराष्ट्र में भी कृष्ण जन्माष्टमी को गोकुलाष्टमी के नाम से जाना जाता है।
उत्तर भारत के अलावा देश के पूर्वोत्तर राज्यों में कई जगहों पर रासलीला का आयोजन किया जाता है। इसमें नर्तक अपने गीतों के माध्यम से इस कृष्ण की लीलाओं का वर्णन करता है। इसके अलावा बच्चे और युवा, राधा-कृष्ण बनकर विभिन्न कृष्ण लीलाओं का मंचन करते हैं।
जम्मू और गुजरात के अलावा कई जगहों पर इस दिन पतंग उड़ाने की भी परंपरा है।
पश्चिम बंगाल में जन्माष्टमी को श्री जयंती और कृष्ण जयंती के नाम से जाना जाता है। इस दिन उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में भगवान कृष्ण की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान करवाया जाता है। इसके बाद पंचगव्य तथा पंचोपचार से पूजा की जाती है। भागवत पुराण के दसवें अध्याय (जिसमें भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है) का पाठ किया जाता है। वहीं जन्माष्टमी के अगले दिन नन्दोत्सव मना जाता है, जिसमें कृष्ण के नंद बाबा और यशोदा मैया की महिमा को स्मरण किया जाता है।
विदेशों में कृष्ण जन्माष्टमी और देश के प्रमुख कृष्ण मंदिर (Krishna Janmashtami Outside of India)
भगवान कृष्ण की धूम सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी है। भारत के बाहर रह रहे हिंदू धर्मावलंबी तथा इस्कॉन के अनुयायी इस पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। नेपाल और भूटान में तो भारत के जैसे ही धूम रहती है, और विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। जबकि अमरीका, कनाड़ा, इंग्लैंड व अन्य बहुत से देशों में कृष्ण भक्त एकत्रित होकर कृष्ण नाम जपते हुए उनकी महिमा का गुणगान करते हैं। भारत सहित विश्व भर में बहुत से मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित हैं। इन मंदिरों में कुछ प्रमुख मंदिर निम्न प्रकार हैं।
जगन्नाथ पुरी मंदिर, उड़ीसा (Jagannath Temple, Puri, Odisha)
देश के प्रमुख चार धामों में से एक जगन्नाथ मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है। इस मंदिर में भगवान कृष्ण, अपने बड़े भाई बलराम तथा बहन सुभद्रा के साथ विराजमान है। यहां हर साल भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का आयोजन किया जाता है। इस यात्रा में लाखों लोग देश-विदेश से शामिल होने के लिए आते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ को खीचने के लिए भक्तों की होड़ लगती है। इसके अलावा यहां पर जन्माष्टमी के दिन भी विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
द्वारिकाधीश मंदिर, गुजरात (Dwarkadhish Temple, Gujarat)
भगवान कृष्ण का एक भव्य मंदिर मथुरा में है, जो भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में फेमस है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मथुरावासियों को जरासंध तथा कालनेमि से बचाने के लिए कृष्ण ने रातों रात समुद्र के बीच एक द्वीप पर देवशिल्पी विश्वकर्मा को आदेश देकर द्वारिका नगरी का निर्माण करवाया था, और यहीं पर आ गए थे। द्वारिका में कृष्ण को द्वारिकाधीश कहा जाता है। यहां पर काले मार्बल से बनी हुई कृष्ण की मूर्ति है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में मौजूद भगवान कृष्ण प्रतिमा का निर्माण कृष्ण के पडपौत्र प्रद्युम्न ने किया था।
गुरुवायुर मंदिर, गुरुवायुर, केरल (Guruvayur Temple, Guruvayur, Kerala)
दक्षिण भारत में भी भगवान कृष्ण के मंदिरों भक्तों का तांता लगा रहता है दक्षिण भारत के प्रमुख मंदिरों में एक गुरुवायुर मंदिर का निर्माण वर्ष 1638 में किया गया था। इस मंदिर में भगवान कृष्ण चतुर्भुज रूप में विराजमान है। आपको बता दें कि इस मंदिर में प्रवेश कनरे के लिए महिलाओं के लिए साड़ी तथा पुरुषों के लिए धोती पहनना अनिवार्य है।
राधा मदन मोहन मंदिर, वृंदावन, उत्तरप्रदेश (Radha Madhan Mohan Mandir, Vrindavan, Uttar Pradesh)
वृंदावन वही नगरी है, जो भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं की साक्षी है। भगवान कृष्ण का बचपन यहीं पर गुजरा था। यहां पर भगवान कृष्ण, राधारानी तथा उनकी सखी ललिता की मूर्ति को स्थापित किया गया है।
इन मंदिरों के अलावा भी बहुत से मंदिर हैं, जो भगवान कृष्ण को समर्पित है। इनमें वृंदावन का बांके बिहारी मंदिर, जुगल किशोर मंदिर, राधा रमण मंदिर, इस्कॉन मंदिर, प्रेम मंदिर, जयपुर में गोविंद देव मंदिर, कर्नाटक के उडुपी में श्रीकृष्ण मन्दिर, नाथद्वारा में श्रीनाथजी मंदिर सहित अनेकों मंदिर हैं।
गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम