https://www.ganeshaspeaks.com/hindi/

वैदिक यंत्र

यंत्र क्या है ?

  • एक प्रकार का ताबीज
  • एक शक्तिशाली पवित्र प्रतीक
  • मंत्र की स्पर्श योग्य अभिव्यक्ति
  • वैदिक एवं प्राचीन सभ्यता से प्रगाढ़ संबंध
  • गणितीय और ज्यामितीय के सिद्घांतों पर निर्मित
  • तांबे, चांदी या सोने की धातु की बनी प्लेट्स पर उत्कीर्ण किए जाते हैं।
  • ऊर्जा संग्रहण के लिए उच्च संग्रहण क्षमता वाली धातु का इस्तेमाल किया जाता है।
  • चांदी एवं तांबे की तुलना में सोने के अंदर ऊर्जा को संग्रहण करने की अधिक क्षमता होती है।
  • यंत्र एक सक्रिय (सकारात्मक) ऊर्जा क्षेत्र बनाता है, जो सकारात्मक ऊर्जा का दोहन व विकीर्ण करता है।
  • उपासक, धारणकर्ता या वातावरण, जहां इसको रखा जाता है, को शक्तिशाली ऊर्जा प्रदान करता है।

यंत्र क्यों ?
ज्योतिषीय दृष्टि से रत्न हमेशा पहनना या अनुकूल होना संभव नहीं होता, क्योंकि रत्न ग्रह के सभी गुण एक प्रणाली के जरिए सीधे तौर पर धारणकर्ता तक पहुंचाता है। रत्न को धारण करना वांछनीय नहीं, विशेषकर उस स्थिति में, जब ग्रह के कुछ तत्वों को प्रोत्साहन देने की जरूरत नहीं होती है। इस मामले में, व्यक्ति को यंत्र धारण या स्थापित करने का सुझाव दिया जाता है, ताकि ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को कम कर सकारात्मक ऊर्जा को विस्तार दिया जा सके।

प्रतिमा का विकल्प
हिंदु सभ्यता में प्रत्येक हिंदू देवी देवताओं एवं ग्रहों को अलग अलग रूपों में पूजा जाता है। इन सभी के साथ कोई न कोई मंत्र जुड़ा हुआ है। इसलिए वैदिक यंत्र महान आध्यात्मिक रहस्य एक प्रतीक है। इसलिए अभिमंत्रित यंत्र देवता की प्रतिमा विकल्प हो सकता है।

आध्यात्मिक महत्व
यंत्र निर्माण की प्रक्रिया में पांच तत्व जैसे कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश के बीच के संतुलन को विशेष रूप से ध्यान में रखा जाता है। यंत्र की पूजा के पीछे अध्यात्म एवं ध्यान का विशेष महत्व है।

वेदों द्वारा परिभाषित प्रक्रियाओं के अनुसार, एक विशेष तिथि एवं समय पर प्राचीन तथा वैदिक सिद्धांतों को केंद्र में रखकर यंत्र का निर्माण किया जाता है। इसके अलावा यंत्र को अभिमंत्रित एवं सक्रिय करने के लिए विशेष मंत्र विधि उपयोग में लाई जाती है, जो ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने में यंत्र को सक्षम बनाती है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, किसी भी यंत्र को स्थापित करने, उसकी पूजा करने से काफी सकारात्मक बदलाव देखने को मिलते हैं।

अभिमंत्रित की पूजा क्यों ?
वैदिक यंत्र हमेशा ऊर्जा क्षेत्र सिद्धांत पर काम करता है। इसलिए इसको पूरे अच्छे तरीके से शुद्घ व सक्रिय करने की जरूरत रहती है, ताकि इससे आपको अधिक लाभ प्राप्त हो सकें। इसके अलावा आपको भी यंत्र की नियमित पूजा करनी रहेगी। गैर अभिमंत्रित / गैर सक्रिय यंत्र, उसी तरह का होता है, जैसे आत्मा के बिना मानव शरीर।

विवरण

यंत्र
एक सामान्य समझ के अनुसार, जब किसी भोजपत्र या किसी अन्य सतह पर मंत्र या तंत्र को गणितीय प्रणाली से चित्रों द्वारा दर्शाया जाता है तो इस स्वरूप को यंत्र कहा जाता है। समझा जाता है कि यंत्रों में मंत्रों के साथ दिव्य अलौकिक शक्तियां समाई होती हैं।
गणितीय और ज्यामितीय सटीक सिद्धांत को धातु की एक समतल सतह पर उकेरा जाता है, जिसके कारण धातु की समतल परत में विशाल ऊर्जा को सुरक्षित रखने एवं उसको वितरित करने की अपार क्षमता आ जाती है। जिस जगह पर यंत्र की पूजा उपासना की जाती है, वहां यंत्र सकारात्मक ऊर्जा का आभामंडल तैयार करता है।

साधारण शब्दों में, सिद्घांतों को ध्यान में रखकर अच्छे तरीके से बनाया वैदिक यंत्र मंत्रों की एक ठोस अभिव्यक्ति है।

शाब्दिक अर्थ
साधारण अनुवाद में यंत्र का अर्थ मशीन होता है। जबकि वैदिक के संदर्भ में यंत्र शब्द का अर्थ पवित्र प्रतीक या ताबीज से है, जो ऊर्जा का संग्रहण एवं संचरण करता है। इसके कारण सकारात्मक ऊर्जा का विस्तार होता है एवं नकारात्मक प्रभाव कम होने लगता है।
यंत्र की एक तकनीकी परिभाषा भी है। इस परिभाषा के अनुसार वैदिक यंत्र को इस तरह का ऊर्जा इंजन कहा गया है, जिसमें ऊर्जा को संग्रहित करती रहस्यमय रेखाकृतियां होती हैं। प्राचीन काल में प्रचिलित चिह्नलिपि में वर्णित रेखागणित आकृतियों द्वारा तैयार करने में आते हैं एवं इसके अंदर जरूरत अनुसार वैदिक आकृतियों तथा गणितीय आकारों का उपयोग किया जाता है।

संस्कृत संबंध
‘यंम्’
वैदिक ज्योतिष में यंत्र शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, जो वास्तव में संस्कृत शब्द है एवं यंम् शब्द से आया है, जिसका अर्थ नियंत्रित करना, वश में करना, आदि होता है। इसके अलावा संस्कृत में यंत्र शब्द का इस्तेमाल किसी भी साधन के लिए होता है, जो होल्डिंग, निरोधक या बन्धन के लिए कार्यरत हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो रहस्यमय एवं ज्योतिषीय रेखाचित्र, जो जादुई शक्ति से संपन्न है। वैदिक में यंम् से अर्थात विचार या परिकल्पना को पकड़ना तथा एक विशेष वांछनीय ऊर्जा या ऊर्जा क्षेत्र को ‘निरोधक’ करना।

‘त्र’
यंत्र शब्द का दूसरा अक्षर ‘त्र’ मूल रूप से त्रयोति शब्द से आया है। इस अर्थ मुक्ति व आजादी होता है। तंत्र एवं मंत्र शब्द में भी इसका यही अर्थ होता है।

विरोधाभास
आम तौर पर वैदिक यंत्र में विरोधाभास देखने को मिलता है कि इसके भीतर अलौकिक एवं लौकिक दोनों प्रकार की शक्तियों का संग्रह होता है, क्योंकि दोनों एकसाथ क्रिया करती हैं।

जैसे कि यंत्र में अंकुश एवं मुक्ति दोनों प्रकार के बल एक ही उपकरण में मिलते हैं। साथ ही, यह दोनों गतिविधियां केंद्र से बाहर की तरफ उत्सर्जित करते हैं।

मंत्र के साथ यंत्र का होना तंत्र को अस्तित्व में लाता है। तंत्र की कितनी ही व्याख्याएं सुनने में आयी हैं। किसी सटीक यंत्र की एकाग्रता के साथ विशेष यंत्र की अनुशासनात्मक साधना मोक्ष एवं मुक्ति दिलाने में मदद करेगी।

वैदिक यंत्रों में प्रतीक
जैसे कि पहले ही बताया गया है कि यंत्र को निर्मित करने के लिए गणित एवं रेखागणित के सिद्घांतों का इस्तेमाल किया जाता है। यंत्र अभिव्यक्ति के लिए गणितीय सिद्घांत एवं प्रतीक का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें वर्ग, त्रिकोण, गोलचक्र, चतुर्भुज, षट्भुज, बिंदू एवं किरणें आदि शामिल हैं। कभी कभार, यंत्रों को अधिक अद्भुत बनाने के लिए पुष्य और अन्य रहस्यवादी वैदिक सिद्घांतों का इस्तेमाल भी किया जाता है।

  • बेहद लोकप्रिय वैदिक चिह्न कमल मूल रूप से चक्रों का प्रतीक माना जाता है। प्रत्येक पुष्पदल एवं चक्र के साथ जुड़ी बहुत सी मनोवृत्तियों को दर्शाता है।
  • बिंदू किसी भी प्रकार की रेखागणित आकृति का प्रारंभ स्थान कहलाता है अथवा तो अनंत, अभिव्यक्ति रहित ब्रह्मांड यंत्र, वो हिस्सा है, जिस पर चर्चा नहीं की जा सकती।
  • ष्टकोण, डेविड तारा के प्रतीक का संस्कृत नाम में ऊपर की तरफ कोना होता है, उसका त्रिकोण का संतुलित छेदन सक्रियता, उर्जा का निर्माण, बहिर्मुखी स्वभाव, तकनीक, शक्ति की स्थिरता, बॉडी बिल्डिंग एवं भगवान शिव का साक्षात स्वरूप दर्शाता है। इस आकृति में जो नीचे की तरफ कोना हो, तो उसका त्रिकोण अंतरमुखी प्रतिभा, ध्यानस्थ मुद्रा, पवित्र शक्ति का धारक, नारित्व एवं उर्जा की देवी के साक्षात शक्ति का स्वरूप दर्शाता है। यह आकृति वैदिक यंत्र पर बनाकर आती आकृति का हिस्सा है।
  • स्वस्तिक को भगवान गणेशजी का प्रतीक माना गया है। इस आकृति में उकेरी रेखाएं सकारात्मक ऊर्जा का उत्सर्जन कर मानव जीवन का कल्याण करती हैं एवं आध्यात्मिक सिद्घि भी दिलाती हैं।
  • बीज मंत्र (सामान्य तौर पर देवनागरी लिपि का एक मूल अक्षर का रूप में दर्शाया है) मानव शरीर में आने वाले सटीक चक्र या वृत्ति को मूल रूप से दर्शाया है।

यंत्र स्वरूप
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, वे यंत्र बहुत अच्छा लाभ देते हैं, जिनको धातु- मिश्रित धातु की समतल परत पर बहुत स्पष्ट तरीके से उभारा जाता है। जानाकरी के अनुसार बड़े स्तर पर इस्तेमाल होने वाले यंत्र दो आयामी होते हैं।

धातु या मिश्रित धातु क्यों ?
धातु एक अच्छी अवशोषक और विद्युत चुंबकीय तरंगों की संवाहक होती है। यंत्र का कार्य वांछनीय ऊर्जा, जो कि अनिवार्य रूप से लहर / बिजली है, को एकत्र, अंतर्विष्टि एवं प्रेषित करना होता है। प्रत्यक्ष रूप से, धातु इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक अच्छा मंच है।
इसके अलावा, यदि यंत्र एवं इसके प्रतीक धातु की परत पर नियमों अनुसार स्पष्ट तरीके से उभारे नहीं हुए हैं, तो यंत्र अच्छे तरीके से कार्य नहीं करेगा, एवं आपको उचित लाभ प्रदान नहीं करेगा। धातु जैसे कि तांबा, चांदी एवं सोना, जो बहुत लचीली हैं, जिसके कारण इस पर स्पष्ट और सही शिलालेख एवं नक्काशी करना का सरल है।
सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि यंत्र बहुत हल्का होता है, इसको बड़ी आसानी से पहना, जेब में रखा एवं पूजा स्थल पर स्थापित किया जा सकता है। इसी कारण नरम एवं कोमल धातु बहुत उपयोगी होती हैं।

तांबा, चांदी एवं सोना ?
घनता धातु में ऊर्जा को लम्बे समय तक संभालने की अपार क्षमता होती है। धातु पर वैदिक यंत्र की रचना करने के लिए इस गुण को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। वैसे तो पूरा यंत्र मिश्रित धातु पर निर्मित किया जा सकता है, लेकिन आपको यंत्र से संपूर्ण लाभ प्राप्त करने की इच्छा हो तो आपको अनुकूल धातु का मुलम्मा करवाना अति जरूरी है।
इस संबंध में बड़े स्तर पर तांबे, चांदी एवं सोने का इस्तेमाल किया जाता है। इन तीनों धातुओं में से सोने को सबसे अच्छा गया है क्योंकि सोने को अच्छा ऊर्जा वाहन माना गया है। इसके बाद चांदी एवं तांबा क्रमशः दूसरे तीसरे स्थान पर आते हैं।

नोट – श्री यंत्र देवी लक्ष्मी का प्रतीक है, जो सबसे अधिक लोकप्रिय एवं प्राचीन यंत्र है। ज्योतिषीय दृष्टि से, हिंदु सभ्यता में यंत्र बहुत महत्व रखते हैं एवं इसको शुभ माना जाता है।
दो आयामी यंत्रों को निर्माण धातु एवं मिश्रित धातु पर होता जबकि तीन आयामी यंत्रों का निर्माण बेश्कीमती रत्नों एवं स्फटिक पर होता है। वेदों द्वारा परिभाषित प्रक्रियाओं के अनुसार, एक विशेष तिथि एवं समय पर प्राचीन तथा वैदिक सिद्धांतों को केंद्र में रखकर यंत्र का निर्माण किया जाता है। इसके अलावा यंत्र को अभिमंत्रित एवं सक्रिय करने के लिए विशेष मंत्र विधि उपयोग में लाई जाती है, जो ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने में यंत्र को सक्षम बनाती है।
इसके अलावा अन्य प्रसिद्घ एवं लोकप्रिय यंत्रों में महामृत्युंजय यंत्र, कुबेर यंत्र हैं, जो पांच तत्व अग्नि, जल, पृथ्वी, वायु एवं आकाश का प्रतिनिधित्व करते हैं।

गणेशजी के आशीर्वाद सहित
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम

Continue With...

Chrome Chrome