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क्यों जलियांवाल बाग बना, कांग्रेस अध्यक्ष की नाक का सवाल !

जलियांवाल बाग

18 नवंबर 2019 को शुरू हुए संसद के शीत कालीन सत्र के दूसरे दिन राज्यसभा में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की गई। इन चर्चाओं के बीच एक बिल ऐसा रहा जिसने राज्यसभा के 250 वें सत्र के दूसरे दिन विपक्ष और खासकर कांग्रेस को जमकर हंगामा करने का मौका दिया। मंगलवार को राज्यसभा से पास हुए जलियांवाल बाग राष्ट्रीय स्मारक संशोधन बिल 2019 के सदन में पेश होने के साथ ही कांग्रेस ने इसे अपनी पार्टी और कांग्रेस अध्यक्ष की गरिमा का सवाल बना लिया। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि इस बिल के माध्यम से सरकार कांग्रेस अध्यक्ष को व्यक्तिगत रूप से नीचा दिखाने की कोशिश कर रही है। वहीं भाजपा और भारत सरकार ने इस बिल को यह कहते हुए राज्यसभा के पटल पर पेश किया की यह मुद्दा देश और देश की भावनाओं के साथ जुड़ा है, इसलिए इसमें किसी राजनीतिक पार्टी की प्रत्यक्ष भूमिका को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

एच टू – जलियांवाल बाग से कांग्रेस अध्यक्ष का क्या संबंध ?

जलियांवाल बाग से कांग्रेस अध्यक्ष का संबंध जानने से पहले संक्षिप्त शब्दों में यह जनना जरूरी है कि जलियांवाल बाग में ऐसा क्या हुआ था जिसे भारत सरकार आज भी देश की गरिमा और राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़कर देखती है। 13 अप्रैल 1919 बैसाखी के दिन अमृतसर के जलियांवाल बाग में लोग हजारों की संख्या में ब्रिटिश सरकार के एक तुगलकी फरमान रौलेट एक्ट 1919 (काला कानून प्रस्ताव) का विरोध करने के लिए एकत्र हुए। इस एक्ट की शक्तियों का उपयोग कर ब्रिटिश सरकार किसी भी भारतीय नागरिक को बिना कोई कारण बताए सीधे गिरफ्तार कर असीमित समय तक जेल में रख सकती थी। इसी रौलेट एक्ट के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व कर रहे दो स्वतंत्रता सेनानी सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर कालापानी भेज दिया गया। इन स्वतंत्रता सेनानियों की रिहाई के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया जा रहा था। लेकिन बेलगाम हो चुकी अंग्रेजी हुकूमत ने इस प्रदर्शन को हिंसा से कूचलने की नाकाम कोशिश की जिसमें कई लोग हताहत हुए। इस घटना के बाद जन आक्रोश और बढ़ गया। 13 अप्रैल 1919 के दिन जलियांवाल बाग में लोग एक शांति सभा के लिए एकत्र होने लगे। 1857 के विद्रोह का डर जहन में पाले बैठे अंग्रेज जनरल डायर ने इन प्रदर्शनकारियों पर अंधा-धुधं गोली चलाने का आदेश दे दिया। इस जघन्य हत्याकांड को जलियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता है। इस हत्याकांड में आधिकारिक तौर पर 484 लोगों की मौत पुष्टि की करता दस्तावेज आज भी अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यलय में मौजूद हैं। वहीं अनआधिकारिक आंकड़ों के अनुसार शहीद होने वालों का यह आंकड़ा 1000 से ज्यादा बताया जाता है। इन शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए तत्कालीन सरकार ने जलियांवाल बाग राष्ट्रीय स्मारक विधेयक 1951 पेश किया था। इस बिल के माध्यम से एक ट्रस्ट तैयार किया गया जो इस जगह की देखरेख और प्रबंधन संबंधी कार्य संभालता है। उस समय इस बिल में यह भी जोड़़ दिया गया कि, ट्रस्ट के ट्रस्टी के तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष का पद सदैव इस स्मारक से जुड़े ट्रस्ट की कमेटी के स्थायी सदस्य रहेगा। बस यही एक बात पूरे विवाद की परिपाटी है।

एच थ्री – इन बदलावों से खफा है कांग्रेस और उनकी अध्यक्ष

जलियांवाल बाग राष्ट्रीय स्मारक संशोधन बिल 2019 के माध्यम से सरकार ने 1951 में पास किए गए उस मूल बिल में संशोधन किए जिसके तहत ट्रस्ट की कमेटी में कांग्रेस अध्यक्ष के लिए एक पद स्थायी रूप से था। सरकार ने संशोधन के माध्यम से कांग्रेस अध्यक्ष की जगह नेता प्रतिपक्ष या विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के संसदीय दल के नेता को इसमें शामिल किया। साथ ही कुछ और संशोधनों को भी इसमे शामिल किया गया। एक अन्य संशोधन के अनुसार भारत सरकार को यह शक्ति दी गई कि वह अपने किंही तीन सदस्यों को इस ट्रस्ट की कमेटी में भेज सके, इन सदस्यों का कार्यकाल 5 साल का होगा। कमेटी में भेजे गए सदस्य भारत सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर काम करेंगे और भारत सरकार के पास इन सदस्यों को कभी भी बिना कोई वजह बताए ट्रस्ट की कमेटी से बाहर करने की शक्ति होगी।

एच फोर – कांग्रेस का आरोप

कांग्रेस का आरोप है कि, मोदी सरकार सिर्फ कांग्रेस अध्यक्ष को इस कमेटी से हटाने, उसको और उनकी पार्टी को कमतर दिखाने के लिए इस बिल को लेकर आई है। कांग्रेस का यह भी आरोप है कि, केंद्र सरकार इस संशोधन बिल के माध्यम से आजादी की लड़ाई में कांग्रेस के बलिदान को कम करके इतिहास को बदलने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस के नेताओं ने आरोप लगाया, चूंकि भाजपा के पास स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल अपना कोई नेता नहीं है इसलिए वह कांग्रेस के योगदान को कम करके दिखाने की कोशिश कर रही है।

एच फाइव – सरकार का पक्ष

कांग्रेस के हंगामे और आरोपों का जवाब देते हुए पर्यटन और संस्कृति मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने कहा कि, भारत सरकार स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान शहीद हुए प्रत्येक शहीद को सम्मान देने के लिए प्रतिबद्ध है। मंत्री ने विपक्ष के आरोपों का प्रति उत्तर देते हुए कहा कि, यह ट्रस्ट राष्ट्रीय धरोहर है इसमें किसी व्यक्ति विषेश को शामिल करना देश हित में नहीं है। जिस समय 1951 में 1921 के ट्रस्ट का पुनर्गठन किया गया उसमें किसी राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष को शामिल करने का प्रावधान लोकतंत्रिक मर्यादा के खिलाफ है। इस कमेटी में संवैधानिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति को शामिल किया जाना चाहिए था जो की नेता प्रतिपक्ष या विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के नेता हो सकते है। पूर्व में हुई गलती को सुधारने जैसी बातों के बल पर भारत सरकार का यह बिल राज्यसभा से पास हो गया। अब यह संशोधन बिल का हिस्सा बनकर एक कानून के रूप में जलियांवालबाग के शहीदों के प्रति देश की ओर से सदैव आभार और सम्मान प्रकट करता रहेगा।

गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम

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