होलिका दहन से दूर करें घर की नकारात्मकता
रंगों का त्यौहार होली किसी न किसी रुप में पूरे विश्व में मनायी जाती है, लेकिन संभवतः होलिका दहन का प्रावधान भारत में ही है। यह एक तरह से बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। होलिका दहन, रंगों वाली होली के एक दिन पहले यानी फाल्गुन मास की पूर्णिमा को किया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी आदि नामों से भी जाना जाता है।
होलिका दहन के नियम
वर्ष 2023 में फाल्गुन पूर्णिमा यानी 7 मार्च के प्रदोष काल में होलिका दहन होगा। 7 मार्च को भद्रा पूंछ 12:43 ए एम से 02:01 ए एम और भद्रा मुख – 02:01 ए एम से 04:11 ए एम बजे तक रहेगा। ऐसे में होलिका दहन का शुभ मुहुर्त रात 06:24 पी एम से 08:51 पी एम।
शास्त्रों के अनुसार, होलाष्टक को शुभ नहीं माना जाता है। होली से 8 दिन पहले शुभ या मांगलिक कार्यों को करना वर्जित होता है। इन 8 दिनों में शादी, गृह प्रवेश आदि शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। इस साल 27 फरवरी से प्रारंभ होकर 08 मार्च तक के बीच होलाष्टक है।
पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है। इस दौरान यह ध्यान रखना चाहिए कि उस दिन “भद्रा” न हो। – पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। इसे आसान शब्दों में ऐसे समझ सकते हैं कि उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।
होलिका दहन की कहानी
पौराणिक मान्यता के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानता था, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु के अलावा किसी की पूजा नहीं करता था। यह देख हिरण्यकश्यप काफी क्रोधित हुआ और अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए। होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे आग से कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा।लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद आग से बच गया, जबकि होलिका आग में जलकर भस्म हो गई। उस दिन फाल्गुन मास की पुर्णिमा थी। इसी घटना की याद में होलिका दहन करने का विधान है। बाद में भगवान विष्णु ने लोगों को अत्याचार से निजात दिलाने के लिए नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया।
होलिका दहन का इतिहास
होली के त्यौहार के बारे में कई प्राचीन जानकारी भी है। प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में मिले 16वीं शताब्दी के एक चित्र में होली पर्व का उल्लेख मिलता है। इतना ही नहीं, विंध्य पर्वतों के निकट रामगढ़ में मिले ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है। यह भी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने पूतना राक्षसी का वध किया था। इस खुशी में गोपियों ने उनके साथ होली खेली थी।
होलिका में दें इनकी आहुति
– होलिका दहन के दौरान कच्चे आम, नारियल, भुट्टे, सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, सांकेतिक रुप से नई फसल का कुछ अंश की आहुति दी जाती है।
होलिका दहन पूजा
होलिका दहन से पहले पूजा की जाती है।- इस दौरान होलिका के पास जाकर पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके बैठकर पूजा करनी चाहिए।- कच्चे सूत को होलिका के चारों और तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना होता है।- शुद्ध जल व अन्य पूजन सामग्रियों को एक-एक कर होलिका को समर्पित किया जाता है।- पूजन के बाद जल से अर्ध्य दिया जाता है.- एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि।- नई फसल के अंश जैसे पके चने और गेंहूं की बालियां भी शामिल की जाती हैं।
होली की मान्यता
– मान्यता है कि होलिका की अग्नि में सेक कर लाये गये अनाज खाने से व्यक्ति निरोग रहता है।- होली की बची हुई अग्नि और राख को अगले दिन प्रात: घर में लाने से घर से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं।
होलिका दहन
– होलिका का पूजन करने के बाद होलिका का दहन किया जाता है।- होलिका दहन हमेशा भद्रा के बाद ही करना चाहिए। – चतुर्दशी तिथि या प्रतिपदा में भी होलिका दहन नहीं किया जाता है।- सूर्यास्त से पहले कभी भी होलिका दहन नहीं करना चाहिए।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 2023
होलिका दहन मुहूर्त : 06:24 पी एम से 08:51 पी एम (अवधि – 02 घण्टे 27 मिनट्स)
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ : मार्च 06, 2023 को 04:17 पी एम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त : मार्च 07, 2023 को 06:09 पी एम बजे
रंगवाली होली (धुलैंडी) : मार्च 8, 2023
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भावेश एन पट्टनी
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