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गणगौर पूजा 2025 का महत्व, पूजा विधि और गीत

गणगौर पूजा 2021 का महत्व, पूजा विधि और गीत

गणगौर का त्योहार राजस्थान और उसके सीमावर्ती राज्यों जैसे गुजरात, उत्तरप्रदेश, मध्य प्रदेश में मनाया जाता है, जिसमें इसर यानी भगवान शिव और गौर यानि माता पार्वती की पूजा की जाती है। गणगौर का व्रत साल 2025 में यह त्योहार 31 मार्च 2025, गुरुवार को आ रहा है।

कब मानते हैं गणगौर

गणगौर का त्योहार हर साल मार्च-अप्रैल में मनाया जाता है। ये चैत्र की पहली तारीख यानी होली के दिन से शुरू होती है और 16 दिन तक मनाया जाता है। मुख्य व्रत चैत्र शुक्ल की तीसरी तिथि को होता है। जिसमें कुवारी लड़कियां अच्छे वर को पाने के लिए और सुहागिनें अपने पति के लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती है। 16 दिन के इस उत्सव में महिलाएं हर सुबह माता पार्वती की मिट्टी की मूर्ति बनाती और उसकी पूजा करती है। 2025 में चैत्र शुक्ल की तीज तिथि 31 मार्च 2025 को आएगी।

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गणगौर की पूजा का महत्व

होली के दिन से 16 दिन तक गणगौर का उत्सव मनाया जाता है। मुख्य व्रत चैत्र के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। इसमें सुहागन औरतें, अपने पति के लम्बी उम्र के लिए 16 दिन का व्रत रखती हैं, वही कुंवारी लड़कियां सिर्फ चैत्र तृतीया का व्रत कर अच्छे वर की कामना करती हैं। होली के दूसरे दिन से ही विवाहित और अविवाहित महिलाएं हर रोज गणगौर की पूजा कर आशीर्वाद लेती हैं। नवविवाहित लड़कियां, अपना पहला गणगौर अपने मायके में करती हैं। माना जाता है कि गणगौर का व्रत करने से पति की उम्र लम्बी होती है और कुंवारी लड़कियों को अच्छे वर की प्राप्ति होती है। इसलिए गणगौर के त्योहार को ‘सुहाग पर्व’ के रूप में भी जाना जाता है। गणगौर के दिन महिलाएं सज-धज कर माता गौरी की पूजा करती हैं, और पति की लम्बे उम्र की कामना करती है। वैसे तो ये त्योहार राजस्थान के साथ सीमान्त प्रदेशों में भी मनाया जाता है, लेकिन राजस्थान में इसकी छटा देखते ही बनती हैं।

कैसे मानते हैं गणगौर का त्योहार

गणगौर का व्रत करने वाली लड़कियां, होलिका दहन के दूसरे दिन, उसकी राख लाकर उसके आठ पिंड बनाती हैं और साथ ही गोबर के आठ पिंड बनती है। उन सोलह पिंडों की पूजा दूब रख कर हर रोज की जाती है, साथ ही दीवार पर काजल और रोली से पूजते हैं और टिकी लगते हैं। शीतलाष्टमी तक इन पिंडों की पूजा की जाती है और उसके बाद इनसे गणगौर की मूर्तियां बनाकर उसकी पूजा करते हैं।

हर रोज ब्रह्म मुहूर्त में गणगौर की पूजा करते हुए गीत गया जाता है और गणगौर की कहानी सुनी जाती है। दोपहर को गणगौर का भोग लगाया जाता है और गणगौर को कुएं का पानी पिलाया जाता है। पानी पिलाने के बाद गणगौर को गेहूं चने की घुघरी का प्रसाद चढ़ा कर सब में बांटा जाता है। प्रतिदिन शाम को क्रम से हर लड़की के घर गणगौर ले जाई जाती है, जहां गणगौर का ’’बिन्दौरा’’ निकाला जाता है तथा घर के पुरुष लड़कियों को भेंट देते हैं। गणगौर विसर्जन के एक दिन पहले गणगौर का सिंजारा किया जाता है। अंतिम दिन के लिए सभी व्रत करने वाली महिलाएं मेहंदी लगती हैं और नए कपड़े पहनती हैं। आखिरी दिन नदी या तालाब में गणगौर का विसर्जन कर विदाई की जाती है। गणगौर की विदाई से श्रावण की तीज तक कोई लोक त्योहार नहीं आते इसलिए कहा जाता है – तीज त्योहार बावड़ी ले डूबी गणगौर।

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गणगौर की व्रत कथा

एक समय की बात है, भगवान शंकर, माता पार्वती एवं नारद जी घूमने के लिए साथ चल दिए। वह चलते-चलते एक गांव में पहुंचे, वो चैत्र शुक्ल तृतीया का दिन था। उनका आना सुनकर गांव की सभी गरीब स्त्रियां उनके स्वागत के लिए थालियों में हल्दी व अक्षत लेकर पूजा करने के लिए पहुंच गई। पार्वती जी ने उनके पूजा भाव से खुश होकर सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया। सभी महिलाएं अटल सुहाग प्राप्त कर लौटी।थोड़ी देर बाद धनी वर्ग की स्त्रियां तरह-तरह के पकवान सोने चांदी के थाली में सजाकर सोलह श्रृंगार करके शिव और पार्वती के सामने पहुंची। इन स्त्रियों को देखकर भगवान शंकर ने पार्वती से कहा तुमने सारा सुहाग रस तो निर्धन वर्ग की स्त्रियों को ही दे दिया। अब इन्हें क्या दोगी? पार्वती जी बोली – उन स्त्रियों को ऊपरी पदार्थों से निर्मित रस दिया गया है।किंतु मैं इन धनी वर्ग की स्त्रियों को अपनी अंगुली चीरकर रक्त का सुहाग रस दूंगी, इससे वे मेरे सामान सौभाग्यवती हो जाएंगी। जब इन स्त्रियों ने शिव पार्वती पूजन समाप्त कर लिया तब पार्वती जी ने अपनी अंगुली चीर कर उसके रक्त को उनके ऊपर छिड़क दिया जिस पर जैसे छींटे पड़े उसने वैसा ही सुहाग पा लिया। पार्वती जी ने कहा तुम सब आभूषणों का त्याग कर, माया मोह से रहित हो जाओ और तन, मन से पति की सेवा करो । तुम्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी। इसके बाद पार्वती जी भगवान शंकर से आज्ञा लेकर नदी में स्नान करने चली गई । स्नान करने के पश्चात बालू की शिव जी की मूर्ति बनाकर उन्होंने पूजन किया।भोग लगाया तथा प्रदक्षिणा करके दो कणों का प्रसाद ग्रहण कर मस्तक पर टीका लगाया। उसी समय उस पार्थिव लिंग से शिवजी प्रकट हुए तथा पार्वती को वरदान दिया आज के दिन जो स्त्री मेरा पूजन और तुम्हारा व्रत करेगी उसका पति चिरंजीवी रहेगा तथा मोक्ष को प्राप्त होगा। भगवान शिव यह वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए । इतना सब करते-करते पार्वती जी को काफी समय लग गया। पार्वती जी नदी के तट से चलकर उस स्थान पर आई जहां पर भगवान शंकर व नारद जी को छोड़कर गई थी। शिवजी ने विलंब से आने का कारण पूछा तो इस पर पार्वती जी बोली मेरे भाई भावज नदी किनारे मिल गए थे। उन्होंने मुझसे दूध भात खाने तथा ठहरने का आग्रह किया।

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गणगौर का गीत

गणगौर के त्योहार में गीत-संगीत का बड़ा महत्व है। ये औरतों के हर्ष और उल्लास को दर्शाता है। सभी औरतें इकठ्ठा होती और नाचती जाती हैं। गणगौर का एक गीत इस प्रकार है :
गोरडयां गणगौरयां त्यौहार आ गयो पूज रही गणगौर सुणण्यां सुगण मना सुहाग साथै सोला दिन गणगौर हरी-हरी दूबा हाथां में पूज रही गणगौर फूल पांखडयां दूब-पाठा माली ल्यादैतौड़ यै तो पाठा नै चिटकाती बीरा बेल बंधावै ओर गोरडयां..!

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गणेशजी के आशीर्वाद सहित
भावेश एन पट्टनी
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम

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