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रूप चौदस 2024 : कैसे मनाएं रूप चौदस और निखारे रूप

रूप चौदस 2021 : कैसे मनाएं रूप चौदस और निखारे रूप

कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी को मनाये जाने वाले पर्व रूप चौदस को नरक चतुर्दशी, छोटी दीपावली, नरक निवारण चतुर्दशी या काली चौदस के रुप में भी जाना जाता है। इस साल यानी 2024 में रुप चौदस या काली चौदस या नरक चतुर्दशी का त्योहार 31 अक्टूबर, गुरूवार को मनाया जाएगा। दिवाली के पांच दिनों के त्यौहार में यह धन तेरस के बाद आता है। रूप चौदस के बाद दिवाली – लक्ष्मी पूजन के अलावा अगले दिन अन्न कूट, गोवर्धन पूजा और अंत में भाई दूज मनाया जाता है। इसे छोटी दीपावली के तौर पर भी जाना जाता है। इस दिन स्वच्छ होने के बाद यमराज का तर्पण कर तीन अंजलि जल अर्पित किया जाता है और शाम के वक्त दीपक जलाए जाते हैं। मान्यता है कि तेरस, चौदस और अमावस्या के दिन दीपक जलाने से यम के प्रकोप से मुक्ति मिलती है तथा लक्ष्मी जी का साथ बना रहता है। इस दिन हनुमान जी की विशेष पूजा भी की जाती है। बचपन में हनुमान जी ने सूर्य को खाने की वस्तु समझ कर अपने मुंह में ले लिया था, इस कारण चारों और अंधकार फैल गया। बाद में इंद्र देवता ने सूर्य को मुक्त करवाया था।

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रूप चौदस का महत्व: क्या है रूप चौदस

रूप चौदस सौन्दर्य को निखारने का दिन है। भगवान की भक्ति व पूजा के साथ खुद के शरीर की देखभाल भी जरुरी होती है। ऐसे में रूप चौदस का यह दिन स्वास्थ्य के साथ सुंदरता और रूप की आवश्यकता का सन्देश देता है। जिस प्रकार महिलाओं के लिए सुहाग पड़वा का स्नान माना जाता है, उसी प्रकार रूप चौदस पुरुषों के लिए शुद्घि स्नान माना गया है। वर्षभर ज्ञात, अज्ञात दोषों के निवारणार्थ इस दिन स्नान करने का शास्त्रों में काफी महत्व बताया गया है। माना जाता है कि सूर्योदय के पहले चंद्र दर्शन के समय में उबटन, सुगंधित तेल से स्नान करना चाहिए। सूर्योदय के बाद स्नन करने वाले को नर्क समान यातना भोगनी पड़ती है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि ऋतु परिवर्तन के कारण त्वचा में आने वाले परिवर्तन से बचने के लिए भी विशेष तरीके से स्नान किया जाता है। रूप चौदस पर विशेष उबटन के जरिए और गर्मी और वर्षा ऋतु के दौरान बनी परत को हटाने के लिए विशेष उबटन का स्नान करना चाहिए।

अभ्यंग स्नान

नहाने के पानी में चिचड़ी (अपामार्ग) के पत्ते डाले जाते हैं। इस स्नान को अभ्यंग स्नान कहते है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर वध के बाद तेल से स्नान किया था और तब से यह प्रथा शुरू हुई। इस स्नान से नरक से मुक्ति मिलती है, इसलिए इसे नरक चतुर्दशी भी कहते हैं।दिवाली के पांच दिनों में श्रीयंत्र खरीदने और उसकी पूजा से मिलती है अचूक धनसंपत्ति। सही और प्रमाणित तथा विशेष ज्योतिषियों की ओर से अभिमंत्रित गोल्डन प्लेटेड श्रीयंत्र खरीदने के लिए यहां क्लिक करें और सालभर पाएं अभूतपूर्व लाभ।

अलग-अलग जगहों पर रुप चौदस मनाने के तरीके

दक्षिण भारतदक्षिण भारत में इसे विशेष तरीके से मनाया जाता है। इस दिन लोग सूर्योदय से पहले उठकर तेल और कुमकुम को मिलाकर रक्त का रूप देते हैं। इसके बाद नरकासुर के सिर तोड़े जाने के प्रतीक के तौर पर एक कड़वा फल तोड़ते हैं। फल तोड़ने के बाद कुमकुम वाला तेल मस्तक पर लगाने के बाद तेल और चन्दन पाउडर आदि मिलाकर इससे स्नान किया जाता है।

बंगाल और गुजरात में मनाते हैं काली चौदस

बंगाल में इसे काली चौदस के नाम से महाकाली देवी शक्ति के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। काली मां की बड़ी बड़ी मूर्तियां बनाकर पूजा की जाती है। यह दिन आलस्य और अन्य बुराईयों को त्याग कर जीवन को रोशन करने वाला माना जाता है। गुजरात में लोग इस दिन घर की साफ-सफाई करके बुरी शक्तियों को दूर करने की कोशिश करते हैं।

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रूप चौदस की कहानीभगवान के ध्यान में तल्लीन एक योगी ने समाधि लगाई, लेकिन कुछ ही समय बाद उसके शरीर और बालों में कीड़े पड़ गये। इससे परेशान योगी की समाधी टूट गई। अपने शरीर की दुर्दशा देख योगी काफी दुखी हुआ। इस दौरान नारदजी वहां से वीणा बजाते हुए गुजर रहे थे। योगी ने नारद जी को रोककर पूछा कि प्रभु चिंतन में लीन होने की चाह होने पर भी उसकी यह दुर्दशा क्यों हुई। इस पर नारद जी बोले कि आपने प्रभु चिंतन तो किया लेकिन देह आचार नहीं किया। समाधि में लीन होने से पहले देह आचार कर लेने से यह परेशानी नहीं होती। इस पर योगीराज ने परेशानी दूर करने के बारे में पूछा तो नारद जी ने कहा की रूप चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर शरीर पर तेल की मालिश कर पानी में अपामार्ग ( चिचड़ी ) का पौधा डालकर उससे स्नान करने के बाद व्रत रखते हुए विधि विधान से भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करने पर शरीर स्वस्थ और रूपवान हो जाएगा। नारद जी की बात को मान योगिराज ने वही सब किया जिससे वे स्वस्थ और रूपवान हो गए। माना जाता है कि उसी वक्त से रुप चौदस या नरक चतुर्दशी मनाने की परंपरा शुरू हुई।

दैत्यराज बलि की कथा

एक अन्य पौराणिक मान्यता के मुताबिक भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि के बीच दैत्यराज बलि के राज्य को 3 कदम में नाप दिया था। परम दानी राजा बलि ने अपना समस्त राज्य भगवान वामन को दान कर दिया। इसके बाद भगवान वामन ने बलि से वरदान मांगने को कहा तो दैत्यराज बलि ने कहा कि त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि में तीनों दिनों में हर वर्ष उनका राज्य रहना चाहिए और इस दौरान जो मनुष्य उनके राज्य में दीपावली मनाए उसके घर लक्ष्मी का वास हो और चतुर्दशी के दिन नरक के लिए दीपों का दान करे, उनके पितर नरक में ना रहें और ना ही उन्हें यमराज की यातना सहनी पड़े। भगवान वामन ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया और तब से ही नरक चतुर्दशी व्रत, पूजन और दीपदान का शुरू हुआ।
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नरकासुर वध

प्राचीन काल में नरकासुर राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवता और साधु संतों को परेशान करने के साथ ही देवता और संतों की 16 हज़ार स्त्रियों को बंधक बना लिया। नरकासुर के अत्याचारों से परेशान देवता और साधु-संत भगवान श्री कृष्ण की शरण में गए। नरकासुर को स्त्री के हाथों से मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया और उसकी कैद से 16 हजार स्त्रियों को आजाद कराया। बाद में ये सभी भगवान श्री कृष्ण की 16 हजार पट रानियां के तौर पर जानी जाने लगीं।

नरक चतुर्दशी तिथि एवं मुहूर्त

नरक चतुर्दशी 2024 – बुधवार, 30 अक्टूबर 2024
अभ्यंग स्नान समय : 05:45 AM to 07:35 AM

अवधि
: 1 घंटे 50 मिनट

नरक चतुर्दशी के नियम

1। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन चंद्रोदय या सूर्योदय (सूर्योदय से सामान्यत: 1 घंटे 36 मिनट पहले का समय) होने पर नरक चतुर्दशी मनाई जाती है।2। यदि दोनों दिन चतुर्दशी तिथि सूर्योदय अथवा चंद्रोदय का स्पर्श करती है तो नरक चतुर्दशी पहले दिन मनाने का विधान है।3। नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले चंद्रोदय या फिर अरुणोदय होने पर तेल अभ्यंग ( मालिश) और यम तर्पण करने की परंपरा है।

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नरक चतुर्दशी पूजन विधि

1। नरक चतुर्दशी के दिन प्रात:काल सूर्योदय से पहले स्नान करने का महत्व है। इस दौरान तिल के तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए, उसके बाद अपामार्ग यानि चिरचिरा (औधषीय पौधा) को सिर के ऊपर से चारों ओर 3 बार घुमाना चाहिए।

2। नरक चतुर्दशी से पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी के दिन एक लोटे में पानी भरकर रखा जाता है, जिसे नरक चतुर्दशी के दिन नहाने के पानी में मिलाकर स्नान करने की परंपरा है। मान्यता है कि ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है।

3। स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करने पर मनुष्य द्वारा वर्ष भर किए गए पापों का नाश हो जाता है।

4। घर के मुख्य द्वार से बाहर यमराज के लिए तेल का दीपक जलाएं।

5। नरक चतुर्दशी के दिन शाम के समय सभी देवताओं की पूजन के बाद तेल के दीपक जलाकर घर की चौखट के दोनों ओर, घर के बाहर व कार्य स्थल के प्रवेश द्वार पर रख दें। मान्यता है कि ऐसा करने से लक्ष्मी जी सदैव घर में निवास करती हैं।

6। रूप चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से सौंदर्य की प्राप्ति होती है।

7। इस दिन निशीथ काल (अर्धरात्रि का समय) में घर के बेकार सामान फेंक देना चाहिए। मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के अगले दिन दीपावली को लक्ष्मी जी घर में प्रवेश करती है, इसलिए दरिद्रता यानि गंदगी को घर से निकाल देना चाहिए। दिवाली की शुभकामनाओं के साथ

गणेशजी के आशीर्वाद सहित
भावेश एन पट्टनी
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम

 

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