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परशुराम जयंती विशेष – क्या सच में परशुराम ने संपूर्ण क्षत्रियों का समूल नाश कर दिया था?

परशुराम जयंती विशेष - क्या सच में परशुराम ने संपूर्ण क्षत्रियों का समूल नाश कर दिया था?

साल 2020 में परशुराम जयंती 26 अप्रैल को मनाई जायेगी, हिंदू कैलेंडर के अनुसार वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन को परशुराम जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को देशभर में अक्षय तृतया के रूप में भी मनाया जाता है। पौराणिक धर्म पुराणों व ग्रथों के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म छह उच्च ग्रहों के योग में हुआ था। ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के घर जन्मे परशुराम का जन्म बेहद ही दुर्लभ ग्रह संयोग में हुआ जिसके कारण उन्हे शंकर और पित्र भक्ति का अन्यय आत्म बल प्राप्त हुआ। वर्षों तक पिता और भगवान शंकर की तपस्या से उन्हे कई वरदान प्राप्त हुए। भगवान शंकर ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हे एक अमोघ अस्त्र परशु प्रदान किया। कई पौराणिक कथाओं में परशुराम के शौर्य और पराक्रम की गाथाओं का उल्लेख मिलता है। परशुराम द्वारा अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए हैहय वंश के दुराचारी राजा स्हत्रबाहु और उनके कुल समूल नाश करने के लिए भी जाना जाता है। हम यहां यह भी जानने की कोशिश करेंगे की क्या सच में भगवान परशुराम ने 21 बार क्षत्रियों का समूल नाश कर दिया था, या सत्य को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है?

परशुराम जयंती मुहूर्त और पूजा विधि

भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक भगवान परशुराम को नारायण का छठा अवतार माना जाता है। उनके अवतरण दिवस पर बढ़ी मात्रा में लोग एकत्र हो जुलूस और अन्य धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करते है। इस दिन विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा करने का महत्व होता है। देश के कुछ हिस्सों में भगवान परशुराम जी के मंदिर भी देखने को मिलते है। लेकिन सामान्य तौर पर उन्हे विष्णु रूप में ही पूजा जाता है। परशुराम जी भगवान शंकर के परम भक्त है, इसलिए इस दिन भगवान शंकर की पूजा से परशुराम जी की अनन्या कृपा प्राप्त होती है। परशुराम जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर भगवान विष्णु अथवा शंकर जी की आरधना करना चाहिए। इस दिन भगवान शिव के रूद्राभिषेक का भी विशेष महत्व है। पूजा और ध्यान साधना के अलावा इस दिन दान पुण्य करने से भी जन्म जन्मांतर के दुखों का नाश होता है।

परशुराम जयंती कब है?

परशुराम जयंती की तारीख को लेकर कई बार असमंजस की स्थिति पैदा हो जाती है, क्योंकि भगवान परशुराम जी का जन्मोत्सव हिंदू कैलेंडर के अनुसार मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर तिथि के अनुसार चलते है, और तिथि का निर्धारण वैदिक ज्योतिष की कुछ अलग अलग पद्धितियों से अनुसार किया जाता है। इसलिए कई बार एक तिथि या त्यौहार अंग्रेजी कैलेंडर के दो दिवसों तक मनाई जाती है। ऐसी स्थिति में सामान्य जन मानस में त्यौहार की तारीख को लेकर असमंजस की स्थिति पैदा हो जाती है। परशुराम जयंती 2020 भी अंग्रेजी कैलेंडर के 25 अप्रैल को शुरू होकर 26 अप्रैल तक जारी रहेगी।

परशुराम जयंती 2020 तारीख

प्रारंभतिथि- अक्षय तृतीयादिनांक- 25 अप्रैल शनिवार, 2020समय – 11:51 AMसमाप्ततिथि- अक्षय तृतीयादिनांक- 26 अप्रैल रविवार, 2020समय – 01:22 PMउपरोक्त समयावधि में किसी भी तरह का दान पुण्य, उपवास और तप का जातक को अक्षय फल प्राप्त होता है। अर्थात इस दिन किये गये धार्मिक कार्य अथवा दान पुण्य का फल मोक्ष तक साथ रहता है।

परशुराम की कथा व महत्व

मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म छह उच्च ग्रहों के योग में हुआ था। इसलिए वे प्रतापी, तेजस्वी, ओजस्वी, चिरंजीवी और वर्चस्वी महापुरूष के रूप में आज भी पूजे जाते है। कथाओं के अनुसार उन्होंने अपने पिता की आज्ञा पाकर अपनी माता का गला काट दिया था। लेकिन पिता से वरदान स्वरूप माता के लिए पुनः जीवन मांगकर उन्होंने दोनों के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह किया। कुछ कथाओं के अनुसार अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए भगवान परशुराम जी ने 21 बार क्षत्रियों को धरती से खत्म कर दिया था। लेकिन कुछ अन्य पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार उन्होंने सहस्त्रार्जुन के पुत्रों से अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए सम्पूर्ण क्षत्रियों का नहीं बल्कि सिर्फ क्षत्रिय वर्ण के हैहय वंश का धरती से समूल नाश कर दिया था। कई धर्म गुरू ग्रंथों के आधार पर यह बताते है कि हैहय वंश की जगह संपूर्ण क्षत्रिय वंश लिखे जाने की शुरूआत 10वीं शताब्दी के बाद हुई।

परशुराम जन्मस्थली जानापाव

मान्यता के अनुसार अवंतिका के मालवा-निमाड़ प्रांत की जानावाप की पहाड़ियों पर महर्षि जमदिग्न और माता रेणुका का आश्रम था। जहां वे अपने पांच पुत्रों रूक्मवान, सुखेण, वसु, विष्ववानस और राम के साथ निवास करते है। राम ने भगवान शंकर की अन्नय भक्ति की जिससे प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हे अमोघ अस्त्र परशु प्रदान किया, परशु धारण करने के कारण ही उनके नाम के साथ परशु भी जुड़ गया और उन्हे परशुराम कहा जाने लगा। परशुराम जयंती पर जानापाव की पहाड़ियों पर कई धार्मिक कार्यों का आयोजन किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार इन्ही पहाड़ियों से कुल साढ़े सात नदियों का जन्म होता है। इन नदियों में चंबल और गंभीर जैसी विशाल नदियां भी शामिल है।

गणेशजी के आशीर्वाद सहित
भावेश एन पट्टनी
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम

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