क्या आप राहु से है परेशान, तो आखिर कैसे पाएं राहु के दुष्प्रभावों से मुक्ति?

क्या आप राहु से है परेशान, तो आखिर कैसे पाएं राहु के दुष्प्रभावों से मुक्ति?

हम सभी जानते हैं कि राहु की छाया जिस पर पड़ती है, उसके ग्रहों पर बहुत से प्रभाव पड़ते हैं। इसीलिए, राहु (rahu) को छाया ग्रह (शैडो प्लेनेट) भी माना जाता है, और ज्योतिषियों की दृष्टि से इसे स्वरभानु कहा जाता है। राहु, चन्द्रमा का उत्तरी सिरा है और इसे ड्रैगन का सर भी कहा जाता है। राहु का नाम संस्कृत शब्द से “रा” लिया गया है जो कि गुप्त और रहस्य को संदर्भित करता है, इसलिए विद्वानों ने इसे भयंका के नाम से भी उल्लेखित किया है।

हिंसक, आक्रामक, निर्दयी, शरारती, गुप्त और रहस्यमय होना राहु ग्रह की विशेषता है। इस ग्रह की छाया जिस मनुष्य पर पड़ती है वह नास्तिक भी हो सकता है साथ ही यह साजिश रचने, षडयंत्र और साजिश को प्रेरित करने के लिए भी उकसाता है। जब राहु ग्रह (rahu) के रूप में कार्य करना शुरू करता है, तो यह अन्य ग्रह के साथ जुड़कर मूल विशेषताओं को बढ़ाता है। परिणामस्वरुप, मनुष्य के जीवन में परिस्थितियां बदलने लगती है। नीचे राहु (rahu) और अन्य भावों के बीच संबंध के बारे में बता रहे हैं, जिससे आपको इसके विभिन्न दुष्प्रभावों और कारणों के बारे में जानने में मदद मिलेगी।

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वैदिक ज्योतिष के अनुसार राहु के उज्जवल पक्ष के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए पढ़ें!


1. प्रथम भाव में राहु (Rahu) :

प्रथम भाव में राहु (rahu) ठीक उस हाथी के सामान होता है जो अपने राजा के साथ मस्ती कर रहा है। प्रथम भाव में यह समृद्धि का प्रशासक है। लेकिन यदि किसी पर राहु का अशुभ प्रभाव पड़ता है तो यह अशुभ प्रभाव 42 वर्ष बाद समाप्त होता है।

अशुभ फल :

  • जातक का अपनी पत्नी के साथ अच्छा संबंध नहीं होता।
  • उनका कई स्त्रियों से संबंध होता है।
  • कई स्त्रियों से संबंध बनाने के बाद भी वह संतुष्ट नहीं होते।
  • गृहस्थ जीवन के उत्तरदायित्व ठीक से नहीं निभा पाते।
  • ज्यादातर धन खुद की अभिलाषा पर खर्च करते हैं।
  • किसी भी काम को पूरा करने में सक्षम नहीं होते और बार – बार अपनी नौकरी बदलते रहते हैं।
  • शत्रु से भयभीत रहते हैं।

शुभ फल :

यदि शुक्र जातक के सप्तम भाव में हो तो यह जातक को धनवान बनाता है, लेकिन उसके कष्टों की कीमत उसकी पत्नी को चुकानी पड़ती है।

उपाय :

  • राहु के नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए यह काम करें:
  • गुड़, गेहूं और तांबे का दान करें।
  • गुड़, गेहूं या तांबे में से किसी एक वस्तु को तांबे के बर्तन में रखें और रविवार के दिन इसे बहते जल में बहा दें।
  • नीले रंग के कपड़े नहीं पहने।
  • गले में चांदी की चेन पहने।
  • नारियल को बहते पानी में बहा दें।

इसके अलावा, यदि आप इस बात से अनभिज्ञ हैं कि आपकी जन्म कुंडली में राहु कौन से भाव में है या सुनिश्चित नहीं है, तो अभी हमारे द्वारा अपनी जन्मपत्री प्राप्त करने के लिए संपर्क करें।


2. दूसरे भाव में राहु (Rahu) :

दूसरे भाव में राहु (rahu) का होना परिवार और धन के लिए प्रतिकूल है। साथ ही जिस जातक की कुंडली के दूसरे भाव में राहु है उसकी मृत्यु और कोई भी गंभीर दुर्घटना होने की संभावना होती है।

अशुभ प्रभाव :

  • कुंडली में शनि नीच है तो जातक निर्धन हो जाता है।
  • जातक का पारिवारिक जीवन कष्टमय होता है।
  • मनुष्य पेट के विकारों से ग्रसित रहता है।
  • यह जातक के वाणी को कठोर बनाता है।
  • जीवन साथी की अचानक मृत्यु हो सकती है।

शुभ फल :

  • यदि दूसरा भाव बृहस्पति और शुक्र से प्रभावित है तो जातक धन से युक्त आराम भरी जिंदगी जीता है।
  • मनुष्य दीर्घायु होता है।
  • मान- सम्मान और प्रतिष्ठा बढ़ती है।
  • धार्मिक प्रतिष्ठा और उससे प्राप्त वस्तुओं को सम्मान देते हैं।
  • पारिवारिक जीवन अच्छा होता है।

उपाय :

  • चांदी की एक छोटी ठोस गेंद अपने साथ रखें।
  • ससुराल पक्ष से अच्छे संबंध रखें और उनसे बिजली के उपकरण नहीं लें।
  • माता का अपमान नहीं करें और उनसे अच्छे संबंध बनाए रखें।
  • माता के साथ संबंध अच्छे बनाए रखना इस अवधि में मददगार साबित होगा।
  • जातक बृहस्पति से सम्बंधित चीजें जैसे सोने की एक छोटी ठोस गेंद, पीला कपड़ा या केसर उपयोग में लाएं।

3. तीसरे भाव में राहु (Rahu) :

यदि राहु (rahu) तीसरे भाव में है तो यह जातक को समाज में उच्च प्रतिष्ठा दिलवाता है। इसके प्रभाव से जातक की दूरदर्शिता बढ़ती है, जिससे उसके सभी सपने सच होने लगते हैं और कोई भी उसके आस पास आसानी से खड़ा नहीं हो पाता। इनके कलम में धार होती है और यह अधिक आयु तक समृद्ध जीवन जीते हैं। लेकिन साढ़े साती जैसे अशुभ समय से जुड़ कर राहु बहुत बुरा प्रभाव डालता है।

अशुभ फल :

  • राहु के साथ बुध या सूर्य होने की स्थिति में ग्रहण दोष होता है।
  • अभिमानी और आलसी हो जाते हैं।
  • शकी मिजाज के हो जाते हैं।
  • बेमतलब विरोध करते हैं और अपनों से मनमुटाव कर लेते हैं।
  • राहु के नीच की स्थिति में चंद्रमा कष्ट का कारण बनता है।

शुभ फल :

  • जातक को सफलता और वैभव मिलता है।
  • निरोगी काया मिलती है और बलवान होते हैं।
  • विद्धवान और भाग्यशाली होते हैं।
  • मान सम्मान और यश की प्राप्ति होती है।
  • मित्रतापूर्ण व्यवहार करते हैं।
  • काम को लग्नता से करते हैं।
  • शुक्र की स्थिति शुभ होने से ससुराल पक्ष को धन मिलने की संभावना होती है।

उपाय :

  • प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें और चांदी पहने।
  • 400 ग्राम धनिया और बादाम बहते पानी में डालने से इसके हानिकारक प्रभावों से कुछ राहत मिलती है।
  • किसी को उधारी न दें।
  • तामसिक पदार्थों जैसे मांस, मदिरा और व्याभिचार से दूरी बनाकर रखें।
  • घर में हाथीदांत और चमड़े से बनी वस्तुएं न रखें।
  • वाणी पर नियंत्रण रखें और किसी से बहस न करें।
  • छ: नारियल अपने ऊपर वारकर नदी में बहाएं।
  • माथे पर केसर, चंदन या हल्दी का निरंतर तिलक लगाएं।
  • कच्चा दूध भैरव महाराज को चढ़ाएं।
  • भोजन कक्ष में बैठकर भोजन करें।

4. चतुर्थ भाव में राहु (Rahu) :

चतुर्थ भाव चंद्रमा का होता है। इसलिए इस भाव में राहु (rahu) शुभ होता है जो जातक को स्वभाव से बुद्धिमान, धनवान बनाता है। जातक समझदारी से चीजों पर धन खर्च करने वाला होता है। यदि इस भाव में शुक्र भी शुभ हो तो विवाह के बाद ससुराल पक्ष को धन लाभ हो सकता है। साथ ही इस समय तीर्थ यात्रा पर जाना फायदेमंद होता है।

अशुभ फल :

  • जातक हर समय किसी न किसी चीज से असंतुष्ट रहता है।
  • माता – पिता के साथ अच्छे संबंध नहीं होते।
  • धन का सुख नहीं भोग पाते।
  • स्वास्थ्य संबंधी समस्या बनी रहती है।
  • चंद्रमा कमजोर हो और राहु पापी तब पुश्तैनी संपत्ति का नुकसान होता है।
  • शौचालय बदलना, लकड़ी का कोयला इकट्ठा करना, जमीन में ओवन स्थापित करना या घर की छत को बदलना इसके हानिकारक प्रभाव का संकेत है।

शुभ फल :

  • जब भाव में चन्द्रमा हो तो जातक आसानी से धन कमाता है और जिस रिश्तेदार का भाव बुध ग्रह से जुड़ा होता है उन लोगों से लाभ प्राप्त करता है।
  • जमीन – जायदाद का लाभ होता है।
  • धर्मात्मा की राह पर चलते हुए दान धरम करता है।

उपाय :

  • शिव जी की उपासना करें।
  • चांदी का आभूषण धारण करें।
  • 400 ग्राम धनिया या बादाम को पानी में विसर्जित करें।
  • भोजन कक्ष में ही भोजन करें।
  • शौचालय, सीढ़ियां और स्नानघर को साफ़ रखें।
  • शराब, मांस, व्याभिचार जैसे बुरे कर्मों से दूर रहें।
  • अपने कर्म और कार्यों में लापरवाही न बरतें।

5. पंचम भाव में राहु (Rahu) :

पंचम भाव सूर्य का होता है। राहु (rahu) के शुभ होने पर यह जातक को धनवान, बुद्धिमान और अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करता है। आय का स्रोत बढ़ाने के साथ साथ यह जातक को भक्त और दार्शनिक भी बनाता है।

अशुभ फल :

  • राहु अशुभ हो तो गर्भपात हो सकता है।
  • बेटे के जन्म के बाद, पत्नी का स्वास्थ्य लगभग 12 साल तक ख़राब रह सकता है।
  • अगर बृहस्पति भी पंचम भाव में है तो उनके पिता का स्वास्थ्य भी ख़राब हो सकता है।
  • पढ़ाई – लिखाई में मन नहीं लगता
  • पेट से संबंधित विकार से परेशान रहते हैं।
  • अत्यधिक प्रयास के बाद ही धन की प्राप्ति होती है।
  • जीवन संगिनी से मनमुटाव बना रहता है।

शुभ फल :

  • जातक तीक्ष्ण बुद्धि का होता है।
  • स्वभाव से दयालु और कर्मठ होता है।
  • व्यवसाय में अत्यधिक लाभ होता है।
  • प्रसिद्धि मिलती है।

उपाय :

  • घर में चांदी से बना हाथी रखें।
  • तामसिक/मांसाहारी भोजन से दूर रहें।
  • अपनी पत्नी से दोबारा शादी करें।

6. छठे भाव में राहु (Rahu) :

चक्र का छठा भाव बुध और केतु से प्रभावित होता है, जिससे यहां पर राहु (rahu) उच्च होता है। यह जातकों को अच्छा फल देता है और इसके जातक कपड़ों पर अधिक धन खर्च करते हैं और जीवन का भरपूर आनंद लेते हैं।
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अशुभ फल :

  • भाइयों और दोस्तों को नुकसान पहुंचाते हैं।
  • जब बुध या मंगल बारहवें भाव में होता है, तब राहु विभिन्न बीमारियों से ग्रसित या धन की हानि से पीड़ित हो सकते हैं।
  • काम पर जाते समय छींक आना अच्छा संकेत नहीं है, सावधानी बरतें।

शुभ फल:

  • जब गुरु केंद्र में होता है तब अष्टलक्ष्मी नामक शुभ योग बनता है, जिससे लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
  • जातक ईश्वर के प्रति श्रद्धावान होता है।
  • सम्मान, यश और कीर्ति प्राप्त करता है।
  • दुर्घटना की संभावना कम होती है।
  • आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।

उपाय :

  • एकादशी या गुरुवार का व्रत रखें।
  • हनुमान जी या दुर्गा माता की उपासना करें।
  • काला कुत्ता पालें।
  • अपनी जेब में सीसे की कील, काला सूरमा रखें।
  • संतान, भाई और बहन से किसी तरह का विवाद नहीं करें।
  • मन में चोरी, झूठ बोलने और धोखा देने का विचार न रखें।
  • शराब, मांस और व्यभिचार से दूरी बना कर रखें।
  • व्यर्थ पैसा न बहाएं।

7. सातवें भाव में राहु (Rahu) :

यदि राहु (rahu) सप्तम भाव में है तो जातक धनवान होगा लेकिन उनकी धर्मपत्नी का स्वास्थ्य खराब रहेगा। वह अपने दुश्मनों पर विजय पाएंगे और यदि उनका विवाह इक्कीस वर्ष की आयु से पहले हो रहा है तो यह अशुभ होगा, ऐसी स्थिति से बचें।

अशुभ फल :

बुध, शुक्र या केतु के 11 वें घर में होने से पत्नी, बहन या बच्चों के साथ अक्सर विवाद होगा।
व्यक्ति अहंकारी और असंतुष्ट हो जाता है।
राहु से जुड़े व्यापार में नुकसान होगा।

शुभ फल :

  • अच्छा जीवन साथी मिलता है उनमें परस्पर प्रेम बना रहता है।
  • अच्छी नौकरी मिलती है और व्यवसाय में लाभ होता है।
  • सरकार के साथ अच्छे संबंध होंगे।
  • कभी सिर दर्द नहीं होगा।

उपाय :

  • 21 साल की उम्र से पहले शादी नहीं करें।
  • छह नारियल नदी में प्रवाहित करें।
  • कुत्ता नहीं पालें।
  • बदनामी वाले कार्यों से बचें।
  • पत्नी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।
  • राहु से संबंधित व्यापार बिल्कुल नहीं करें।
  • गाय को चारा खिलाएं।
  • हर शुक्रवार को लक्ष्मी मंदिर में पूजा करके केसर का तिलक लगाएं।
  • बुध और शुक्र को प्रबल करें।

8. आठवें भाव में राहु (Rahu) :

चक्र के आठवें भाव का संबंध शनि और मंगल से है, इसलिए राहु (rahu) इस भाव में अशुभ प्रभाव देता है।

अशुभ फल :

  • कोर्ट-कचहरी के मामलों में बेवजह जातक के पैसे खर्च होते हैं।
  • जातक आलसी, वाचाल और जल्दबाजी में काम करने वाला होता है।
  • पैतृक संपत्ति से वंचित होता है।
  • बुद्धिमत्ता में कमी आती है।

शुभ फल :

  • जातक शरीर से बलशाली होता है।
  • सरकारी प्रतिनिधियों, राजाओं और ब्राह्मणों की कृपा बनी रहती है।
  • धनवान होने के साथ – साथ धार्मिक कार्यों में रुचि होती है।
  • 26 से 36 वर्ष के बीच भाग्य का उदय होता है।
  • बुढ़ापा सुखमय होता है।
  • गाय पालने वाले जातकों के पास पशुधन अत्याधिक मात्रा में होता है।

उपाय :

  • चांदी का चौकोर टुकड़ा रखें।
  • सोते समय तकिये के नीचे सौंफ रखें।
  • बिजली विभाग में काम नहीं करें।
  • घर की छत नहीं सुधरवाते समय बहुत ज्यादा ध्यान से काम लें।
  • दक्षिण मुखी घर में न रहें।
  • हनुमान चालीसा पढ़ें।

9. नवम भाव में राहु (Rahu) :

नौवां भाव बृहस्पति ग्रह से प्रभावित होता है। जातकों का अपने भाई-बहनों के साथ अच्छे संबंध स्थापित होते हैं। शनि से प्रभावित नौकरी या व्यवसाय लाभदायक होगा।

अशुभ फल:

  • बृहस्पति यदि 5वें या 11वें भाव में है तो इसका कोई लाभ नहीं होगा।
  • पुत्र प्राप्ति की संभावना कम होती है।
  • सामाजिक प्रतिष्ठा का हनन होता है।
  • मानसिक समस्या उत्पन्न होती है।
  • जातक पाप कार्य की ओर अग्रसर होता है।

शुभ फल:

  • स्वास्थ्य लाभ होता है।
  • जातक कृपालु, गुणवान और अपने परिवार को स्नेह करने वाला होता है।
  • जातक आस्तिक बनते है।
  • विद्वान बनते है।दान – पुण्य कर यश और कीर्ति प्राप्त करता है।
  • समाज के कल्याण के लिए प्रयत्नशील रहता है।
  • किसी भी कार्य को अधूरा नहीं छोड़ता।

उपाय :

  • सोना धारण करें और प्रतिदिन केसर का तिलक लगाएं।
  • कुत्ता पालें।
  • ससुराल पक्ष से संबंध मधुर बनायें।
  • ऐसे घर में रहें जहाँ सूर्य की रोशनी पर्याप्त आती हो।
  • जल में गौमूत्र डालकर स्नान करें।
  • रोज राहु मंत्र का 108 बार जप करें।

10. दसवें भाव में राहु (Rahu) :

शनि की स्थिति पर राहु (rahu) का शुभ या अशुभ फल निर्भर करता है। यदि जातक सिर खुला रखता है तब दशम भाव में नीच राहु का प्रभाव होता है। यदि राहु दसवें घर में चंद्रमा के साथ जुड़ता है तो राज योग बनता है जिससे उसके पिता भाग्यशाली बनते हैं। राहु-केतु पारगमन अवधि के दौरान नकारात्मकताओं को रोकने के लिए हमारे द्वारा प्रदान की जाने वाली राहु-केतु ट्रांजिट रिपोर्ट का सहारा लें।

अशुभ फल :

  • यदि चन्द्रमा चतुर्थ भाव में अकेला हो तो जातक की आँखों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • सिरदर्द और धन की हानि होने की संभावना बनी रहती है।
  • माता के सुख में कमी होती है।

शुभ फल :

  • यदि शनि शुभ हो तो जातक साहसी, दीर्घायु और धनवान होता है।
  • सम्मान और प्रतिष्ठा पाता है।
  • जातक भयहीन और सोच समझकर काम करने वाले होते हैं।
  • किसी भी काम को आसानी से कर सकते हैं।

उपाय :

  • सिर को अनिवार्य रूप से ढंके, नीली या काली टोपी पहने।
  • मंदिर में या नदी में 400 ग्राम चीनी चढ़ाएं।
  • दृष्टिबाधित लोगों को भोजन कराएं।
  • कंजूसी न करें।
  • अपना और माता – पिता के सेहत का ध्यान रखें।
  • अपने कार्य के प्रति जिम्मेदार और ईमानदार रहें।
  • मंगल और चंद्र को प्रबल करें।

11. एकादश भाव में राहु (Rahu) :

एकादश भाव शनि और बृहस्पति से प्रभावित होता है। पिता के जीवित रहने पर यह अमीर बनते हैं। यदि जन्म के समय मंगल एकादश भाव में राहु (rahu) के साथ अशुभ स्थिति में हो, तो सभी व्यवस्था, सुख संपत्ति होने के बाद भी जातक असंतुष्ट रहेगा।

अशुभ फल :

  • एकादश भाव में राहु अशुभ हो तो पिता के साथ संबंध खराब होता है।
  • पंचम भाव में केतु अशुभ फल देता है।
  • जातक कान, रीढ़ और मूत्र पथ से जुड़े रोगों से पीड़ित हो सकता है।
  • केतु से संबंधित व्यवसाय में नुकसान होता है।

शुभ फल :

  • विदेशों से धन कमाते हैं।
  • आय के विभिन्न स्रोत बनते हैं।
  • मितभाषी होते हैं और शास्त्रों का ज्ञान होता है।
  • इन्द्रियों को वश में कर लेते हैं और मृदुभाषी होते हैं।
  • लंबी आयु होती है और सेहत से हष्ट पुष्ट होते हैं।

उपाय :

  • पिता की मृत्यु के बाद गले में सोना पहने।
  • लोहे या चांदी के गिलास में पानी पियें।
  • उपहार में विद्युत उपकरण नहीं लें।
  • नीलम, हाथी दांत या हाथी के खिलौनों को नहीं रखें।
  • फिजूल खर्च से बचें।
  • रोज मंदिर जाएं और केसर का तिलक लगाएं।
  • बृहस्पति को प्रबल बनाएं।

12. द्वादश भाव में राहु (Rahu) :

बारहवां घर बृहस्पति के शयनकक्ष का प्रतीक है। यहां राहु जातक को मानसिक परेशानी और अनिद्रा देता है। अगर मंगल राहु (rahu) के साथ है, तो यह अच्छे परिणाम देगा।

अशुभ फल:

  • राहु यदि शत्रुओं के साथ है तो कठिन परिश्रम के बाद भी गुजारा करने के लिए जद्दोजहद करनी होगी।
  • झूठे आरोप लग सकते हैं।
  • मानसिक परेशानियां होती हैं, जातक आत्महत्या के बारे में सोच सकता है।
  • व्यर्थ समय नष्ट करने वाला होता है।
  • शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।

शुभ फल:

  • जातक को पराक्रमी और यशस्वी बनाता है।
  • उदार महत्वाकांक्षी और उच्च आदर्श वाला व्यक्तित्व प्राप्त होता है।
  • मिलनसार होता है।
  • साधु स्वभाव वाले व्यक्ति होते हैं।

उपाय :-

  • रसोई में ही भोजन बनायें।
  • अच्छी नींद के लिए तकिए के नीचे सौंफ या चीनी रखें।
  • झूठ नहीं बोले और दूसरों को धोखा नहीं दें।
  • कूड़ा कबाड़ इकठ्ठा न करें।
  • ब्रश करने के बाद तुलसी की पत्ती खाएं।
  • चन्दन की सुगंध का नियमित प्रयोग करें।

व्यक्तिगत समाधान प्राप्त करने के लिए, अभी हमारे ज्योतिषी से बात करें!

गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम



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