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जानिए! कैसे डालें अपने क्रोध पर काबू

जानिए! कैसे डालें अपने क्रोध पर काबू

अगर आप कार चला रहे हैं और कोई गाड़ी आपको गलत साइड से ओवरटेक कर दे तो क्या आप गुस्से से तिलमिला जाते हैं? यदि घर पर आपके बच्चे या फिर आपका जीवन साथी सहयोग न करें तो क्या आपका पारा बढ़ जाता है। यदि दफ्तर में कोई अधीनस्थ कर्मचारी बिना बताए छुट्टी पर चला जाए तो क्या आपका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता है।

क्रोध एक सामान्य और स्वस्थ भावना है, लेकिन इससे एक सकारात्मक तरीके से निपटना बहुत महत्वपूर्ण है। अनियंत्रित क्रोध आपके स्वास्थ्य और रिश्तों दोनों पर बुरा प्रभाव डाल सकता है। क्रोध शब्द आते ही माथे पर तनाव से उभर आने वाली लकीरें एकाएक दिमाग के पर्दे पर पदर्शित होने लगती हैं। ना तो क्रोध करने वाला और ना ही उसके सामने वाला इस अवस्था से प्रसन्न होता हैं। ये एक ऐसी अभिव्यक्ति है, जो कोई पसन्द नहीं करता लेकिन ऐसा हो जाता है। इसके नुक्सान से हम सब वाकिफ हैं और इसके प्रभाव से हम सब बचना चाहते हैं। क्रोध समस्या तब बनता है, जब अकारण हो और किसी पर अकारण ही निकले। ये एक चैन रिएक्शन की तरह पहले आप से फिर आपके पास के लोगों में परिवर्तित होता है।

जैसे कि पहले ही बताया गया है कि ये एक सामान्य प्रक्रिया है। मनोवैज्ञानिकों के विचार से क्रोध एक तरह से क्षुब्ध भावनायों का क्षय है। इस प्रकार से जो विचार अन्तः मन में दबे हुए हैं – वो क्रोध के जरिए बाहर निकल आते हैं। यदि क्रोध को लिया जाए तो क्रोध बौद्धिक विकास के लिए आवश्यक है। क्रोध एक उर्जा है और यदि यही उर्जा सही तरीके से उपयोग मे लाई जाए तो कठिन से कठिन कार्य भी सुगम हो जाता है। जैसे कि फ्लॉरेन्स नाइटिंगल को क्रोध था लेकिन वो क्रोध रोगों के लिए था, ना कि रोगियों के लिए। अतः उन्होंने उस क्रोध की उर्जा को रोगियों की सेवा में लगाकर अपना और समाज का विकास किया।

क्रोध की ऊर्जा को सही तरीके से सही जगह पर उपयोग करना ही इसका सदुपयोग है। कहना बहुत आसान है परंतु इस ऊर्जा का सही उपयोग करना भी आना चाहिए, जैसे हमारे मनोविज्ञान एवं धर्म ग्रंथों में विस्तार से बताया गया है। किसी भी क्रिया का ब्रह्माण्ड में सामंजस्य लाने के लिए ऊर्जा से संयोग ही योग है। इसी को योगी परमशक्ति से मिलन कहते हैं।

भगवद्गीता संसार में जीने के लिए सुगम पथ से मार्गदर्शन करने हेतु उत्तम ग्रंथ है। भगवद्गीता के अनुसार आसन, प्राणायाम जैसी क्रियाएं करने वाले को योगी नहीं कहा जा सकता। गीता के अनुसार, जब नियंत्रित किया हुआ शरीर, अपने आप में स्थित हो जाता है और सभी कामनाओं से दूर हो जाता है, तब ऐसे चित्त वाले व्यक्ति को युक्त कहा जाता है। योगी वही है, जिसका चित्त किसी भी कामना में नहीं लगता।

ऐसा तो है नहीं कि दुख ना आए- दुख शरीर के कष्ट से होता है और व्यथा मन के कष्ट से और क्रोध के ये ही दो कारण होते हैं। क्रोध की उत्पत्ति दुख अथवा व्यथा से होती है। जब किसी के मानस पटल पर कोई दुख हो या फिर कोई परेशानी हो तो क्रोध आना स्वाभाविक है। क्रोध का निर्माण आस पास की परिस्थितयों के कारण होता है। अब उन परिस्थितयों को बदला नहीं जा सकता और यदि बदला जा सके तो इसके लिए प्रयत्न करना होगा। इसलिए अध्यात्मिक साधनों का लक्ष्य शोक या रोग मिटाना नहीं है, अपितु ऐसी स्थिति प्राप्त कर लेना, जिसको बड़े से बड़े दुख भी विचलित ना कर पाए। इसलिए हमें अपने मन को ऐसा बनाना पड़ेगा, जिससे परेशानियों का प्रभाव मन पर ना पड़े। हम हमेशा प्रसन्न और निश्चिंत रह सकें। इस स्थिति को प्राप्त कर लेना ही योग है। चित्तवृत्ति के निरोध का यही परम परिणाम है कि वहां स्थित होने के बाद ज्ञानी दुख से विचलित नहीं होते और इस स्थिति से बड़ा लाभ दूसरा कुछ नहीं होता है।

इस अवस्था में स्थित होकर उस आत्यंतिक सुख का अनुभव करते हैं जो इंद्रगम्य नहीं है। केवल बुद्धि से उसे जाना जा सकता है, उसका अनुभव किया जा सकता है। इस प्रकार यह स्थिति केवल दुख की निवृत्ति रूप नहीं है। यदि आप क्रोध को काबू करना चाहते हैं तो अपने मन को सुदृढ़ बनाना पड़ेगा। उसके लिए अनेक मनोवैज्ञानिकों ने सरल उपाए दिए हैं, जिसे आप क्रम से ग्रहण कर सकते हैं।

सर्वप्रथम एक आदत अपना लें- बोलने से पहले सोचें, गुस्से में व्यक्ति हमेशा उन शब्दों को चुनेगा और बोलेगा, जो दूसरे को चुभे, परंतु ऐसा करते समय भूल जाता है कि जब क्रोध की अवस्था समाप्त हो जाती है तो ये चुभे हुए शब्द तीर की भांति सीने में गढ़ जाते हैं जो आगे दूसरे व्यक्ति में क्रोध का रोपण करते हैं। वो ही क्रोध फिर कभी ना कभी मौका पाकर अवश्य निकलता है। इसलिए इस चेन को रोकने के लिए आवश्यक है कि क्रोध में भी संयम बनाए रखें। कभी भी क्रोधित अवस्था में कोई भी बात ना करें। अपने विचार या क्रोध तब दर्शाएं, जब आप संयमित अवस्था में हों।

जब भी क्रोधित हों तो अपने क्रोध कि उर्जा को किसी शारीरिक व्यायाम या फिर शारीरिक कार्य द्वारा जैसे कि बागवानी कर के या फिर घर की सफाई कर के अथवा उस स्थान से हट कर किसी बाज़ार मे चहलकदमी कर ले जिस से ध्यान भी बटेगा और मन शांत भी हो जायेगा। कोई कोई तो कुछ देर बगीचे मे बैठ कर बच्चो को देख कर संयमित हो जाते हैं। यदि कुछ ना हो सके तो किसी ग्रंथ का पाठ करना आरंभ कर लेना चाहिए इससे उचित मार्गदर्शन का लाभ भी मिलेगा।

इस बीच में आप अपनी समस्या को पहचानें- इससे आपका क्रोध काफी हद तक संभल जाएगा। याद रखिये कि किसी भी समस्या को पहचान लेना आधी लड़ाई जीतने के बराबर होता है। जब आप समस्या को पहचान लेंगे तो स्वतः ही समाधान का कोई ना कोई रास्ता निकल आएगा। हमेशा इस बात को याद रखिये कि क्रोध किसी समस्या का समाधान नहीं अपितु क्रोध तो आग में घी का काम करता है।

माफी एक शक्तिशाली उपकरण है। यदि आप क्रोध और अन्य नकारात्मक भावनाओं को अपने विचारों में आने की अनुमति देते हैं, तो आप अपने आपको अपनी खुद की कड़वाहट या अन्याय की भावना द्वारा निगल सकते हैं। यदि आप किसी को माफ कर सकते हैं तो आप अपने लिए तो अच्छा करते ही हैं अपितु दूसरे व्यक्ति के लिए भी उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। हर कोई आप के अनुरूप ही व्यवहार करें – ऐसा तो हो नहीं सकता। हम अपने विचार के फ्रेम में दूसरे व्यक्तियों के स्वभाव को रखते हैं और जब वो फिट नहीं बैठता तो क्षुब्ध हो जाते हैं।

इस के अलावा किसी भी धार्मिक ग्रंथ से यदि अपनी समस्या का समाधान ढूँढे तो अवश्य मिलेगा। यदि आप ऊपर बताए गए मार्ग पर चलें तो अवश्य लाभ होगा। इसके साथ यदि आप सुबह उठकर शुद्ध मन से पद्मासाना या फिर सिद्धासन में बैठकर शांत मुद्रा में ध्यान लगाएं तो पाएंगे कि आपका जीवन के प्रति बड़ा ही सरल नज़रिया होता जा रहा है।

मंत्रों में बड़ी शक्ति होती है। क्रोध शांति का ये मंत्र आपको अवश्य लाभ प्रदान करेगा।

ओम शांते प्रशान्ते मॅम क्रोध पश् नीन स्वाहा

इस मंत्र को पढ़ने के बाद थोड़े से पानी में फूंक मारें – ऐसा २१ बार दोहराएं और फिर इस पानी को पी जाएं। आप पाएंगे कि धीरे धीरे आपका क्रोध शांत हो गया है।

इसके अलावा निम्नलिखित दो मंत्र हैं, जिन्हें आप अपनी सुविधा अनुसार उपयोग कर सकते हैं।
1. दैहिका दैविका भौतिका ताप
राम राजा नहीं कहू ब्यापा

2. भारत चरिता करी मांऊ तुलसईजे सादर सुनहिं
सिया राम पड़ा प्रेमा आवासी होई भवा रासा बिराती

याद रखिए मंत्र भी तभी काम करेंगे, जब आप मन से इनको स्वीकार करेंगे और क्रोध शांति का प्रयास करेंगे।

इसके अलावा एक उपाए और भी है। आप शांति दान करके देखिए। आप हैरत में होंगे यह कौन सा दान हैं, हमने तो आज तक अन्न दान, वस्त्र दान, तुला दान आदि के बारे में सुना था। इसके लिए आपको बस यही करना है कि अपने आस पास यदि कोई क्रोधित है या फिर उसको किसी के प्रति कोई गुस्सा रहता है तो उसकी बात सुनें और उसके मन की गाँठें खोलने का प्रयत्न करें। उसकी भावनाओं समझें और सही पथ दिखलाकर मन शांत करें। देखिएगा आप उसको शांति प्रदान करेंगे तो आपका मन भी बहुत शांत हो जाएगा। इस युग में जहां सुब कुछ मैकनिकल हो गया है- फोन हैं लेकिन रिश्ते दूर हो गए हैं, सोशियल साइट्स पर बहुत मित्र हैं पर अपने कहने वाले लोग कम हो गए हैं। वहां पर कहीं ना कहीं हर कोई अपने आपको अकेला पाता है। तभी तो देखें whatzapp औरfacebook या फिर दूसरी सोशियल साइट्स पर लोगों की भीड है पर वहां भी सब अपने को अकेला पाते हैं। अपने मन को कोई खुल कर कह नहीं पाता। अंदर ही अंदर दबाव पलता जा रहा है यदि इस उबलते हुए दबाव में आप किसी को शांति प्रदान करेंगे तो इससे बढ़कर कोई सेवा तो हो नहीं सकती और आपके मन को भी परम शांति का अनुभव होगा।

|| ओम शान्ति||

अगर आपका जीवन समस्याओं के कारण दयनीय बन चुका है तो समाधान पाने के लिए आप पूछिए तीन सवाल हमारी सेवा की मदद ले सकते हैं। इस सेवा के तहत आप अपने जीवन की तीन समस्याएं हमें बताएं और सटीक समाधान पाएं।

गणेशजी के आशीर्वाद के साथ,
-ज्योतिषाचार्य सुश्री अल्का विज [गोल्ड मेडलिस्ट]
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम