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उपनयन संस्कार मुहूर्त 2026: तिथियाँ, समय और महत्व

उपनयन संस्कार मुहूर्त

हिंदू धर्म में अनेक संस्कार होते हैं, जिनमें से जनेऊ संस्कार (उपनयन संस्कार) का विशेष महत्व है। यह संस्कार विवाह से पहले ही किया जाता है और इसे सनातन धर्म के दसवें संस्कार के रूप में माना जाता है। इस अवसर पर लड़के को सावित्री (सफेद जनेऊ धागा) पहनाया जाता है और कई धार्मिक क्रियाएँ की जाती हैं। यह संस्कार मुख्य रूप से ब्राह्मण और क्षत्रिय समुदाय में प्रचलित है।

“उपनयन” शब्द दो भागों से मिलकर बना है – ‘उप’ का अर्थ है पास और ‘नयन’ का अर्थ है दृष्टि। इसका प्रतीकात्मक अर्थ है अज्ञान के अंधकार से बाहर निकलकर आध्यात्मिक ज्ञान की रोशनी में कदम रखना। यही कारण है कि इसे हिंदू परंपरा में बहुत मान्यता और श्रद्धा के साथ किया जाता है।

उपनयन संस्कार मुख्य रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य समुदाय के लड़कों के लिए किया जाता है, अक्सर विवाह से पहले। इसे यज्ञोपवीत संस्कार भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, शूद्रों को छोड़कर हिंदू धर्म के सभी लोग जनेऊ धारण करने और यह संस्कार करने के पात्र हैं।

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जनवरी 2026 शुभ उपनयन मुहूर्त:

तिथिमुहूर्त समय
3 जनवरी 202616:39–18:53
4 जनवरी 202607:46–13:04
4 जनवरी 202614:39–18:49
5 जनवरी 202608:25–11:35
7 जनवरी 202612:52–14:27
7 जनवरी 202616:23–18:38
21 जनवरी 202607:45–10:32
21 जनवरी 202611:57–17:43
23 जनवरी 202607:44–11:49
23 जनवरी 202613:25–19:55
28 जनवरी 202610:05–15:00
28 जनवरी 202617:15–19:35
29 जनवरी 202617:11–19:00
30 जनवरी 202607:41–09:57
30 जनवरी 202611:22–12:57

फरवरी 2026 शुभ उपनयन मुहूर्त:

तिथिमुहूर्त समय
2 फ़रवरी 202607:40–11:10
2 फ़रवरी 202612:45–19:16
6 फ़रवरी 202607:37–08:02
6 फ़रवरी 202609:29–14:20
6 फ़रवरी 202616:40–19:00
19 फ़रवरी 202607:27–08:38
19 फ़रवरी 202610:03–18:09
20 फ़रवरी 202607:26–09:55
20 फ़रवरी 202611:34–15:40
21 फ़रवरी 202615:41–18:01
22 फ़रवरी 202607:24–11:27

मार्च 2026 शुभ उपनयन मुहूर्त:

तिथिमुहूर्त समय
4 मार्च 202607:14–10:47
4 मार्च 202612:43–19:35
5 मार्च 202607:43–12:34
5 मार्च 202614:54–19:31
8 मार्च 202608:56–14:40
20 मार्च 202606:56–08:09
20 मार्च 202609:44–16:15
21 मार्च 202606:55–09:40
21 मार्च 202611:36–18:23
27 मार्च 202611:12–15:47
28 मार्च 202609:13–15:43
28 मार्च 202618:01–20:17
29 मार्च 202609:09–15:40

अप्रेल 2026 शुभ उपनयन मुहूर्त:

तिथिमुहूर्त समय
2 अप्रैल 202608:53–10:49
2 अप्रैल 202613:03–18:00
3 अप्रैल 202607:14–13:00
3 अप्रैल 202615:20–19:53
4 अप्रैल 202607:10–10:41
6 अप्रैल 202617:25–19:40
20 अप्रैल 202607:42–09:35

मई 2026 शुभ उपनयन मुहूर्त

तिथिमुहूर्त समय
3 मई 202607:39–13:22
3 मई 202615:39–20:15
6 मई 202608:35–15:27
6 मई 202617:44–20:03
7 मई 202608:31–10:46

जून 2026 शुभ उपनयन मुहूर्त:

तिथिमुहूर्त समय
17 जून 202605:54–08:05
17 जून 202612:42–19:37
19 जून 202606:23–10:17
24 जून 202609:57–16:51

जुलाई 2026 शुभ उपनयन मुहूर्त:

तिथिमुहूर्त समय
1 जुलाई 202607:21–11:47
1 जुलाई 202616:23–18:42
2 जुलाई 202607:06–11:43
4 जुलाई 202613:52–16:11
5 जुलाई 202609:14–16:07
15 जुलाई 202613:09–17:47
16 जुलाई 202606:11–08:31
16 जुलाई 202610:48–17:43
18 जुलाई 202606:06–10:40
18 जुलाई 202612:57–18:30
24 जुलाई 202606:09–08:00
24 जुलाई 202610:17–17:10
26 जुलाई 202612:25–14:45
30 जुलाई 202607:36–12:10
30 जुलाई 202614:29–18:13
31 जुलाई 202607:32–14:25
31 जुलाई 202616:44–18:48

अगस्त 2026 शुभ उपनयन मुहूर्त:

तिथिमुहूर्त समय
3 अगस्त 202609:37–16:32
14 अगस्त 202606:37–08:54
14 अगस्त 202611:11–17:53
15 अगस्त 202607:38–08:50
15 अगस्त 202613:26–19:31
16 अगस्त 202617:45–19:27
17 अगस्त 202606:25–10:59
17 अगस्त 202614:18–17:40
23 अगस्त 202606:44–08:19
23 अगस्त 202610:35–17:17
24 अगस्त 202607:34–08:15
24 अगस्त 202610:31–17:13
28 अगस्त 202614:54–18:40
29 अगस्त 202607:06–12:31
29 अगस्त 202614:50–18:36
30 अगस्त 202607:51–10:08

सितंबर 2026 शुभ उपनयन मुहूर्त:

तिथिमुहूर्त समय
12 सितंबर 202611:36–17:41
13 सितंबर 202607:38–09:13
13 सितंबर 202611:32–17:37
21 सितंबर 202608:41–17:05
23 सितंबर 202606:41–08:33
23 सितंबर 202610:53–16:58

अक्टूबर 2026 शुभ उपनयन मुहूर्त:

तिथिमुहूर्त समय
12 अक्टूबर 202607:19–09:38
12 अक्टूबर 202611:57–17:10
21 अक्टूबर 202607:30–09:03
21 अक्टूबर 202611:21–16:35
21 अक्टूबर 202618:00–19:35
22 अक्टूबर 202617:56–19:31
23 अक्टूबर 202606:58–08:55
23 अक्टूबर 202611:13–16:27
26 अक्टूबर 202611:02–13:06
26 अक्टूबर 202614:48–18:11
30 अक्टूबर 202607:03–08:27
30 अक्टूबर 202610:46–16:00
30 अक्टूबर 202617:24–19:00

नवंबर 2026 शुभ उपनयन मुहूर्त:

तिथिमुहूर्त समय
11 नवंबर 202607:40–09:59
11 नवंबर 202612:03–13:45
12 नवंबर 202615:08–18:09
14 नवंबर 202607:28–11:51
14 नवंबर 202613:33–18:01
19 नवंबर 202609:27–14:41
19 नवंबर 202616:06–19:37
20 नवंबर 202607:26–09:23
20 नवंबर 202611:27–16:02
20 नवंबर 202617:37–19:30
21 नवंबर 202607:20–09:19
21 नवंबर 202611:23–15:58
21 नवंबर 202617:33–18:20
25 नवंबर 202607:23–12:50
25 नवंबर 202614:17–19:13
26 नवंबर 202609:00–14:13
28 नवंबर 202610:56–15:30
28 नवंबर 202617:06–19:01

दिसंबर 2026 शुभ उपनयन मुहूर्त:

तिथिमुहूर्त समय
10 दिसंबर 202611:51–16:19
11 दिसंबर 202607:35–10:05
11 दिसंबर 202611:47–16:15
12 दिसंबर 202607:35–10:01
12 दिसंबर 202613:10–16:11
14 दिसंबर 202607:37–11:35
14 दिसंबर 202613:03–17:58
19 दिसंबर 202609:33–14:08
19 दिसंबर 202615:43–19:53
20 दिसंबर 202607:40–09:29
24 दिसंबर 202607:42–12:23
24 दिसंबर 202613:48–19:34
25 दिसंबर 202607:43–12:19
25 दिसंबर 202613:44–19:30

अब जब आप उपनयन संस्कार मुहूर्त के बारे में जानते हैं, तो आइए देखें कि वे महत्वपूर्ण क्यों हैं और अनुष्ठान कैसे किया जाता है।

जनेऊ संस्कार: महत्व और विधि

जनेऊ संस्कार लड़के के बाल्य से आध्यात्मिक किशोरावस्था में प्रवेश का प्रतीक है। इस संस्कार में पुरोहित लड़के के बाएं कंधे पर और दाएं बांह के नीचे सावित्री धागा (जनेऊ) पहनाते हैं। यह धागा तीन तंतु का बना होता है, जो आध्यात्मिक और सांसारिक कर्तव्यों का प्रतीक हैं।

जनेऊ का प्रतीकात्मक महत्व

  • तीन धागे: ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक, साथ ही तीन ऋण – देव ऋण, पितृ ऋण और ऋषि ऋण।
  • अन्य मान्यताएँ: कुछ परंपराओं में इसे सात्विक, राजस और तामस गुणों, गायत्री मंत्र के तीन चरणों, और जीवन के तीन आश्रमों का प्रतीक माना जाता है।
  • नौ धागे: प्रत्येक मुख्य धागे में तीन छोटे धागे होते हैं, कुल मिलाकर नौ धागे।
  • पाँच गाँठें: ब्रह्मा, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक।

लंबाई: 96 अंगुलियों के बराबर, जो 64 कलाओं और 32 विषयों में दक्षता प्राप्त करने की याद दिलाती है।

जनेऊ कैसे पहनते हैं

संस्कार के दिन लड़का केवल पीला बिना सिलाई वाला वस्त्र पहनता है और हाथ में दंड रखता है। जनेऊ गुरु दीक्षा के बाद पहनाया जाता है और अगर यह अशुद्ध हो जाए तो इसे बदल दिया जाता है।

गायत्री मंत्र से संबंध

संस्कार की शुरुआत गायत्री मंत्र का उच्चारण करके होती है:

तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्

जनेऊ मंत्र:

 यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्रं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।

जनेऊ संस्कार विधि (स्टेप-बाय-स्टेप)

  1. मुंडन (सिर मुंडवाना): लड़के का सिर मुंडाया जाता है और छोटा चोटी रखा जाता है।
  2. शुद्धि: मुहूर्त के दिन स्नान और चंदन से अभिषेक किया जाता है।
  3. गणेश पूजा और यज्ञ: लड़का केवल साधारण वस्त्र पहनकर गणेश की पूजा और यज्ञ में भाग लेता है।
  4. गायत्री मंत्र जप: परिवार 10,000 बार गायत्री मंत्र का जप करता है।
  5. अनुशासन की प्रतिज्ञा: लड़का शास्त्रों के अनुसार जीवन बिताने और उपवास करने की प्रतिज्ञा करता है।
  6. पहला भोजन: वह मित्रों के साथ चूरमा खाता है और पुनः स्नान करता है।
  7. दीक्षा: परिवार का वरिष्ठ सदस्य गायत्री मंत्र का उच्चारण करता है और लड़के को ब्राह्मण घोषित करता है।
  8. पवित्र प्रतीक: दंड, मेखला और कंधोरा बांधा जाता है।
  9. भिक्षा परंपरा: लड़का नम्रता दिखाने के लिए रिश्तेदारों से भिक्षा मांगता है।
  10. प्रतीकात्मक यात्रा: रात में लड़का काशी की यात्रा का प्रतीकात्मक रूप से चलता है, फिर शादी के वादे के साथ घर लौटता है।

जनेऊ संस्कार के नियम

  • मुहूर्त में यज्ञ अनिवार्य है।
  • लड़के को पीला बिना सिलाई वाला वस्त्र और लकड़ी के खड़ाऊ पहनना चाहिए और दंड रखना चाहिए।
  • जनेऊ पीला होना चाहिए और गुरु दीक्षा तक पहना जाना चाहिए।
  • सामान्य आयु: ब्राह्मण 8 वर्ष, क्षत्रिय 11 वर्ष, वैश्य 12 वर्ष।

नीचे अन्य सभी मुहूर्तों के बारे में पढ़ें:-