योग क्या है?

योग (yoga) की उत्पत्ति प्राचीन भारत में हुई थी और यह एक शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अभ्यास है। इसक उद्देश्य शरीर, मन और आत्मा के साथ-साथ व्यक्तिगत आत्म और सार्वभौमिक चेतना को जोड़ना है। योग का अर्थ है एक वैचारिक वास्तविकता की ओर प्रगति करना जिसमें व्यक्ति ब्रह्मांड की परम प्रकृति और यह कैसे बना है, के बारे में समझता है।

योग मुद्रा के प्रकार

योग (Yoga) आपको आध्यात्मिक शक्तियों की पहचान कराने में मदद करता है। यह आपकी प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है। यह ब्रह्मांड की प्रकृति का ज्ञान कराता है। योग के माध्यम से हर कुछ संभव है। वर्तमान में लोग योग प्रति ज्यादा जागरूक हो रहे है और यही कारण है कि स्वस्थ जीवन शैली के लिए योग लोगों के लिए वददान बन गया है। यहां आपको 28 विभिन्न प्रकार के योग के बारे में जानकारी दी जा रही है। इसे प्रतिदिन अभ्यास करने से शारीरिक लाभ होता है। इसका अभ्यास कर आप लाभ उठा सकते हैं।

अधोमुखी श्वानासन

इस आसन के अभ्यास के दौरान शुरू में अपने हाथों और पैरों के बल पर खुद को फर्श की ओर झुकाएं, ताकि देखने में शरीर की आकृति एक मेज की तरह दिखे। इसके बाद अपनी सांस को छोड़ते हुए कमर को ऊपर उठाएं। अपने घुटने और कोहनी को मजबूती देते हुए अपने शरीर से उल्टा वी आकार जैसा बनाएं।
हाथ और कंधों की दूरी से ज्यादा फर्क पड़ता है। यहां पैर कमर की दूरी के बराबर और एक दूसरे के समानांतर होना आवश्यक है। पैर की उंगलियां बिल्कुल सामने की तरफ होनी चाहिए। इस तरह आप अधोमुख श्वान के रूप में लम्बी गहरी श्वास लें। इस दौरान आप अपनी दृष्टि नाभि पर बनाये रखें। साथ ही श्वास छोड़ते हुए घुटने को मोड़ें और पुनः मेज वाली स्थिति में आ जाएं।

ताड़ासन

इस अभ्यास करने के लिए सबसे पहले सीधे खड़े हो जाएं और पैरों के बीच कुछ दूरी रखना जरूरी है। इसके बाद दोनों हाथों को अपने शरीर के पास में सीधी मुद्रा में रखनी चाहिए। इस दौरान आप गहरी सांस लेते हुए अपनी दोनों बाजुओं को सिर के ऊपर उठाएं। फिर हाथों को सीधा रखकर फैलाए। इसके बाद अपनी एड़ी उठाते हुए अपने पैर की उंगलियों पर खड़े हो जाएं। इस स्थिति में आप 10 सेंकेंड तक सांस लेते रहे। पुनः सांस छोड़ते हुए अपनी शुरुआती स्थिति में आ जाएं।

वीरभद्रासन

सबसे पहले इस अभ्यास के लिए अपने पैरों को कुछ दूरी बनाकर फैलाते हुए खड़े रहें। दाहिने पैर को 90 डिग्री और बाएं पैर को 15 डिग्री तक घुमाएं। इस दौरान दाहिना एड़ी को बाएं पैर की सीध में रखने की जरूरत होती है। इसके बाद अपने दोनों हाथों को कंधों तक ऊपर उठाने की कोशिश करें। साथ ही अपने हाथों की हथेलियों को ऊपर की ओर खुले रखें। इस दौरान ध्यान यह रखें कि हाथ जमीन के समानांतर मुद्रा में है या नहीं। इसके बाद सांस छोड़ते हुए दाहिने घुटने को मोड़ें। साथ ही यह ध्यान रखें कि दाहिना घुटना एवं दाहिना टखना एक सीध में होना चाहिए। घुटना टखने से आगे नहीं जाना चाहिए। इसके बाद सिर को घुमाते हुए अपनी दाहिनी ओर देखने की कोशिश करनी चाहिए। इसके बाद अपने पेल्विस को नीचे करें। इस तरह की मुद्रा आपको एक-एक योद्धा की तरह बनाती है। इस स्थिति में सांस लेते और छोड़ते रहें। सांस छोड़ते वक्त दोनों हाथों को बाजू से नीचे लाए और बाएं तरफ से इसे दोहराएं।

उत्थिता पार्श्वकोणासन

 पार्श्वकोणासन में अपने हाथ को फर्श पर रखने की बजाय अपने अग्रभाग को अपनी जांघ पर रखें। यह आपकी जांघ पर धीरे से रहना चाहिए और अधिक भारी नहीं होना चाहिए। यह मुद्रा आपको अपने कंधों को खुला रखने की अनुमति देता है। इस दौरान आप वैकल्पिक रूप से आप अपना हाथ फर्श पर टिका सकते हैं।

त्रिभुज मुद्रा

त्रिकोण का अर्थ है त्रिभुज और उत्थिता का अर्थ विस्तारित होता है। इसका मतलब फैला हुआ होना है। उत्थिता त्रिकोणासन का अनुवाद “विस्तारित त्रिकोण मुद्रा” है। उत्थिता त्रिकोणासन के लिए शरीर के ऊपरी हिस्से पर नियंत्रण की आवश्यकता होती है। इस आसन में कूल्हों और गर्दन को आसानी से मोड़ना चाहिए। इस आसन को खड़े और संतुलित करने वाले आसन के रूप में माना गया है। इसे हिप ओपनर पोज भी कहा जाता है।

चक्रवाकासन

चक्रवाकासन एक ऐसा योग है। जिसमें पीठ को घुमावदार (थोड़ा मुड़ा हुआ) स्थिति से घुमावदार में ले जाया जाता है। अभ्यास के प्रत्येक चरण में श्वास को अंदर लेते हुए या श्वास छोड़ते हुए किया जाता है। इस प्रकार एक आसान विन्यास (सांस को गति से जोड़ना) बन जाता है। गाय की मुद्रा के लिए श्वास लें और अपनी श्रोणि को पीछे की ओर झुकाएं। फिर सांस छोड़ें और बिल्ली मुद्रा के लिए अपनी पिछले भाग (टेलबोन) को सिकोड़ें।

दंडासन

इस अभ्यास के दौरान अपने दोनो पैरों को एकदम सीधे करके जमीन पर बैठने की मुद्रा अपनानी चाहिए। इसके बाद पैरो की उंगलियो को अंदर की और मोड़ने की कोशिश करें और तलवों को बाहर की तरफ करें। अभ्यास के दौरान पीठ बिल्कुल सीधी मुद्रा में होनी चाहिए। इसके अलावे आप अपने हाथों को ज़मीन पर स्थापित करें। साथ ही  उसे बिल्कुल सीधा रखें। इसके बाद अपनी हथेलियों को कूल्हों के बगल में रखें। रीढ़ की हड्डी को लंबा और सीधा करने की कोशिश करें। इस दौरान अपने सिर को नीचे की तरफ झुका कर रखें। इस स्थिति में आप सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया अपनाएं।

बद्ध कोणासन

इस आसन की प्रक्रिया में पैरों को सामने की ओर फैलाते हुए बैठना चाहिए। इस दौरान रीढ़ की हड्डी सीधी मुद्रा में रखें। इसके बाद घुटनों को मोड़ते हुए दोनों पैरों को श्रोणि की ओर लाएं। इस स्थिति में पैर के तलवे एक दूसरे से छूते रहें। इसके बाद अपने दोनों हाथों से अपने दोनों पैर को कस कर पकड़ लें। इस दौरान लंबी गहरी सांस लेना चाहिए। सांस छोड़ते हुए घुटनों एवं जांघों को फर्श की ओर दबाएं। इस दौरान तितली के पंखों की तरह दोनों पैरों को ऊपर नीचे हिलाना शुरू करें। धीरे धीरे गति बढ़ाने की प्रक्रिया अपनाएं। साथ ही सांस लेने की प्रक्रिया करते रहें।

बालासन

बच्चे की मुद्रा यानी बालासन बहुत महत्वपूर्ण होती है। यह योग की वह स्थिति है, जिससे आप योग के बारे में अच्छे से जानकारी ले सकते हैं। यदि आप थके हुए हैं तो बच्चे की मुद्रा में आ जाएं। इस मुद्रा में बिना किसी दबाव के पीठ, कूल्हों, जांघों और टखनों को फैलाने में मदद मिलती है।

सेतु बंध सर्वांगासन

इस आसन की मुद्रा में व्यक्ति को सबसे पहले अपनी पीठ के बल सीधा लेट जाना चाहिए। इस दौरान अपने बाज़ुओं को धड़ के साथ रखें। इसके बाद अपने पैरों को मोड़ते हुए अपने कूल्हों के नजदीक लाएं। जितना नजदीक हो सके उतना नजदीक लाएं। इसके बाद अपने हाथों पर भार डालते हुए धीरे धीरे आप अपने कूल्हों को उपर उठायें। इस दौरान सांस लेने की प्रक्रिया जारी रखें।

जितना संभव हो उतना अपनी पीठ को मोड़ कर रखें। यह मुद्रा अपनी क्षमता के अनुरूप ही करनी चाहिए। धीरे धीरे इस अभ्यास को आगे बढ़ा सकते हैं।

भुजंगासन

भुजंगासन को कोबरा मुद्रा भी कहते हैं। इसके लिए सबसे पहले आप अपने पेट के बल लेट जाएं। इस दौरान पैरों के तलवे ऊपर की ओर होने चाहिए। अपनी बाजुओं को धड़ की लंबाई के साथ सीधा रखने की कोशिश करें। हाथों को आगे लाकर सिर के नजदीक रखें। हाथों पर वज़न डाल कर छाती को धीरे धीरे उपर उठायें। पीठ जितनी मोड़ सकें आराम से उतनी ही मोड़ें। इस स्थिति में पांच बार सांस अंदर लें और बाहर छोड़ें।

शवासन

इस अभ्यास प्रक्रिया में शरीर को बस लिटाना होता है। सबसे पहले एक आसन या चटाई बिछा लें और पीठ के बल लेट जाएं। दोनों हाथों को शरीर से कम से कम 5 इंच की दूरी पर रखें। वहीं दोनों पैरों के बीच में भी कम से कम 1 फुट की दूरी रखें। हथेलियों को आसमान की तरफ रखें और हाथों को ढ़ीला छोड़ दें। इसके बाद शरीर को ढ़ीला छोड़ दें और आंखों को बंद कर लें।

सुखासन

सुखासन करने के लिए सबसे पहले आप एक चादर और मैट  बिछाकर ऊपर आराम से बैठने की मुद्रा में रहें। इसके बाद अपने दोनो पैरों को क्रॉस कर उसे घुटनों से भीतर की ओर लाएं। इस दौरान आपको अपना कमर बिल्कुल सीधा रखना होता है। ध्यान रहे इस आसन को करते समय आपकी कमर मुड़ी हुई नहीं होनी चाहिए। इसके बाद अपने दोनो हाथों की हथेलियों को अपने घुटनों पर उपर की ओर रखें। इस अभ्यास के दौरान आप अपनी रीढ़ की हड़्डी को सीधी रखें। साथ ही कंधे बिल्कुल तनी हुए स्थिति में रखना चाहिए।

मालासन

इस आसन के अभ्यास से पहले आप अपने शरीर को वॉर्मअप करें। इसके बाद आप मालासन करने का अभ्यास शुरू करें। अगर किसी भी प्रकार की असुविधा हो रही हो तो इस आसन से बचने का प्रयास करना चाहिए। इस अभ्यास के दौरान कभी भी कंधे या घुटनों पर दबाव डालने का प्रयास नही करना चाहिए। साथ ही इस आसन को करने के लिए किसी योग गुरु से परामर्श लेना चाहिए।

अर्ध उत्तानासन

इस अभ्यास के शुरू करने से पहले आप ताड़ासन की मुद्रा में खड़े हो जाएं। इसके बाद आप अपनी सांस छोड़ते हुए और कूल्हे को नीचे की ओर झुकाएं। इस दौरान आप प्रयास करें कि आपकी हाथ जमीन को छू सके। इस स्थिति में सांस लेते और छोड़ते रहें।

अर्ध्य मत्स्येन्द्रासन

इस अभ्यास को शुरू करने के लिए आपको दंडासन की मुद्रा बैठना चाहिए। इस दौरान आप अपने हाथों से जमीन पर हल्का दबाव डालें। साथ ही सांस अंदर लेते हुए रीढ़ की हड्डी को सीधा करना चाहिए। बाएं पैर को मोड़ें और दाएं घुटने के उपर से लाकर बाएं पैर को जमीन पर रखें। दाहिने पैर को मोड़ें और पैर को बाईं नितंब के निकट जमीन पर आराम से रखें। बाएं पैर के उपर से दाहिने हाथ को लायें और बाएं पैर के अंगूठे को पकड़ें। श्वास छोड़ते हुए धड़ को जितना संभव हो उतना मोड़ें, और गर्दन को मोड़ें जिससे कि बाएं कंधे पर दृष्टि केंद्रित कर सकें। अर्ध मत्स्येन्द्रासन की मुद्रा 30-60 सेकेंड करने से काफी लाभ होता है।

आनंद बालासन

 सबसे पहले किसी समतल जगह पर पीठ के बल लेट जाएं। फिर टांगो को घुटने की सीध में ऊपर की तरफ उठाएं। इसके बाद अपने घुटने को छाती से टीका ले। और इस दौरान दोनों घुटने के बीच हल्की दूरी रखें। अपने पैर के पंजे को ऊपर की तरफ रखें। फिर दोनों हाथों से पैर के दोनों अंगूठे को पकड़ ले। इसी अवस्था में 20 से 30 सेकंड तक रुकें। इस अवस्था को ही आनंद बालासन कहते हैं। इस आसन को 2 से 4 बार दोहराएं। इस दौरान सांसों की गति को सामान्य रखें। फिर सामान्य स्थिति में आ जाएं।

जानू शीर्षासन

इस आसन के अभ्यास में पैरों को सामने की ओर सीधे फैलाते हुए बैठा जाता है। इस दौरान आप रीढ़ की हड्डी को सीधी रखने की कोशिश करें। इसके बाद बाएं घुटने को मोडकर बाएं पैर के तलवे को दाहिनी जांघ के नजदीक रखना चाहिए। ध्यान रहे बायां घुटना ज़मीन  पर रखें। अभ्यास के दौरान अपने भीतर गहरी सांस भरे। फिर दोनों हाथों को सिर से ऊपर उठाना चाहिए। उसके बाद सांस छोड़ते हुए कूल्हों को आगे की ओर झुकाएं। यथासंभव आप इस अभ्यास के दौरान अपने पैरों के अंगूठों को पकड़े तथा कोहनी को जमीन पर स्थापित करें। फिर अपने भीतर सांस रोके रहें। इस प्रक्रिया को कुछ समय तक जारी रखें।

अष्टांग नमस्कार

इस अभ्यास में सबसे पेट के बल लेट जाएं। फिर उसके बाद अपने हाथों को पसलियों के पास ले जाने की जरूरत होती है। उसके बाद अपने भीतर गहरे सांस भरते हुए अपने दोनों पैरों,  दोनों घुटनों, दोनों हथेलियां, सीना और ठोड़ी से ही जमीन को स्पर्श करें। ध्यान रखें कि इस दौरान आपके अन्य सभी अंग हवा में उठे रहें। इस अभ्यास के दौरान ओम का उच्चारण करते रहें। फिर धीरे-धीरे आसन को छोड़ते हुए सामान्य स्थिति में आ जाएं।

प्लैंक पोज़

प्लैंक पोज (Plank Pose) के अभ्यास के लिए सबसे पहले पुश-अप्स मुद्रा में आना है। शरीर का पोश्‍चर सीधा रखना चाहिए। जितनी देर हो सके इसी स्थिति में रहने की कोशिश करनी चाहिए।

पिरामिड मुद्रा

इस अभ्यास के दौरान सबसे पहले स्वच्छ वातावरण का चयन करना चाहिए। इस दौरान चटाई बिछाकर पीठ के बल लेट जाएं। इसके बाद अपने दोनों पैरों को फैलाकर आपस में परस्पर मिलाकर रखना चाहिए। इस दौरान आप अपने पूरे शरीर को सीधी मुद्रा में रखें। इसके बाद अपने दोनों हाथों को धीरे धीरे उठाते हुए सिर की ओर ऊपर जमीन पर टिकाएं। उसके बाद दोनों हाथों को ऊपर की ओर तेजी से उठाते हुए एक झटके में कमर के ऊपर के भाग को उठाकर बैठने की स्थिति में आते हुए धीरे-धीरे अपने दोनों हाथों से अपने पैरों के अंगूठों को पकड़ने की कोशिश करें। इस दौरान पैरों तथा हाथों को बिल्कुल सीधा रखें और अपनी नाक को पैर के घुटने से छूने की कोशिश करें। इस क्रिया को 3 से 5 बार करें। इस आसन को करते समय सांसों की गति सामान्य रखें।

उर्ध्व हस्तासन

इस अभ्यास की प्रक्रिया ताड़ासन की तरह होती है। इसमें केवल एड़ी की स्थिति का फर्क होता है। ऊर्ध्व हस्तासन में एड़ी को ऊपर नहीं उठाते सिर्फ हथेलियों के सहारे शरीर को ऊपर की ओर खींचते हैं। इस आसन को करने से पहले सावधान की स्थिति में खड़े हो जाएं। अब दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में फंसाकर ऊपर की ओर खींचें। फिर सांस खींचते हुए पहले दाईं तरफ और फिर बाईं तरह थोड़ा झुकें। इस दौरान सामान्य सांस लेते रहें।

पश्चिमोत्तानासन

इस अभ्यास में आप सबसे पहले फर्श पर बैठ जाएं। इसके बाद अब आप दोनों पैरों को सामने रखकर फैलाएं। इस दौरान पीठ की पेशियों को ढीला करके रखना चाहिए। इसके बाद अपनी सांस लेते हुए अपने हाथों को ऊपर लेकर जाएं। फिर सांस छोड़ते हुए आगे की ओर झुकें।

उपविस्थ कोणासन

इस अभ्यास में आप सीधे खड़े रहते हुए दोनों पैरों के बीच दूरी रखें। हाथों को शरीर के बाजू के पास रखें। इसके बाद सांस भरते हुए अपनी बाएं हाथ को इस तरह ऊपर उठाएं कि आपकी उंगलियां ऊपर की दिशा में रहें। फिर सांस छोड़ते हुए रीढ़ की हड्डी को झुकाते हुए अपनी दाहिनी ओर झुकें। उसके बाद अपनी श्रोणि को बाईं ओर ले जाएं और थोड़ा और झुके। अपने बाएं हाथ को ऊपर की ओर तना हुआ रखें। इस दौरान कोहनियों को सीध में रखें। सांस लेते हुए अपने शरीर को वापस सीधा करने का प्रयास करना चाहिए। सांस छोड़ते हुए अपने बायें हाथ को नीचे लाएं।

सुप्त मत्स्येन्द्रासन

इस अभ्यास में आप योग मैट पर पीठ के बल लेट जाएं। इस दौरान आपकी दोनों पैर आपस में जुड़ी रहें। अपनी हथेलियों को हिप्स के नीचे रखें। हथेलियां जमीन की तरफ रहनी चाहिए। इसके बाद आप अपनी कोहनियों को एक-दूसरे के करीब लाने की कोशिश करें। इसके बाद आप अपने पैरों को क्रॉस करते हुए बैठें। इस दौरान जांघें और घुटने फर्श पर सपाट होने चाहिए। इसके बाद सांस खींचते हुए सीने को ऊपर की तरफ उठाएं। फिर सिर भी ऊपर की तरफ उठाएं। ध्यान रहे सिर का ऊपरी हिस्सा जमीन को छूता हुआ होना चाहिए। इस दौरान शरीर का पूरा वजन कोहनियों पर रहना चाहिए।

वृक्षासन

इस अभ्यास प्रक्रिया में हाथों को बगल में रखते हुए सीधे खड़े होकर किया जाता है। फिर दाहिने घुटनें को मोड़ते हुए अपने दाहिने पंजे को बांयीं जांघ पर रखना चाहिए। इस दौरान आपके पैर का तलवा जांघ के ऊपर सीधा एवं ऊपरी हिस्से से सटा हुआ होना चाहिए। इसके बाद आप अपना बाएं पैर को सीधा रखते हुए संतुलन बनाने का प्रयास करें। इस दौरान आप रीढ की हड्डी सीधी मुद्रा में रखें। इस दौरान आपका पूरा शरीर तनी हुआ मुद्रा में होना चाहिए। इस अभ्यास के दौरान आप सांस छोड़ते हुए शरीर को ढीला छोडें। फिर आप धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए हाथों को नीचे की ओर ले जाएं। इसके बाद धीरे से दाहिने पैर को सीधा रखने का प्रयास करें।

अष्टांग योग

अष्टांग योग का अर्थ योग के आठ प्रकार से है। ये आठ योग यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि हैं।

योग के लाभ

वर्तमान समय में योग ही ऐसा अभ्यास है जो बिना किसी साइड इफेक्ट के सब बीमारियों को ठीक करने में सहायक है। लोग हजारों और लाखों रुपये बीमारियों को ठीक करने में खर्च कर देते हैं, लेकिन योग से बीमारियों को ठीक कर हजारों और लाखों रुपये की बचत होती है। वर्तमान में हर वर्ग के लोग योग अभ्यास करने पर जोर दे रहे हैं।

योग का अभ्यास दिमाग को मजबूत रखने के साथ स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान करता है।
• तनाव से राहत देता है और आराम को प्रोत्साहित करता है।
• रात में अच्छी नींद आती है और आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाता है।
• पीठ दर्द जैसी सामान्य समस्याओं को ठीक करने में मदद करता है, अच्छी सेहत के साथ खुशी प्रदान करता है।
• कैलोरी की मात्रा संतुलित रखता है।
• मांसपेशियों, जोड़ों और अंगों को मजबूत बनाता है।
• मधुमेह, हृदय रोग में लाभकारी होने के साथ शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
• लचीलेपन, ताकत, सहनशक्ति, गतिशीलता, गति की सीमा और संतुलन में सुधार करता है।

योग का लक्ष्य

योग का मुख्य उद्देश्य मन को शुद्ध करना और मन को शांत करने के साथ ही विभिन्न स्वास्थ्य को बढ़ावा देना है, जिसमें शामिल हैं….
• शारीरिक स्वास्थ्य,
• मानसिक स्वास्थ्य,
• सामाजिक स्वास्थ्य,
• आध्यात्मिक स्वास्थ्य।

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