आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए अष्टांग योग और इसके आठ चरण

अगर आप अपना कल्याण और बेहतर स्वास्थ्य लाभ चाहते हैं तो अष्टांग योग आपके लिए एक बेहतरीन माध्यम हो सकता है। अपने घर के आरामदायक माहौल मेडिटेशन और योग के जरिए आप बेहतरीन लाइफस्टाइल प्राप्त कर सकते हैं। आपको तो पता ही होगा कि महर्षि पतंजलि को योग का जनक कहा जाता है। उन्होंने ही योग को व्यवस्थित आकार दिया था। महर्षि पतंजलि ने योग की क्रिया को आठ भागों में विभक्त कर दिया, जिसे अष्टांग योग कहा जाता है। योग के इन आठ अंगों का उद्देश्य आत्मा के बिखराव को दूर करना है और जब भी परमात्मा को प्राप्त करने की बात होती है तो अष्टांग योग से इतर कोई दूसरा मार्ग भी नहीं है। अष्टांग योग में सभी आठ प्रकार के योग शामिल हैं। बुद्ध द्वारा बताए गए आठ मार्ग भी इस अष्टांग योग का हिस्सा है। वास्तव में, योग सूत्र का अष्टांग योग बुद्ध की दूसरी रचना है। इस सूत्र में अष्टांग योग के प्रमुख महत्व का उल्लेख किया गया है। महर्षि पतंजलि ने अपने समय में योगदर्शन के एक सटीक और प्रामाणिक ग्रंथ की रचना की है। आज भी, योगदर्शन एक महत्वपूर्ण ग्रंथ और प्रामाणिक पुस्तक है। इसमें योग के सिद्धांत को स्पष्ट और वैज्ञानिक भाषा में प्रस्तुत किया गया है। इन विशेषताओं के कारण यह पुस्तक योग चिकित्सकों के लिए काफी उपयोगी है। यदि आप योग के विभिन्न रूपों का अनुभव करना चाहते हैं और इनमें से कुछ का अनुभव करना चाहते हैं, तो आपको योग दर्शन का प्रयास करना चाहिए। योग के माध्यम से अपने जीवन को आकार देने के इच्छुक लोगों के लिए यह एक बेहतरीन पुस्तक है।

अष्टांग योग और इसका महत्व क्या है?

अष्टांग का अर्थ है “आठ अंग”। इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले योग सूत्र के एक लेखक, पतंजलि नामक एक महान प्राचीन ऋषि द्वारा किया गया था। अष्टांग योग 20 वीं शताब्दी में वापस आया। उस वक्त कृष्णमाचार्य, राममोहन, पट्टाभि और टी के यू देसिकाचार आदि जैसे कुछ लोग ही आष्टांग योग में सक्षम थे। पट्टाभि ने ही अष्टांग योग की मुख्य विशेषताएं विकसित की थीं। हालांकि, यह हठ योग पर आधारित था। अष्टांग योग का मुख्य उद्देश्य अंदरुनी सद्भाव को बढ़ावा देना और वास्तविकता को सामने लाना है।

सबसे अच्छा अष्टांग या विन्यास योग क्या है?

अष्टांग या विनय योग, योग के दो अलग-अलग रूप हैं और दोनों ही अद्वितीय हैं और इनके अपने फायदे हैं। अष्टांग शब्द का अर्थ है आठ अंग, जो प्राचीन ग्रंथ के अनुसार यम, नियम, प्राणायाम, आसन, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि हैं। विनय का अर्थ, इस श्रृंखला में प्रत्येक क्षण श्वास प्रणाली को जोड़ना है। यह योग की एक और आधुनिक शैली है जिसमें संगीत, शिक्षक-निर्मित क्रम और प्रवाह शामिल हैं। इस अभ्यास की खासियत यह है कि यह रचनात्मक है और इसमें एक वेरायटी शामिल है, जिसे प्रशिक्षक द्वारा दिखाया गया है और छात्रों द्वारा महसूस किया गया है।

अष्टांग और विन्यास योग के बीच अंतर?

अष्टांग और विन्यास योग के बीच मुख्य अंतर यह है कि विन्यास श्वास और प्रवाह के बारे में है, जो आप तनाव दूर करने के लिए कर सकते हैं। हालांकि, अष्टांग योग आठ अंगों वाला योग है। योग का आठवां आसन एक तरह से आनंदमय जीवन जीने के बारे में है। अगर आप फोकस, शांतिपूर्वक, सही सांस के साथ जीवन जीना चाहते हैं, तो आपके लिए अष्टांग योग सबसे अच्छा है। यदि आप एक समरुपता से सीखते हैं तो अष्टांग एक मैथ्स क्लास की तरह है और विन्यास एक ड्राइंग क्लास की तरह है। जीवन में दोनों का अपना अलग महत्व है। और यह आप पर निर्भर करता है कि आप योग के माध्यम से क्या चाहते हैं।

अष्टांग योग के आश्चर्यजनक लाभ

अष्टांग योग से शारीरिक शक्ति

अष्टांग योग का मुख्य लाभ यह है कि यह हमारी मांसपेशियों को विकसित करने के साथ ही सभी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने में मदद करता है। नियमित रूप से अष्टांग योग का अभ्यास आपके शरीर और मांसपेशियों को जीवंत करने के साथ ही इसे अधिक लचीला और नियंत्रित बनाता है।

अष्टांग योग अच्छा कार्डियो वर्कआउट

अगर आप कार्डियो करना पसंद करते हैं, तो अष्टांग योग के अलावा कोई दूसरा योग नहीं है। यह आपको शेप में लाने, अपने वजन का प्रबंधन करने और आपको हर समय फिट रखने में मदद करेगा। अगर आप जल्द परफॉर्म करते हैं, तो ये प्रभावी रूप से आपके हृदय गति को बढ़ा सकते हैं।

अष्टांग योग से सुधार

अष्टांग योग आपके शरीर की ट्यूनिंग करने के लिहाज से एक शक्तिशाली सहायक है। यह फोकस, श्वास, संतुलन और समन्वय को बेहतर बनाने में मदद करेगा। इस दौरान आप जो वक्त देते हैं, वह आपके शरीर में ताल और प्रवाह की बेहतर समझ पैदा करता है, जिससे समन्वय में सुधार होता है।

अष्टांग योग से भावनात्मक और मानसिक रूप से लाभ

योग की यह शैली मानसिक और भावनात्मक शक्ति पर भी केंद्रित है। आसन का नियमित अभ्यास न केवल आपकी मांसपेशियों को प्रभावित करता है, बल्कि आपको भावनाओं को नियंत्रित करने और शुद्धि को सक्षम करने की शक्ति भी देता है।

मानसिक रुप से स्वस्थ करता है

अष्टांग योग हमारे शरीर को सांस के साथ समन्वित करता है। इस तरह का ध्यान और अपनी सांसों पर लगातार ध्यान केंद्रित करने से मानसिक स्थिति बेहतर होती है और आपको तनाव से राहत मिलती है। इससे आप अपने विचार के पैटर्न को बदलने में सक्षम होंगे। अष्टांग योग आपको अपने शरीर को केंद्रित करने और अपने शरीर को अपनी आत्मा से जोड़ने में मदद करता है।

अष्टांग योग की संक्षिप्त जानकारी:

गतिशील – आपको ऐसा महसूस होगा कि आपने कड़ी मेहनत की है। हालांकि ज्यादा पसीना बहाना असामान्य नहीं है!
शक्ति-निर्माण – कई चतुरंग और विन्यास, प्रतिदिन नहीं करने होते हैं, जो आपनी शक्ति को बनाए रखने का एक बेहतर माध्यम है।
चुनौती – पश्चिमी देश के लोगों की बात करें तो ज्यादातर लोग प्राथमिक श्रृंखला के कई आसनों का उपयोग नहीं करते। ऐसे में शुरू में आप भी सोच सकते हैं कि मैं ऐसा करने में सक्षम नहीं हो सकता। आप धीरे-धीरे ऐसा करने में सफल हो सकेंगे।
थकाऊ – प्राथमिक श्रृंखला के पूरा होने में लगभग 90 मिनट लगते हैं। ऐसे में इस तरह की प्रैक्टिस के लिए धैर्य कायम करना वास्तव में थका सकता है। हालांकि, धीरे-धीरे आप एक-एक कर इसकी मुद्राओं को करते हैं तो आप लगातार कर पाएंगे।
सांस केंद्रित करना – एक कहावत है कि आलसी लोग अष्टांग योग नहीं कर सकते हैं। इससे यह पता चलता है कि ब्रीदिंग प्रैक्टिस के लिए अष्टांग योग ही पहला और सबसे महत्वपूर्ण है। इसलिए जब तक आप सांस ले रहे हैं, तब तक आप अभ्यास कर सकते हैं।

ध्यान करने योग्य – एक बार जब आप अपेक्षाकृत कम योग अनुक्रम भी सीख लेते हैं, तो जब आप अभ्यास करते हैं, तो आप इस जोन में पहुंच सकते हैं। इसके लिए आपको शिक्षक से संकेत सुनने की जरूरत नहीं है, आप बस अपनी सांस के साथ एक लय में बहते हैं।

संरचित (स्ट्रक्चर्ड) – इसके अनुक्रमों को व्यक्तिगत जरूरतों के लिए अनुकूलित किया जा सकता है, लेकिन मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि हर किसी को प्रतिदिन एक ही तरह की मुद्राओं का अभ्यास करना चाहिए, जबतक इसमें महारत हासिल न हो जाए। आपको यह तय करने की जरूरत नहीं आपको कौन-से पोज सीखने चाहिए, क्योंकि यह आपके लिए पहले से ही अष्टांग योग में निर्धारित है!

हाथों पर समायोजन – अभ्यास के दौरान शिक्षक शारीरिक समायोजन (सहायता) प्रदान करेंगे। यह हमेशा आपको ठीक करने के लिए नहीं बल्कि समायोजन बहुत हद तक चिकित्सीय हो सकता है और आपको आसन में मदद कर सकता है। इस कारण स्टूडेंट्स अष्टांग योग में बहुत जल्द प्रगति करते हैं!

प्राथमिक श्रृंखला की संरचना इस प्रकार है:

5 सूर्य नमस्कार ए और 3-5 सूर्य नमस्कार बी

खड़े आसनों का एक सेट – जिसमें फॉरवर्डिंग फोल्ड, ट्विस्ट और बैलेंस शामिल हैं

बैठकर किए जाने वाले आसन – जिसमें कई तरह के फॉरवर्डिंग फोल्डिंग, हिप ओपनिंग और ट्विस्टिंग शामिल हैं। इसके साथ ही अष्टांग विन्यास के कई गतिविधियां शामिल हैं, जो हार्ट रेट को बनाए रखने के साथ ही ताकत बनाए रखने में मदद करती है।

समापन का क्रम – जिसमें एक गहरी बैकबेंड, शोल्डर स्टैंड और हेडस्टैंड शामिल है

अष्टांग योग में ज्ञान प्राप्त करने के लिए आठ मार्ग

अष्टांग योग का शाब्दिक अर्थ है, आठ योग और मन की शांति प्राप्त करने के लिए आठ चरण की अवधि।

यम

यम के पांच भेद हैं इन पांच भेदों को खुद के जीवन में शामिल करना ही अष्टांग योग का फर्स्ट फेज है। अगर आप यम के इन पांच भेदों को खुद के जीवन में समाहित करेंगे तभी इस पहले चरण को पार कर सकेंगे।

अहिंसा – अहिंसा का मतलब केवल शारीरिक हिंसा से नहीं है। इस योग का तात्पर्य साधक को अपने विचारों और शब्दों से हिंसा को बाहर करना होता है। यानी आप किसी के प्रति अपने मन में बुरे विचार न लाएं।

सत्य – मनसा वाचा कर्मणा, यानी मन, वचन और कर्म से जीवन में केवल सत्य को महत्व देना जरूरी होता है। ऐसा कर ही आप इसे अपना सकेंगे।

अस्तेय – चोरी या लालच का भाव दूर करना ही अस्तेय है।

ब्रह्मचर्य – ब्रह्मचर्य शब्द को सुनते ही आम तौर पर लोगों का ध्यान शारीरिक संबंधों की ओर ही जाता है, लेकिन यहां इसका मतलब अपनी इंद्रियों को वश में करने की बात है।

अपरिग्रह – इसका अर्थ त्याग करने वाला है। इसके जरिए साधक को लोभ और मोह जैसे विकारों को दूर करने की सलाह दी जाती है।

नियम

अष्टांग योग का दूसरा अंग है नियम। इसके भी पांच उप अंग हैं। योग को इस नियम को पालन करना भी निहायत ही जरूरी है। आइए इनके पांच अंगों के बारे में जानते हैं।

शौच – इसका मतलब तन, मन, अन्न, वस्त्र और स्थान की शुद्धि से जुड़ा है।

संतोष – परिणाम की इच्छा के बिना हमेशा अपना कर्तव्य करते रहना ही संतोष है।

तप – आपका तपस्या नहीं करनी बल्कि अपने कर्म को किसी भी स्थिति में पूरी ईमानदारी से पालन करने की जरूरत है।

स्वाध्याय – इसका अर्थ मन में झांकना और विपरीत परिस्थितियों में ईमानदारीपूर्वक चिंतन करना है।

ईश्वरप्रणिधान – किसी भी स्थिति में ईश्वर के प्रति श्रद्धा कम नहीं होनी चाहिए। योग के इस अंग का मतलब है भगवान पर विश्वास करना है।

आसन

बिना हिले-डुले एक ही स्थिति में आराम से बैठने की क्रिया आसन कहलाती है। इसका नियममित अभ्यास करने से मानसिक शांति मिलती है और बॉडी में एनर्जी का भी संचार होता है।

प्राणायाम

प्राण ऊर्जा यानी सांस लेने की प्रक्रिया को विस्तार देन की क्रिया प्राणायाम कहलाती है। प्राणायाम में मुख्य रुप से सांस लेने की प्रक्रिया पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। इसके नियमित अभ्यास से प्राण ऊर्जा को नियंत्रित करने की क्षमता डेवलप होती है।

प्रत्याहार

इसका अर्थ है रोकना। इसका अर्थ है बोलने, सुनने, खाने और महसूस करने जैसी क्रियाओं को संतुलित रखना। इसके जरिए शरीर की अनावश्यक ऊर्जा को नष्ट होने से बचाना है।

धारणा

अगर आप अष्टांग योग के पांच अंगों को भली भांति कर लेते हैं तो ऊर्जा एकत्रित करने का गुण पैदा हो जाता है। इस ऊर्जा को खर्च करने की स्थिति ही धारणा है। इसके जरिए आपको पता चलता है कि ऊर्जा का उपयोग कैसे करना है।

ध्यान

अगर आपने प्रत्याहार और धारणा को साध लिया तो ध्यान लग ही जाएगा। इसका कारण यह है कि मन, मस्तिष्क औऱ व्यक्तित्व के सारे विकार दूर हो जाते हैं।

समाधि

समाधि को शून्य के रूप में समझ सकते हैं। अगर आप ध्यान कर लेते हैं तो स्वतः समाधि की स्थिति में पहुंच जाते हैं। मन सात्विक और आध्यात्मिक हो जाता है।

निष्कर्ष

अष्टांग योग, योग का एक व्यापक रूप है, जिसके कई लाभ हैं। अष्टांग योग के नियमित अभ्यास से सुखी और शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत किया जा सकता है।

आप यह भी पढ़ना पसंद कर सकते हैं:-

चक्रासन – उर्ध्व धनुरासन – प्रमुख लाभ और अधिक।
सुप्त वज्रासन और सुप्त वज्रासन के लाभ।
शुरुआती और महत्व के लिए सरल योग आसन।

Talk to Online Therapist

View All

Continue With...

Chrome Chrome