उपवेद क्या हैं, कहां से हुई है इनकी उत्पत्ति, जानें
हिन्दू धर्म में चार मुख्य वेद ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्वेवेद हैं। इन वेदों से निकली हुई शाखाओं रूपी वेदज्ञान को उपवेद कहा जाता है। वैसे उपवेद के वर्गीकरण को लेकर विभिन्न विद्वानों के मत अलग-अलग हैं, लेकिन इनमें ये चार सबसे उपयुक्त हैं।
चार उपवेदों की बात करें तो इनमें आयुर्वेद, धनुर्वेद, गंधर्ववेद और शिल्पवेद शामिल है।
किसी वेद से कौन उपवेद बना, अगर यह जानना चाहते हैं तो आपको बताते हैं कि ऋग्वेद से आयुर्वेद, यजुर्वेद से धनुर्वेद, सामवेद से गंधर्ववेद और अथर्ववेद से शिल्पवेद बना है। वैसे ऋग्वेद के उपवेद को लेकर थोड़ा मतांतर है, क्योंकि चरणव्यूह के अनुसार ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है जबकि सुश्रुत के अनुसार आयुर्वेद अथर्ववेद का उपवेद है।
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वेद और उनकी सामग्री
वेद, उपवेद और इसके अंगों के बारे में जानना चाहते हैं तो यह जानकारी काफी गहरी है और आप जितना जानना चाहेंगे, उतनी ज्यादा जानने की इच्छा होगी। तो आईए पहले वेदों के बारे में जानते हैं।
ऋग्वेद – ऋग्वेद में 10 मंडल, 1028 सूक्त और 10522 मंत्र हैं।
यजुर्वेद – यजुर्वेद में 40 अध्याय और 1975 मंत्र हैं।
सामवेद – इसमें 27 अध्याय और कुल 1875 मंत्र हैं।
अथर्ववेद – इसमें 20 कांड और 5977 मंत्र हैं।
वेदों के अंग
वेदों का सम्यक ज्ञान चाहिए तो आपको इसके 6 अंगों पर गौर करना होगा। ये 6 अंग हैं शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष।
वेदोपांग
वेदों के अंग के बारे में तो जान लिया अब इसके उपांग के बारे में जानेंगे। योग, न्याय, सांख्य, पूर्वमीमांसा, उत्तरमीमांसा और वैशैषिक आदि छह दर्शन की वेद के उपांग हैं।
आयुर्वेद का इतिहास
आयुर्वेद की बात करें तो यह ऋगवेद का उपवेद है। हालांकि कई जगहों पर इसे अथर्ववेद का उपवेद भी बताया गया है। लेकिन ज्यादातर जगह इसे ऋग्वेद का ही उपवेद माना गया है।
पुरातत्ववेत्ताओं की मानें तो विश्व की सबसे प्राचीनतम वेद ऋग्वेद है। इसके रचनाकाल को लेकर भी उहापोह की स्थिति है, हालांकि विद्वानों ने ईसा के 3000 से 50,000 वर्ष पूर्व तक का इसका रचनाकाल माना है। अश्विनी कुमार आयुर्वेद के आदि आचार्य माने जाते हैं। उन्होंने दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सिर जोड़ा था। इंद्र ने अश्विनी कुमारों से यह विद्या प्राप्त की। इसके बाद इंद्र ने धन्वंतरी को सिखाया। काशी के राजा दिवोदास धन्वंतरी के अवतार कहे गए हैं। सुश्रुत ने उनसे आयुर्वेद की पढ़ाई की। वैसे महर्षि अत्रि और भारद्वाज को भी इस शास्त्र का प्रवर्तक माना जाता है।
आयुर्वेद के आचार्य
आयुर्वेद का आचार्यों की बात करें तो इसमें कई नाम हैं। इनमें अश्विनी कुमार, धन्वंतरी, दिवोदास, नकुल, सहदेव, अर्कि, महर्षि च्यवन, सुश्रुत, चरक, जनक, अगस्त, करथ, जाजली, पैल, बुध, जावाल, महर्षि अत्रि और उनके 6 शिष्य (भेड़, पराशर, अग्निवेश, जातूकर्ण, सीरपाणी, हारीत)।
आयुर्वेद क्या है
आयुर्वेद भारत की प्राकृतिक और पुरातन स्वास्थ्य पद्धति है। यह संस्कृत के दो शब्दों आयुः और वेद से जुड़कर बना है। आयु मतलब उम्र या जीवन औऱ वेद का मतलब विज्ञान, यानी इसे जीवन का विज्ञान कह सकते हैं।
आयुर्वेद के मूल सिद्धांत
आयुर्वेद की शिक्षा गुरु शिष्य परंपरा के तहत मौखिक रूप से दी जाती रही है। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग ह्रदय आयुर्वेद के पुरातन ग्रंथ हैं। इन ग्रंथों में पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश तत्व का मनुष्य के ऊपर पड़ने वाले प्रभाव तथा स्वस्थ और सुखी जीवन के लिए उनके महत्व के बारे में बताया गया है। हालांकि आयुर्वेद बीमारियों का इलाज दोषों के आधार पर करता है। ये त्रिदोष हैं वात,पित्त और कफ। वात दोष में वायु और आकाश तत्व की प्रधानता होती है, पित्त दोष में अग्नि तत्व की प्रधानता होती है और कफ दोष में पृथ्वी और जल तत्व की प्रधानता होती है।
धनुर्वेद क्या है
धनुर्वेद की बात करें तो यह यजुर्वेद का एक उपवेद है। इसके अंतर्गत धनुर्विद्या या सैन्य विज्ञान आता है। प्राचीन काल में सभी देशों में इस विद्या का चलन था। भारत में धनुर्विद्या के बड़े-बड़े ग्रंथ थे। धनुर्वेद का उल्लेख अति प्राचीन ग्रंथों में भी देखने को मिलता है। अग्निपुराण का बात करें तो इसे ज्ञान की 18 शाखाओं में से एक बताया गया है। महाभारत में भी इसका उल्लेख है। वैसे आजकल कुछ ग्रंथों में भी इस विद्या का वर्णन मिलता है। धनुर्वेदसंहिता नामक एक अलग पुस्तक भी है।
गंधर्ववेद क्या है
गंधर्ववेद यानी संगीतशास्त्र। विशेष रुप से यह चार उपवेदों में से एक है। इसमें स्वर, ताल, राग, रागिनी आदि का वर्णन है। भरत मुनी का नाट्य शास्त्र भी इसी का एक अंग है। गंधर्ववेद पर भारत में कई रिसर्च भी हो चुके हैं। कहा जाता है कि इसके श्लोकों को सुनने से बीमारियां दूर होती हैं।
शिल्पवेद क्या है?
शिल्पवेद की बात करें तो इससे कलाकारी की जानकारी मिलती है। हम किसी भी चीज का निर्माण करते हैं वह शिल्पवेद के तहत ही आता है।
निष्कर्ष
वास्तव में, उपवेद वेदों की निरंतरता हैं। वे वेदों के लिए आकस्मिक नहीं हैं, इसके विपरीत, वे वेदों के अभिन्न अंग हैं। वे भारतीय ज्ञान और सभ्यता के लिए अपरिहार्य हैं।