होम » भविष्यवाणियों » त्योहार » श्राद्ध पक्ष 2025: पितृ पक्ष का महत्व और इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें

श्राद्ध पक्ष 2025: पितृ पक्ष का महत्व और इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें

श्राद्ध पक्ष 2023: पितृ पक्ष का महत्व और इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें

कहते हैं पूर्वजों के आशीर्वाद के बिना कुछ भी संभव नहीं है। यदि किसी परिवार पर पूर्वजों का आशीर्वाद बना रहता है, तो उस परिवार में कोई दुखी नहीं रहता है। पूर्वजों के प्रति ऐसी ही श्रद्धा दिखाने का श्राद्ध पर्व 07 सितंबर से शुरू हो रहा है। जो लोग इन पवित्र दिनों में पूर्वजों के तर्पण नहीं करते या उनके लिए दान नहीं करते, उन पर पूर्वजों का आशीर्वाद नहीं बरसता है। 07 सितंबर से शुरू होने वाला यह पर्व 21 सितंबर तक चलेगा।  07 सितंबर को पूर्णिमा का श्राद्ध मनाया जाएगा। इसके बाद 15 सितंबर को प्रतिपदा का और इसी तरह आगे बढ़ते हुए 21 सितंबर को सर्व पितृमोक्ष अमावस्या मनाई जाएगी। लोग हमेशा उलझन में रहते हैं, कि श्राद्घ कैसे करें, लेकिन ब्राह्मणों से पूछकर और कुल रीति के अनुसार श्राद्ध किया जा सकता है।

( क्या आपकी कुंडली में पितृदोष तो नहीं है, जानिए हमारे विशेषज्ञ ज्योतिषियों से और दूर भगाइए दुर्भाग्य को और बनाइए जीवन को खुशहाल)

पितृपक्ष का महत्व

अक्सर लोग जल्दबाजी में सुबह जल्दी पूजा करके पितृों के लिए तर्पण कर देते हैं। शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध दिन में 12 बजे से दो बजे के बीच किया जाता है। श्राद्ध के दौरान अपने पूर्वजों को याद करें और उनके नाम की धूप दें। उनकी पसंद का खाना बनाएं और ब्राह्मण को दें। खाने को गरीब लोगों को भी दिया जा सकता है। हालांकि श्राद्ध पर्व में खीर बनाने का रिवाज है।

सर्वपितृ अमावस्या – तिथि याद नहीं तो अमावस्या पर करें श्राद्ध

यदि आपको अपने किसी पूर्वज की तिथि की जानकारी नहीं है, तो सभी पूर्वजों के लिए सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या पर श्राद्ध पर्व किया जा सकता है। इसके अलावा सौभाग्यशाली स्त्री का श्राद्ध नवमी को किया जा सकता है। परिवार में किसी के संन्यासी हो जाने पर उसकी मृत्यु के बाद उनका श्राद्ध द्वादशी को किया जा सकता है। फिर भी, सभी तरह के श्राद्ध के लिए सबसे पवित्र तिथि अमावस्या बताई गई है।

क्या आप जीवन में किसी समस्या का सामना कर रहे हैं? तो, यह सही समय है हमारे ज्योतिषी से कॉल पर बात करके अपनी बाधाओं को दूर करने का। पहली कॉल मुफ्त पाएं!

महर्षि निमि ने शुरू की श्राद्ध परंपरा

कहते हैं महर्षि निमि से श्राद्ध परंपरा की शुरुआत की। उन्हें श्राद्ध करने का ज्ञान महर्षि अत्री ने दिया था। महाभारत में इस तरह की जानकारी दी गई है। पहले श्राद्ध केवल ऋषि परंपरा का हिस्सा था। धीरे-धीरे यह जनमानस में प्रचलित हुआ।

श्राद्ध के नियम: कुल की रीति का भी रखें ध्यान

श्राद्ध करने की शास्त्रोक्त विधि बताई गई है, लेकिन इसके साथ ही यदि किसी कुल की कोई रीति चली आ रही हो, तो इसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए।

श्राद्ध पक्ष से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बात

1. अपने पूर्वजों का ध्यान करें। उनके निमित्त श्रद्धानुसार दान करें। यदि श्राद्ध नहीं कर पा रहे हैं, तो मंदिर में उनके नाम से पूजा करें और फल आदि का दान करें।
2. पुत्र के ना होने पर पुत्री या उसका बेटा भी श्राद्ध कर सकता है। नाती, पोता, भांजा, भतीजा आदि भी अपने किसी रिश्तेदार के लिए श्राद्ध कर सकते हैं।
3. श्राद्ध में साफ-सफाई का ध्यान रखें। यदि पंडित से पूजा नहीं करवा पा रहे हैं, तो आप भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर उनसे पितृों की तृप्ति की प्रार्थना करें।
4. पितृ पक्ष में पितृों के निमित्त भगवान विष्णु की पूजा करके उसका फल पितृों को देना चाहिए।

गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम

यदि आपको जीवन से जुड़ी किसी भी तरह की कोई समस्या है, आप हमारे ज्योतिषियों से सीधे बात कर सकते हैं। ध्यान रखें बात करने से ही बात बनती है। अकेले अपनी परेशानियों से ना जुझें।

Exit mobile version