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देवउठनी ग्यारस 2024 – देव उठनी एकादशी एवं तुलसी विवाह

देवउठनी ग्यारस 2021 - देव उठनी एकादशी एवं तुलसी विवाह

देवउठनी एकादशी के दिन से शुरू होता है मांगलिक कार्यों का आयोजन

कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी दीपावली के बाद आने वाली एकादशी को ही देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। देवशयनी एकादशी के बाद आषाढ़, शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान श्री हरि यानि विष्णु जी चार मास के लिये सो जाते हैं। उसे देवशयनी कहा जाता है और जिस दिन निद्रा से जागते हैं वह कहलाती है देवोत्थान एकादशी। इसे देव उठनी . या प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। वह शुभ दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का होता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु, जो क्षीरसागर में सोए हुए थे, चार माह उपरान्त जागे थे। विष्णु जी के शयन काल के चार महीनों में विवाह आदि मांगलिक कार्यों का आयोजन करना वर्जित है। भगवान के जागने के बाद ही इस एकादशी से सभी शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं। इस साल देव उठनी एकादशी मंगलवार, 12 नवंबर 2024 को मनाई जाएगी।

देवोत्थान एकादशी तिथि और मुहूर्त 2024

  • एकादशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 11, 2024 को 08:16 ए एम बजे
  • एकादशी तिथि समाप्त – नवम्बर 12, 2024 को 05:34 ए एम बजे

तुलसी विवाह का मुहूर्त

कुछ लोग इस दिन तुलसी और शालिग्राम के विवाह का आयोजन भी करते हैं। तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पूरे धूमधाम से की जाती है। देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। इसीलिए तुलसी विवाह को देव जागरण के पवित्र मुहूर्त के स्वागत का आयोजन माना जाता है। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ तुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान करना है। शास्त्रों में भी कहा गया है कि जिन दम्पतियों के कन्या नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं।

तुलसी विवाह मंगलवार, नवम्बर 12, 2024 को
  • द्वादशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 12, 2024 को 05:34 ए एम बजे
  • द्वादशी तिथि समाप्त – नवम्बर 13, 2024 को 02:31 ए एम बजे

देव उठनी एकादशी की पौराणिक मान्यता

माना जाता है कि चातुर्मास के दिनों में एक ही जगह रुकना ज़रूरी है। इन दिनों साधु संन्यासी किसी एक नगर या बस्ती में ठहरकर धर्म प्रचार का काम करते हैं। इन चार माह के दौरान कई धार्मिक कार्यक्रम भी होते हैं। देवोत्थान एकादशी को यह चातुर्मास पूरा होता है और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन देवता भी जाग उठते हैं। देवताओं का शयन काल मानकर ही इन चार महीनों में कोई विवाह, नया निर्माण या कारोबार आदि बड़ा शुभ कार्य शुरू नहीं किए जाते हैं।

देवोत्थान एवं देवउठनी एकादशी व्रत कथा

एक बार भगवान नारायण से लक्ष्मी जी ने कहा कि आप दिन-रात जागा करते हैं और जब सोते हैं तो लाखों-करोड़ों वर्ष तक सो जाते हैं और उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं। ऐसे में आप प्रतिवर्ष नियम से निद्रा लिया करें तो मुझे भी विश्राम करने का समय मिल जाएगा। लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्काराकर बोले कि मेरे जागने से सब देवों को और ख़ास कर तुमको कष्ट होता है। तुम्हें मेरी सेवा से जरा भी अवकाश नहीं मिलता। इसलिए, तुम्हारे कथनानुसार आज से मैं प्रति वर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। उस समय तुमको और देवगणों को अवकाश होगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी। मेरी अल्पनिद्रा भक्तों के लिए परम मंगलकारी उत्सवप्रद तथा पुण्यवर्धक होगी। इस काल में जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे तथा शयन और उत्पादन के उत्सव आनन्दपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में तुम्हारे सहित निवास करूंगा।

देव उठनी एकादशी के कुछ उपाय

– देवउठनी ग्यारस पर केसर वाले दूध से भगवान विष्णु का अभिषेक करें।
– देव उठनी एकादशी पर जरूरतमंदों को अन्न का दान करने से रुके हुए काम बनने लगेंगे।
– देव उठनी एकादशी पर तुलसी के पास घी का दीपक लगाएं। इससे आपके घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहेगी।
– देव उठनी एकादशी पर भगवान शिव के मंदिर में दीपदान करने से भी शुभ फल प्राप्त होंगे।
– धन वृद्धि के लिए देवउठनी एकादशी पर किसी विष्णु मंदिर में खीर का भोग लगाएं। और किसी कन्या को यह खीर खिलाएं।

गणेशजी के आशीर्वाद सहित
भावेश एन पट्टनी
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम

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