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वैदिक ज्योतिष बनाम पश्चिमी ज्योतिष: दोनों में क्या फर्क है?

वैदिक ज्योतिष बनाम पश्चिमी ज्योतिष

ज्योतिष शास्त्र मानवता को दुख से बचाने वाला है। यह कला के साथ-साथ एक विज्ञान भी है जो दुःखों को दूर कर सकती है। मोटे तौर पर ज्योतिष दो प्रकार का होता है – वैदिक ज्योतिष (Vedic Astrology) और पश्चिमी ज्योतिष (Western Astrology)। इनका उद्भव न केवल अलग-अलग स्थान पर हुआ बल्कि ये दोनों कुछ अन्य क्षेत्रों में भी भिन्नता रखती है। लेकिन, चाहे वैदिक ज्योतिष हो या पश्चिमी ज्योतिष शास्त्र, इनका मुख्य उद्देश्य तो एक ही है-समस्याओं को मिटाकर खुशियों को बढ़ाना। यहां हम वैदिक ज्योतिष और पश्चिमी ज्योतिष के बीच कुछ अंतर आपको बताने जा रहे हैं। इसे जानने-समझने के बाद आप इन दोनों ज्योतिष शास्त्र की तारीफ किए बगैर नहीं रहेंगे।

अलग-अलग मूल के दोनों शास्त्र
जैसा कि नाम से पता चलता है, वैदिक ज्योतिष की उत्पत्ति पौराणिक वेदों से है। यह वेदों के 6 प्रमुख अंगों -शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त,ज्योतिष और छन्द में सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह वेदों की आंख है। वैदिक ज्योतिष को भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा हजारों साल पहले विकसित किया गया था। इस प्रकार, वैदिक ज्योतिष पवित्र और प्राचीन है। यह माना जाता है कि अतीत में परमेश्वर ने अपने दिव्य ज्ञान को बुद्धिमान लोगों को प्रदान किया।

दूसरी ओर, पश्चिमी ज्योतिष को प्राचीन ग्रीस में जीवन और बौद्धिक के विकास के तौर पर देखा जा सकता है। पश्चिमी ज्योतिष भी मिस्र की सभ्यता से प्रभावित है। इस प्रकार, पश्चिमी ज्योतिष को विकसित बौद्धिकता और यूरोपीय मन के अन्वेषण का नतीजा कह सकते हैं।

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गणना के तरीके अलग-अलग

वैदिक ज्योतिष प्रणाली एक निश्चित राशि चक्र को दर्शाती है जिसकी पृष्ठभूमि में एक निश्चित नक्षत्र (ग्रह) होते हैं। इस “निरयन राशि चक्र भी कहते हैं”।

पश्चिमी ज्योतिष के लिए, यह एक गतिशील राशि चक्र पर काम करता है। यह प्रणाली पृथ्वी के सूर्य के लिए अभिविन्यास पर आधारित है। इसे “सायन राशि चक्र” के रूप में भी जाना जाता है।

इस प्रकार से वैदिक ज्योतिष विज्ञान जहां निरयन पद्धति (Nirayan Astrology) पर बने पंचाग को महत्व देता है वहीं पाश्चात्य देशों में सायन पद्धति (Sayan Astrology) प्रचलित है।

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ग्रहों की संख्या और स्थिर सितारों की भूमिका में अंतर

वैदिक ज्योतिष में कुल मिलाकर 9 ग्रह हैं: सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि और चंद्रमा की दो नोड्स – राहु-केतु। इसके अलावा, 12 राशियों के अलावा वैदिक ज्योतिष 27 चंद्र नक्षत्रों का भी उपयोग करती है जिसे नक्षत्र कहते हैं। इन में से हर एक नक्षत्र 13 डिग्री और 20 मिनट की अवधि का होता है।

पश्चिमी ज्योतिष में भविष्य का फलादेश करने के लिए यूरेनस, नेपच्यून और प्लूटो जैसे ग्रहों को शामिल किया है। इन ग्रहों को वैदिक ज्योतिष में उतना महत्व नहीं दिया गया है। इसके अलावा, पश्चिमी ज्योतिष फलथन करने के लिए नक्षत्रों या तारामंडल का विचार नहीं करती है।

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समय में अंतर

भविष्य की घटनाओं को जानने और ग्रहों के गोचर का विश्लेषण करने हेतु वैदिक ज्योतिष विमोशोत्तरी दशा प्रणाली (ग्रहों की घटना अवधि को जानने की एक विधि ) को अमल में लाती है। जब कि पश्चिमी ज्योतिष, दशा प्रणाली का उपयोग नहीं करती है। दूसरी ओर, यह ग्रहों के गोचर को जानने के लिए ग्रहों की गतिविधियों का अध्ययन करती है।

अलग-अलग क्षेत्रों पर जोर

पश्चिमी ज्योतिष सूर्य की गतिविधियों पर अधिक भरोसा करती है। इसलिए, व्यक्ति के मनोविज्ञान, व्यक्तित्व और चरित्र पर अधिक जोर दिया जाता है। दूसरी ओर, वैदिक या नक्षत्र आधारित निरयन पद्धति चंद्रमा आधारित ज्योतिष प्रणाली है जिसमें जीवन के सभी क्षेत्रों को ध्यान में रखा जाता है। किसी भी व्यक्ति के जन्म का सही-सही विवरण यानी जन्म का समय, स्थान और समय का सही ज्ञान पता होने पर उसके भूत, वर्तमान और भविष्य की किसी निश्चित समयावधि में घटित होने की जानकारी आसानी से दी जा सकती है। यह कर्म और नियति के सिद्धांत को भी ध्यान में रखता है। संक्षेप में कहें तो – आपके जीवन का पूरा घटनाक्रम आपकी कुंडली में लिखा है। भारतीय ज्योतिष के जरिये आप अपनी आकांक्षाओं, इच्छाओं और उद्देश्यों को एक सही दिशा देकर अपने जीवन को सफल व सुखद बना सकते हैं।

वैदिक ज्योतिष की श्रेष्ठता

वैदिक ज्योतिष चंद्र राशि पर आधारित है जबकि पश्चिमी ज्योतिष सूर्य राशि चक्र पर आधारित होता है। वैदिक ज्योतिष में नक्षत्र, दशा प्रणाली और वर्ग कुंडली बहुत गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। पश्चिमी कुंडली या सायन पद्धति केवल संभावित घटनाओं की सीधी व्याख्या दे सकती है। वहीं दूसरी ओर वैदिक ज्योतिष बहुत प्रभावी होने के साथ ही काफी सटीक भी है। साथ ही यह प्राचीन ज्ञान अपने आप में कुछ जटिलताओं को समटे हुए है।

पृथ्वी के आस-पास चक्कर लगाने वाले ग्रह-नक्षत्रों की ऊर्जा किस तरह से हमारी हर एक एक्टिविटीज को प्रभावित करती है यह किसी आश्चर्य से कम नहीं है। एेसे देखा जाए तो दोनों ही प्रकार के ज्योतिष का भविष्य फलकथन में सफलतापूर्वक प्रयोग किया सकता है। निश्चय ही दोनों ज्योतिष शास्त्र मानव को मुसीबत के अंधेरे में आशा की एक मशाल बनकर आगे बढ़ने का मार्ग दिखाते हैं और उनके जीवन को खुशहाल बनाने में मदद करते हैं।

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गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
तन्मय के ठाकर
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम

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