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मंगल ग्रह एवम् विवाह

मंगल ग्रह एवम् विवाह

मंगल ग्रह पृथ्वी का निकटतम पड़ोसी ग्रह है। सौरमंडल में यह सातवाँ सबसे बड़ा ग्रह है। इसका व्यास ६७९४ किलोमीटर है जो कि पृथ्वी के व्यास का लगभग आधा है। यह ग्रह सदैव मनुष्य के लिए कौतुहल का विषय रहा है। सौरमंडल में सभी ग्रहों से मंगल की कक्षा दीर्घ वृताकार है। पृथ्वी से मंगल की दूरी ६,२५,००,००० मील है। पृथ्वी के वातावरण में और मंगल के वातावरण में समानता मानी जाती है।

ज्योतिष में मंगल को कालपुरुष का पराक्रम माना गया है। ग्रह मंडल में इन्हें सेनापति का पद प्राप्त है। मंगल पराक्रम, स्फूर्ति साहस, आत्मविश्वास, धैर्य, देश प्रेम, बल, रक्त, दृढ़ता, महत्वाकांक्षा, खतरे उठाने की शक्ति, क्रोध, घृणा, उत्तेजना, झूठ एवम शस्त्र विद्या के अधिपति माने गये हैं।

मंगल मेष व वृशिचक राशि के स्वामी हैं। यह मकर राशि में उच्च के एवम कर्क राशि में नीच के होते है। मंगल को मृगशिरा, चित्रा एवम धनिष्ठा नक्षत्र का स्वामित्व प्राप्त है।

मंगल ग्रह शुभत्व का प्रतीक भी है। इस ग्रह की मूलभूत प्रवर्ती प्रजनन और कायाकल्प है। फिर भी इस ग्रह को अशुभ, क्रूर, घातक इत्यादि कहा व समझा जाता है। अग्नि तत्व होने से मंगल सभी प्राणियों को जीवन शक्ति देता है एवम प्रेरणा उत्साह तथा साहस का प्रेरक होता है।

मंगल का बहुत ही संक्षिप्त एवं सटीक परिचय प्रस्तुत करने उपरांत अब हम अपने मुख्य प्रसंग / विषय मंगल ग्रह एवम विवाह पर चर्चा करें।

लग्ने व्यये च पाताले, जामित्रे चाष्ट कुजे।
कन्या जन्म विनाशाय, भर्तुः कन्या विनाशकृत।।

अर्थात जन्म कुंडली में लग्न स्थान से १, ४, ७, ८, १२ वें स्थान में मंगल हो तो ऐसी कुंडली मांगलिक कहलाती है। श्लोकानुसार जिस व्यक्ति की कुंडली में मंगल उपर्युक्त भावों में हो तो उसे विवाह के लिए मांगलिक वर-वधू ही खोजना चाहिए। इसके अलावा यदि पुरुष या स्त्री की कुंडली में १, ४, ७, ८, १२ वें भाव में शनि, राहु, सूर्य, मंगल हो तो कुंडली का मिलान हो जाता है। यदि एक की कुंडली में मंगल उपरोक्त भावों में स्तिथ हो तथा दूसरे की कुंडली में नहीं हो तो इस प्रकार के जातको के विवाह संबंध नहीं होने चाहिए। यदि अनजाने में भी कोइ विवाह संपन्न हो जाते हैं तो या तो ऐसे संबंध कष्टकारी होते हैं या फिर दोनों में मृत्यु योग की भी संभावना हो सकती है। अत: दोष का निवारण भली भाँति कर लेना चाहिए।

आइए अब यह जानने की कोशिश करें कि आखिर मंगल की इन भावों में स्तिथि क्या-क्या विपरीत प्रभाव डालती है या क्या प्रभाव होता है।

प्रथम भाव : कार्य सिद्धि में विघ्न, सिर में पीडा, चंचल प्रवृति, व्यक्तित्व पर प्रभाव, स्वभाव, स्वास्थ्य, प्रतिष्ठा, समृद्धि,

द्वितीय भाव : पैतृक सम्पति सुख का अभाव, परिवार, वाणी, निर्दयी प्रवृति, जीवन साथियो के बीच हिंसा, अप्राकृतिक मैथून इ.

चतुर्थ भाव : परिवार व भाइयो से सुख का अभाव, घरेलू वातावरण, संबंधी, गुप्त प्रेम संबंधी, विवाहित जीवन में ससुराल पक्ष और परिवार का हस्तक्षेप, आनुवांशिक प्रकृति इ.

सप्तम भाव : वैवाहिक जीवन प्रभावित, पतिपत्नी का व्यक्तित्व, जीवन साथी के साथ रिश्ता, काम शक्ति, जीवन के लिए खतरा, यौन रोग इ.

अष्टम भाव : मित्रों का शत्रुवत आचरण, आयु, जननांग, विवाहेतर जीवन, अनुकूल उद्यम करने पर भी मनोरथ कम इ.

द्वादश भाव : विवाह, विवाहेतर काम क्रीड़ा, क्राम क्रीड़ा या योन संबंधो से उत्पन्न रोग, काम क्रीड़ा कमजोरी, शयन सुविधा, शादी में नुकसान, नजदीकी लोगो से अलगाव, परस्पर वैमनस्य, गुप्त शत्रु इ.

यहाँ पर मैं स्पष्ट करना चाहूँगा कि द्वितीय भाव मैने पूर्व में कहीं भी इंगित नहीं किया था। किंतु विगत २२ वर्षों का मेरा अनुभव कहता है कि द्वितीय भाव में स्थित मंगल या अन्य पाप ग्रहों का उतना ही प्रभाव है जितना कि १, ४, ७, ८ एवम १२ भावों में, द्वितीय भाव में पाप ग्रहों को कमतर आँकना बिलकुल भी संभव या उचित नहीं, क्योंकि मैने स्वयं अपने व्यक्तिगत जीवन में पाया कि द्वितीय भाव में स्तिथ मंगल या अन्य पाप ग्रह आजीवन अविवाहित या वैवाहिक जीवन को कष्टप्रद बना सकता है। इसमें लेशमात्र भी संदेह नहीं। अत: मेरा ज्योतिष प्रेमियों से विनम्र आग्रह है कि द्वितीय भाव का भी कुंडली मिलान में विशेष ध्यान रखना चाहिए।

अब हम जानने का प्रयास करेंगे कि किन स्तिथियों में मंगल दोष शांत या कम हो जाता है।

  1. दूसरी कुंडली में भी 1, 4, 7, 8 एवम 12वें भाव में पाप ग्रह शनि, राहु, सूर्य, मंगल हो तो भौम मंगल दोष शांत हो जाता है।
  2. मेष का मंगल लग्न में, वृशिचक के चतुर्थ में, वृषभ के सप्तम में, कुंभ के अष्टम एवम धनु के द्वादश में हो तो मंगल दोष कम हो जाता है।
  3. यदि मंगल स्वराशि मेष, वृशिचक या मूल त्रिकोण उच्च या मित्र राशि में हो तो दोष में कमी आ जाती है।
  4. कर्क एवम सिंह लग्न में लग्नस्थ मंगल का दोष कम हो जाता है।
  5. 3, 6, 11 भावों में अशुभ ग्रह, केंद्र, त्रिकोण में शुभ ग्रह हो तथा सप्तमेश सप्तम भाव में हो तो दोष कम हो जाता है।
  6. कन्या की कुंडली में गुरु केंद्र त्रिकोण में हो तो दोष कम हो जाता है।
  7. पुरुष की कुंडली में शुक्र केंद्र त्रिकोण में हो तो दोष कम हो जाता है।
  8. चन्द्र, गुरु या बुध से मंगल युति कर रहा हो तो दोष कम हो जाता है।
  9. दूसरे भाव में मिथुन, कन्या का मंगल हो तो मंगल दोष कम हो जाता है।
  10. चतुर्थ भाव में शुक्र की राशि (वृषभ, तुला) का मंगल दोष कम हो जाता है।
  11. अष्टम भाव में गुरु राशि (धनु, मीन) का मंगल हो तो दोष कम हो जाता है।
  12. सातवें भाव में मंगल पर यदि शुक्र की दृष्टि हो तो दोष कम हो जाता है।
  13. यदि मंगल नीच, अस्त या वक्री हो तथा कुंडली के 1, 4, 8 एवम 12 भाव में हो तो मंगल दोष कम हो जाता है।

इस प्रकार कइ परिस्तिथियों में मंगल का दोष काफी कम आँका गया है। जन्म कुंडली मिलान करते समय हमें इन सभी बातों का भी ध्यान रखना होता है।

पति-पत्नी का दाम्पत्य जीवन सुखद एवम सफल रहे इसी उद्देश्य को लेकर विवाह पूर्व जन्म कुंडली का मिलान कर गुण, स्वभाव एवम प्रकृति आदि के बारे में जाना जाता है। सर्वप्रथम हम मेलापक द्वारा गुण व गुणों की जाँच करते है जिसे अष्टकूट मिलान कहा जाता है। अष्टकूट में दिये जाने वाले अंको को गुण कहते है। अधिकतम गुण 36 होते है। इसमें कम से कम 18गुण मिलने पर विवाह किया जा सकता है। मेरे व्यक्तिगत अनुभव में आया है कि ग्रह मैत्री एवं नाड़ी का महत्वपूर्ण स्थान है। गुण मिलान उपरांत हमें मंगल दोष विचार करना चाहिए, जिसकी कि हमने पहले की क्रमश: व्याख्या की है।

तदुपरांत दोनों कुंडलियों में धन विचार, परिवार का विचार, संतान का विचार, आयु का विचार, किसी भी प्रकार के नेष्ट का विचार यदि दिख रहा हो तथा भाग्य का विचार भी भली भाँति कर लेना चाहिए।

आजकल मुझे खास अनुभव में आ रहा है कि लोग साफ्टवेयर द्वारा स्वयं कुंडली मिलान कर, साफ्टवेयर द्वारा दिये गये निर्णय को ही अन्तिम निर्णय मानकर चल रहे है, किंतु मै यहां अपने ज्योतिष प्रेमियो को स्पष्ट करना चाहूँगा कि साफ्टवेयर से कुंडली मिलान उपरांत भी व्यक्तिगत रुप से ज्योतिषी से मिलकर या फ़ोन अथवा मेल से ज्योतिषी से जरूर विस्तृत मिलान करा ले एवं तदुपरांत ही अंतिम निर्णय (विवाह करने का) लें। इससे प्रत्येक व्यक्ति को सुखद वैवाहिक जीवन की अनुभूति होगी।

हम पुन: अपने विषय पर आकर यही कहेंगे कि मंगल अमंगल नहीं हो सकता यदि आप वास्तव में सचेत है।

यदि हम मंगल की बात करें तो मंगल निम्नांकित को प्रतिनिधित्व करता है-

शक्ति, साहस, पराक्रम, प्रतियोगिता, क्रोध, उत्तेजना, षडयंत्र, शत्रु, विपक्ष, दुराग्रही, युवा, छोटे भार्इ, फौजी प्रकृति, हवार्इ यात्रा, मजदूर नेता, विवाद, शस्त्र, सेनाध्यक्ष, युद्ध, दुर्घटना, अग्नि, घाव, भूमि, अचल सम्पत्ति, हथियार, अग्निस्थल, रक्त, .

स्पष्ट है कि निश्चित ही मंगल ग्रह हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन्ही सब बातो को ध्यान में रखकर मंगल ग्रह को वैवाहिक जीवन में अत्यंत महत्ता दी है। कहा भी गया है ”सन्मगलं मंगल:”

मंगल दोष निवृति उपाय :
– मंगल मंत्र का जप, मंत्र: ”ऊँ अं अगारकाय नम:” जप संख्या – ११,१००

– मंगल यंत्र की पूजा

– मंगलवार के व्रत

यदि हम कुंडली मिलान में सावधानी रखे तो निश्चित ही मंगल हमारे लिए मंगलकारी होगा। यथा

मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुढ़ध्वज।
मंगलम पुण्डरिकाक्ष:, मंगलाय तनो हरि:।।

क्या आप भी जानना चाहते हैं अपना व्यक्तिगत भविष्यफल? क्या आप भी जानना चाहते है अपने विवाहिक जीवन की समस्याओ का समाधान? क्या आप भी जानना चाहते है अपनी कुंडली का विस्तृत मिलान? या विवाह से सम्बंधित आपका कोई भी प्रश्न है? तो देर ना करें, आज ही हम से सम्पर्क कर मेल द्वारा अपना विस्तृत भविष्यफल एवं समस्या समाधान हेतु चमत्कारिक ज्योतिष उपाय प्राप्त करें।

पं. उमेश चन्द्र पन्त
ज्योतिषि पेनेल,
गणेशास्पिक्स टीम

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