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भारतीय ज्योतिष शास्त्र – चंद्र ज्योतिषशास्त्र, चंद्र राशिफल, चंद्र राशि कुंडली

भारतीय ज्योतिष को चन्द्र ज्योतिष भी कहते हैं, इसकी उत्पत्ति वेदों से हुई है। भारतीय ज्योतिष में १२ राशियां हैं –

राशियां बाद में विकसित हुई थीं. भारतीय ज्योतिष का आधार नक्षत्र हैं. कुल २७ नक्षत्र हैं. २८ वां नक्षत्र अभिजीत है जिसे कुंडली अध्ययन के समय शामिल नहीं किया जाता है।

वेद और शास्त्रों के अनुसार ५ तत्व माने गए हैं-

  • अग्नि
  • जल
  • पृथ्वी
  • वायु
  • आकाश

कुंडली अध्ययन के समय इन पांचों तत्वों के साथ ही नक्षत्र और राशियों को ध्यान में रखा जाता है। गगन या आकाश तत्व को सर्वाधिक महत्त्व दिया जाता है। किसी की भी कुंडली में लग्न सबसे प्रभावी माना जाता है, क्योंकि यह ‘स्व’ को सूचित करता है और इसपर आकाश तत्व का आधिपत्य होता है।

भारतीय ज्योतिष पद्धति नक्षत्र पर आधारित कैलेंडर का अनुसरण करता है। इसके केंद्र में चन्द्रमा होता है। चन्द्रमा मष्तिष्क और भावना पर नियंत्रण रखता है। राशियों में चन्द्रमा सबसे तेज चलनेवाला ग्रह है और इसके समर्थन के बिना कोई कार्य संभव नहीं हो सकता। जो पाश्चात्य ज्योतिष का ज्ञान रखते हैं उन्हें यह पता होगा कि वहां ‘वोईड ओफ़ कोर्स’ का सिद्धांत चलता है। इसका मतलब है कि यदि चन्द्रमा का कोई स्थान नहीं हो तो कोई भी कार्य संपन्न नहीं होता। वैसे तो सभी ग्रह समान रूप से महत्व रखते हैं लेकिन चन्द्रमा को प्रमुख इसलिए माना जाता है क्योंकि यह मष्तिष्क का नियंत्रक है।

दशा पद्धति – वैदिक ज्योतिष का एक प्रमुख भाग

जन्म की राशि, डिग्री, मिनट और सेकण्ड को भारतीय ज्योतिष में दशा माना जाता है जो व्यापक रूप से ग्रहों की अवधि के रूप में जाने जाते हैं। ये बाद में भी फ़ारसी ज्योतिष प्रणाली’अल फिरदेरिया’ या ‘फिरदर’ के रूप में पाए गए। भारतीय ज्योतिष इसे बहुत सरल बनाता है क्योंकि हर चीज को समय के सूक्ष्म हिस्से में बांटा जा सकता है। ज्योतिष की सभी पद्धतियों में से भारतीय पद्धति में ही समय को सूक्ष्मतम इकाई में बांटने की क्षमता है, इसी कारण से यह अधिक सटीक माना गया है।

दशा पद्धतियां कई हैं पर उनमें से दो बहुत प्रचलित थीं- अष्टोत्तरी और विंशोत्तरी लेकिन समय के साथ विंशोत्तरी दशा पद्धति ने सभी दशा पद्धतियों को आत्मसात कर लिया। विंशोत्तरी पद्धति ‘ट्राईन आस्पेक्ट्स्’ पर आधारित है। ट्राईन ऊर्जा उत्पन्न करता है और यह भाग्य पर नियंत्रण रखता है। इसलिए किसी के अच्छे या बुरे समय के बारे की भविष्यवाणि के लिए विंशोत्तरी सर्वश्रेष्ठ दशा पद्धति है।

ग्रहों की गति
वैदिक पद्धति में ग्रहों की गति को महत्व दिया जाता था क्योंकि वहां दशा पद्धति थी। बहुत से ज्योतिष दशा और गति को एकसाथ नहीं मिलाते क्योंकि ऐसा करना आवश्यक नहीं है।

वार्षिक भविष्यवाणी
वर्ष फल ताजिक नीलकंठ ने प्रारंभ किया था, बाद में वे भारतीय ज्योतिष का अनिवार्य अंग बन गए। पाश्चात्य ज्योतिष जो चन्द्रमा ज्योतिष की तरह ही है, इसमें एक विशेषता होती है जिसे ‘सोलर रिटर्न’ कहते हैं। लेकिन भारतीय ज्योतिष पद्धति स्नेह और वैरा दृष्टि जैसे पक्षों पर आधारित कई मापदंड हैं। इसी तरह, पश्चिमी सोलर रिटर्न में वे भाग्य और सफलता के हिस्से के लिए बहुत महत्व देते हैं. उसी प्रकार वहां चन्द्रमा ज्योतिष प्रणाली में सहम्स वार्षिक भविष्यवाणि में एक मुख्य भूमिका निभाता है। वर्षफल पद्घति में मुन्था का भी एक बहुत अच्छा भविष्य है।

संक्षेप में, भारतीय ज्योतिष, इस महान और सटीक ज्योतिष विज्ञान के गहरे ज्ञान से बना हुआ है जो भविष्य के बारे में पहले ही बता सकता है और समस्याएं पैदा होने से पहले सावधानी बरत लेता है।

गणेशजी के आशीर्वाद सहित
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम

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